पोरसा एक गॉव - प्रगति के पथ पर…
कुसुम लता गुप्ता
पोरसा जिला मुरैना का एक तहसील स्थान है। यह उत्तर में 26067’29” एवं पूर्व 78036’92” में स्थित है। यह मुरैना भिंड एवं धौलपुर के त्रिकोण के बीच में स्थित है। जनसंख्या 39 हजार के आसपास है। पूर्व मंे यह क्षेत्र हार्डकोर डकोइट एरिया था। यहां पर शाम को 06:00 बजे से पहले पहले बाजार बंद हो जाते थे, लोग घर से बाहर निकलना बंद कर देते थे, यदि घर का कोई सदस्य शाम को 06:00 बजे तक घर नहीं पहुंचता था तो घरवालों को बहुत चिंता हो जाती थी कहीं कोई अनहोनी ना घट जाए। मेरा अपना परिवार भी इसका भुक्तभोगी है। शिक्षा के क्षेत्र में पोरसा बहुत पिछड़ा हुआ था। बालिका शिक्षा तो कक्षा 8 के बाद निषिद्ध थी। महिलाओं को बहुत लंबा घुंघट निकालना पड़ता था। अन्यथा उसे असभ्य बोला जाता था। कृपया अन्यथा ना लें, मैं (कुसुम) इस गांव की पहली पोस्ट ग्रेजुएट बहू थी। मैं खुद ठोड़ी से नीचे तक घुंघट निकालती थी, घुंघट जरा भी ऊंचा हो जाता था या नाक दिख गई तो समझ लो घर की इज्जत खराब हो गई, ऊपर से सुनने को मिलता था कि वह तो पढ़ी लिखी है, घुंघट क्यों निकालेगी वह तो विलायती है आदि आदि। 1979 तक यहां पर 1 बालक एवं 1 बालिका सरकारी स्कूल थे एवं 2 निजि स्कूल भी थे।
पोरसा की सामाजिक जागरूकता में मैं दो हस्तियों का परिचय देना आवश्यक समझती हूं जिनका इस गांव की प्रगति में प्रथम स्थान है।
1. डॉ. हरिओम गुप्ताः आपने 1972 में बी.ई. जबलपुर से एवं एम.टैक. तथा पी.एच.डी. रूड़की विश्वविद्यालय से किया। ये 1974 से ही शिक्षण में लिप्त हो गये थे। रूड़की विश्वविद्यालय से ही कनाडा जाने का अवसर मिला एवं इनका दृष्टिकोण बदला। मुझे उनकी पत्नी होने का सौभाग्य मिला।
2. डॉ प्रेमचंद गुप्ताः जिन्होंने 1975 में एम.बी.बी.एस. ग्वालियर मैडिकल कॉलेज से किया एवं पोरसा में ही अपनी सेवाएं देने का निश्चय किया। आपका विवाह 1975 में अनीता जी के साथ हुआ। वे ग्वालियर के एक संपन्न परिवार की शिक्षित बैटी थी। आपने घुंघट को स्वीकार नहीं किया। वे सोचती थी कि गांव के लोगों की मानसिकता कैसे बदली जाए। 1979 में गांव वालों एवं सुरेश बंसल की सहायता से पुराने थाने में एक स्कूल ‘राइजिंग स्टार पब्लिक स्कूल’ की नींव डाली। प्रारंभ में घर के ही बच्चे अध्ययन के लिए जाते थे, धीरे-धीरे गांव के अन्य परिवारों के बच्चे भी स्कूल में आने लगे।
जब हम 1983 में
कनाडा से भारत वापस
आए एवं अपना गांव
विजिट किया तो अनीता
जी ने हमारे लिए
एक सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा। कार्यक्रम बहुत
अच्छा था वहां के
बच्चों ने एवं शिक्षिकाओं
ने बहुत परिश्रम किया
था। वही पहला अवसर
था जब डॉ. हरिओम
गुप्ता ने 1000/- रूपये का अनुदान स्कूल
को दिया था। स्कूल
ने निरंतर प्रगति की, उस स्कूल
के बच्चे आज विदेशों (अमेरिका,
कनाडा, जर्मन आदि) जगह कार्यरत
है। वे भी गांव
की प्रगति में अपना योगदान
कर रहे हैं। 2003 मे
गांव वालों के विरोध के
कारण वह जगह यानी
जो स्कूल पुराना थाने में चलता
था उसे बंद करना
पड़ा पर अनीता जी
ने हार नहीं मानी
पहले उसे अपने निजी
आवास में शुरू किया
फिर बाद में अलग
से स्कूल भवन का निर्माण
किया। आज की तारीख
में पोरसा में 40 विद्यालय हैं जिनमें 2 बालक
एवं 3 बालिकाओं के सरकारी विद्यालय
हैं। अनीता जी मानदेयी जिला
महिला जज भी रहीं।
इस क्षेत्र में भी सराहनीय
कार्य किया। यहां पर वे
महिला सशक्तिकरण के लिए ही
काम करती रही हैं।
श्रीमती
अनीता गुप्ता बालवाड़ी केन्द्र, क्रीच सेंटर, परिवार परामर्श केन्द्र, कंप्यूटर सेंटर, सिलाई सेंटर, रोड़ सैफ्टी प्रोग्राम,
प्राइमरी एड्स कंट्रोल प्रोग्राम,
मिडल एवं हाई स्कूल
चला रहीं है। इनके
द्वारा चलाए जा रहे
स्कूलों में लगभग 500 छात्र,
सिलाई केंन्द्र में 600 महिलाएं पढ़ चुकी है।
लगभग 200 महिलाओं ने कंप्यूटर सेंटर
से कोर्स किया है। लगभग
250 महिलाओं ने एफ.सी.सी. सेंटर से
सुविधा ली है।
श्रीमती अनीता गुप्ता ने नेत्र शिविर, स्वास्थ्य शिविर, लेप्रोस्कोपिक शिविर और महिला जागरूकता शिविर, सड़क सैफ्टी शिविर, एड्स नियंत्रण कार्यक्रम समय समय पर आयोजित किये।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि श्रीमती गुप्ता की नियुक्ति से पहले मोरेना में महिलाओं की गतिविधियां नगण्य थीं। उन्होंने जिला स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर सभी गतिविधियों में भाग लिया है।
2008 में पोरसा
में गौरव शर्मा जी
ने “राइजिंग स्टार पब्लिक स्कूल" से शिक्षा प्राप्त
की थी, उन्होंने पोरसा
टैलेंट नाम से एक
सामाजिक कार्य प्रारंभ किया, जिसमें डॉ. हरिओम गुप्ता का बराबर का
साथ रहा, इसका मुख्य
उद्देश्य पोरसा के बच्चों में
कंप्यूटर जागृति फैलाना था। एस.टी.
