जन-सरोकारों की एक ‘सार्थक’ यात्रा
उमेश चन्द्र पंत
(संयोजक- सार्थक प्रयास)
हमीं ने सजाया संवारा भी है,
जमाने पे कुछ हक हमारा भी है।
तुम्हीं ने कहा था कि कहते हैं लोग,
हमारे दुखों का किनारा भी है।
दिये जख्म हैं जिन्दगी ने तो क्या,
मुझे जिन्दगी ने निखारा भी है।
मैं घूमूं नगर-गांव थैला लिये,
है मकसद तो जीवन की धारा भी है।
लो हम चल पड़े हैं मशालें लिये,
उजालों को हमने पुकारा भी है।
जनकवि बल्ली सिंह चीमा की यह गजल उन लोगों के लिये बहुत प्रासंगिक है जो अंधरों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हैं। डठकर। यह लड़ाई जब मुकाम पर पहुंचती है तो कई घरों में रोशनी विखेरती है। इसकी शुरुआत तो कहीं न कहीं से करनी ही होती है। इस शिक्षा की रोशनी को जलाने का बीड़ा उठाया ‘सार्थक प्रयास’ संस्था ने। बच्चों को शिक्षा देने के उद्देश्य से। ऐसे बच्चे जो आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से हैं। जिनके यहां अभी तक शिक्षा के महत्व को समझा नहीं गया। झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को इस तरह की शिक्षा की जरूरत थी। उनके परिवारों या अभिभावाकों को भी शिक्षा के प्रति जागरूक करने का एक सामाजिक दायित्व था। बिना अभिभावकों के बच्चों को पढ़ाना संभव नहीं था। दिल्ली से सटे गाजियाबाद के वसुंधरा में भवन निर्माण मजदूरों के बच्चों को पढ़ाने की मंशा से यह यात्रा शुरू हुई। यह सिलसिला पिछले 10 सालों से चल रहा है।
‘सार्थक
प्रयास’ की यह यात्रा
इतनी सहज और सरल
नहीं थी। यह अच्छा
रहा कि जब ‘सार्थक
प्रयास’ अपने शिक्षा
की इस ज्योति को
जला रहा था वसुंधरा
में निर्माण कार्य
लंबे समय तक चलने
वाले थे। पहले
तो बच्चे मिले
ही नहीं। बच्चों
के अभिभावकों को
समझाना भी बहुत
कठिन था। फिर एक-दो
कर बच्चे जुटने
शुरू हुये। उनकी
पढ़ने में दिलचस्पी
होने लगी। कई अन्य
गतिविधियों से
जोड़कर उनमें आत्मविश्वास
भी आने लगा। संस्था
के कार्यकर्ताओं
ने पहले बच्चों
को अपनी घरों की
छतों पर पढ़ाना
शुरू किया। जो
लोग नौकरी करते
थे वे अपनी छुट्टी
के दिन बच्चों
को पढ़ाते थे। जो
महिलायें घर पर
थी उन्होंने बच्चों
को जब भी समय मिलता
पढ़ाया। अब उनके
अभिभावकों को भी
लगने लगा कि उनके
बच्चों में परिवर्तन
आने लगा है। उनकी
रुचि भी बढ़ी। ‘सार्थक
प्रयास’ ने इन बच्चों
को अब स्कूलों
में भी दाखिला
दिलाना शुरू कर
दिया। अब हर साल
नये बच्चे इस अभियान
में जुड़ते हैं।
अब वसुंधरा में
निर्माण मजदूरों
के बच्चों के अलावा
बड़ी संख्या में
झुग्गी में रहने
वाले बच्चे भी
हैं, जो शिक्षा
के महत्व को समझ
रहे हैं। संस्था
ने इन बच्चों में
आत्मविश्वास जगाने
के लिये कई ऐसे
कार्यक्रम दिये
हैं जिनमें अब
उनके अभिभावक भी
उत्साह से भाग
लेते हैं। बच्चों
की पढ़ाई-लिखाई
के अलावा हर महीने
बच्चों के जन्मदिन
मनाने की पंरपरा
भी स्थापित हो
गई है। इसमें वे
लोग भी दिलचस्पी
दिखाते हैं जिनका
सामाजिक सरोकारों
से रिश्ता है।
वे इन बच्चों का
जन्मदिन मनाने
में पहल भी करते
हैं। कई लोगों
ने अपने बच्चों
का जन्मदिन इन
बच्चों के साथ
मनाने की शुरुआत
की है। राष्ट्रीय
पर्वो और खास मौकों
पर संस्था बच्चों
के लिये कुछ न कुछ
कार्यक्रम आयोजित
करती है। इस समय
वसुंधरा में 50 से