माईक्रो इलैक्ट्रोनिकस नामक कंपनी ने
भी बड़ी सहायता की,
कंपनी ने 8 कंप्यूटर दिए
जिसकी मदद से एक
कंप्यूटर लैब स्थापित की
गई। उस लैब को
चलाने के लिए कंप्यूटर
शिक्षक भी रखे गये।
यहां टैलेंट हंट के लिए
प्रतियोगी परीक्षाएं भी ली जाती
थी। जिसमें आसपास के गांव के
बहुत से बच्चे भाग
लेते थे। सफल बच्चों
का प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए डॉ.
हरिओम गुप्ता पुरस्कार दिया करते थे।
बहुत सी पुस्तकें भी
पुस्तकालय को दान में
दीं।
2003 में मुक्तिधाम का पुनरूद्धार शुरु किया गया जो आज तक अनवरत विकसित हो रहा है। वहां पर बहुत सारे औषधीय वृक्ष पौधे लगाए गए हैं। गर्मियों में लोगों के लिए ठंड़े पानी की व्यवस्था की गई है। वहा पर वाटर कूलर डॉ. हरिओम गुप्ता ने ही दिया है, सर्दियों में गरम पानी की व्यवस्था की गई है ताकि अंत्येष्टि के बाद लोग गर्म पानी से स्नान कर सके। मुक्तिधाम में कुछ फाउंटेन भी लगाए गए हैं। शव स्नान के लिए फाउंटेन डॉ. हरिओम गुप्ता ने ही दान में दिया है। वहां लोग योगा करने आते है। मुक्तिधाम जाकर लगता है कि हम किसी पर्यटन स्थल पर आए हैं, जहां लोग मुक्तिधाम का नाम भी नहीं लेते है, वहां ग्रामवासी योगा करने आते हैं। बच्चों के लिए झूले, फिसल पट्टी आदि लगाई गईं है। वहां ग्रामवासी अपने बेटे बेटियों का रिश्ता पक्का करने का कार्यक्रम भी करते हैं। आज वहां बहुत विकास हुआ है। अभी मुक्तिधाम को लिम्का बुक ऑफ़ वल्र्ड रिकॉर्ड्स में नामित करने के लिए नाम भेजा है। इसका मुख्य श्रेय डॉ. अनिल गुप्ता एवं श्री जगदीस प्रसाद जी, जोकि डॉ. हरिओम गुप्ता के बड़े भाई है, को जाता है। श्री जगदीश प्रसाद जी गांव के चहूं दिग विकास के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं।
1980 तक यहां
सडकें टूटी फूटी थी,
पूरा क्षेत्र चंबल घाटी के
रेवाइन में आता है।
रेवाइन क्षेत्र होने के कारण
सड़कें बहुत पतली थी,
माने जब किसी भी
गाड़ी को दूसरी गाड़ी
को रास्ता देना होता था
तो दोनों ही गाड़ियों को
कच्ची दुस्तर सड़क पर उतरना
पढ़ता था। अब वहां
डबल लेन अच्छी सड़क
बन गई है।
अभी भी सड़कों का चौड़ीकरण हो रहा है। आज वहां ४० विद्यालय हैं. . कूच तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के भी हैं। महिलाओं की स्थिति भी प[अहले से बेहतर है। बहुत सी महिलाए स्कूलों में शिक्षण कार्य मैं संलग्न हैं। सभी भी बहुत सा कार्य करना बाकि है। विकास एक अनवरत प्रक्रिया है, जो हमेशा चलती रहती है एवं चलती रहेगी। अभी साफ़-सफाई, जल निकासी एवं गॉंव के अंदर की सडकों में सुधर होना है , एवं हो भी रहा है। कचरा प्रबंधन एवं पशु पालन एक बड़ा प्रश्न है ।
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