अधिक बच्चे हैं।
‘सार्थक
प्रयास’ ने बच्चों
की संख्या को देखते
हुये और उनके सर्वागीण
विकास के लिये
आगे की बात सोची।
समझा गया कि इनके
लिये एक ऐसे केन्द्र
की स्थापना हो
जहां बच्चे नियमित
आकर अपनी पढ़ाई
और आपस में मिल
सकें। इसके लिये
एक पुस्तकालय खोलने
का विचार मन में
आया। वसुंधरा में
ही एक जगह लेकर
पुस्तकालय की नींव
रखी गई। दिल्ली
में अपने सारे
पत्रकार, बुद्धिजीवी,
प्राध्यापक, वकील,
सामाजिक कार्यकर्ताओं
के पास गये। उनसे
किताबों मांगी।
उन लोगों ने इस
नेक काम के लिये
संस्था को बड़ी
संख्या में पुस्तकें
उपलब्ध कराई। आज
इस पुस्तकालय में
पांच हजार से अधिक
पुस्तकें हैं।
इसी क्रम को आगे
बढ़ाते हुये ‘सार्थक
प्रयास’ ने बच्चों
को प्रतियोगी परीक्षाओं
के लिये तैयार
करने का काम किया।
‘सार्थक प्रयास’
की पहल पर कई बच्चे
अब हाईस्कूल और
इंटरमीडिएट भी
कर चुके थे। उन्हें
प्रतियोगी परीक्षाओं
में मदद देने के
लिये कोचिंग की
व्यवस्था की गई।
आज कई लोगों की
मदद से संस्था
के पुस्तकालय में
ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था
है। यहां बच्चे
नियत समय पर ऑनलाइन शिक्षा ले रहे हैं।
पुस्तकालय में
कंप्यूटर ओर प्रोजेक्टर
की भी व्यवस्था
है। बच्चों को
समय-समय पर अच्छी
फिल्में दिखाई
जाती हैं। ‘सार्थक
प्रयास’ के साथ
जुड़ा एक छात्र
इस समय इंजीनियरिंग
कर पढ़ाई कर रहा
है।
‘सार्थक
प्रयास’ की यह यात्रा
आगे बढ़ती रही।
गाजियाबाद (वसुंधरा)
के बाद संस्था
ने पहाड़ में उन
बच्चों की मदद
करने का फैसला
लिया जो आर्थिक
रूप से कमजोर हैं।
ऐसे में पहला पड़ाव
डाला चैखुटिया
में। यहां ‘सार्थक
प्रयास’ को कुछ
ऐसे बच्चे मिले
जो निराश्रित थे।
उन्हें आगे बढ़ाने
का बीड़ा उठाया।
कुछ ही समय में
ऐसे बहुत सारे
बच्चे गांवों में
थे जिनके ऊपर से
माता-पिता का साया
उठ गया था। कई बच्चे
ऐसे थे जिनके परिवार
में कमाने वाला
कोई नहीं था। बहुतों
के मां-बाप किसी
बीमारी से ग्रस्त
थे। कुछ आर्थिक
रूप से बहुत कमजोर
थे। ऐसे 60 बच्चों
की शिक्षा, भोजन,
कपड़े आदि की व्यवस्था
का जिम्मा संस्था
ने लिया। इन बच्चों
में जीवन के प्रति
नया उत्साह पैदा
हुआ। बच्चों में
आत्मविश्वास और
आत्मसम्मान का
भाव लाने के लिये
उन्हें मुख्यधारा
के साथ जोड़ने का
काम किया गया।
पढ़ाई के अलावा
उनकी नैसर्गिक
प्रतिभा को बढ़ाने
के लिये उन्हें
अन्य गतिविधियों
से भी जोड़ा गया।
इन्हें दिल्ली
जैसे शहर में लाया
गया। दिल्ली दिखाने
के बाद राजेन्द्र
भवन में इन बच्चों
ने अपनी सांस्कृतिक
प्रस्तुतियां
दी। इस समारोह
में देश के कई शिक्षाविदो,
बुद्धिजीवी, पत्रकार,
सामाजिक कार्यकत्र्ताओं
ने शिरकत की। सभी
ने बच्चों की इस
प्रतिभा की भूरि-भूरि
प्रसंशा की। इन्हीं
बच्चों में कई
बच्चे पाॅलीटेक्नीक
और ग्रेजुएशन कर
रहे हैं। ‘सार्थक
प्रयास’ ने चैखुटिया
में इन बच्चों
के लिये एक पुस्तकालय
की स्थापना की।
इस पुस्तकालय में
इस समय तीन हजार
से अधिक पुस्तकें
हैं। बच्चों के
लिये कंप्यूटर
की व्यवस्था भी
है। अभी और बहुत
सारे बच्चों को
संस्था ने चिन्हित
किया है। ‘सार्थक
प्रयास’ हर साल
इन बच्चों के उत्साहवर्धन
के लिये अपना ‘स्थापना
दिवस’ मनाती है।
इसमें बच्चों द्वारा
कई सांस्कृतिक
प्रस्तुतियां
दी जाती हैं। डा.
आशुतोष उपाध्याय
जी के नेतृत्व
में ‘प्रथम’ संस्था
ने तीन दिन का बाल
विज्ञान मेला आयोजित
किया। इस बाल मेले
में दो सौ से अधिक
स्कूली बच्चों
ने भाग लिया। इन
बच्चों ने विज्ञान
के कई ऐसे मॉडल
बनाये जो दर्शकों
को अचंभित करने
वाले थे।
<चैखुटिया
के बाद ‘सार्थक
प्रयास’ की यात्रा
का अगला पड़ाव था
केदारघाटी। यहां
भी बच्चों की शिक्षा
के लिये संस्था
विभिन्न गांवों
में बच्चों का
चयन किया। वर्ष
2013 की आपदा में प्रभावित
गांवों के बच्चों
को ही इसके लिये
चयनित किया गया।
इस समय ‘सार्थक
प्रयास’ के पास
केदार घाटी में
24 बच्चे हैं जिनको
स्कूलों में दाखिला
दिलाया गया है।
संस्था इन बच्चों
की फीस, कॉपी किताबें और
कपड़ों की व्यवस्था
करती है। यहां
एक पुस्तकालय खोलने
की योजना है। इस
पुस्तकालय के लिये
लगभग 2000 पुस्तकों
का संग्रह कर लिया
गया है। इस वर्ष
मई-जून में केदार
घाटी के फाटा में
बच्चों के लिये
पुस्तकालय खुल
जायेगा।
‘सार्थक
प्रयास’ उत्तराखंड
में 2010 में आई आपदा
के समय राहत कार्य
में हिस्सा लिया।
उस समय राज्य के
विभिन्न हिस्सों
के तीन हजार से
ज्यादा गांव आपदा
से प्रभावित थे।
बागेश्वर जनपद
के सुमगढ़ में स्कूल
के झह जाने से 18 बच्चों
की मौत के अलावा
अल्मोड़ा में एक
गांव पूरी तरह
तहस-नहस हो गया
था। यहां 14 लोगों
की मौत हो गई थी।
गढ़वाल में रुद्रप्रयाग,
टिहरी, उत्तरकाशी
और चमोली में जानमाल
का भारी नुकसान
हुआ। इस आपदा में
लगभग 272 लोगों को
अपनी जान गंवानी
पड़ी। इन जगहों
में जाकर ‘सार्थक
प्रयास’ ने बहुत
बढ-चढ़कर काम किया।यह
सिलसिला 2013 की आपदा
तक चलता रहा। ‘सार्थक
प्रयास’ ने हर आपदा
के समय बढ़-चढ़कर
राहत कार्यो में
हिस्सा लिया। दूरस्थ
क्षेत्रों में
जाकर जरूरतमंदो
की खबर ली। इतना
ही नहीं आज भी आपदा
पीडित परिवारों
से उनका रिश्ता
बना है। संस्था
लगातार असहाय,
कमजोर और जरूतरमंद
लोगों की मदद के
लिये हमेशा तत्पर
है। मरीजों को
अस्पताल में मदद
के अलावा ब्लड
की व्यवस्था करने
के अलावा जब कभी
आर्थिक संसाधनों
की जरूरत पड़ती
है तो इसे पूरा
करने के अभियान
में संस्था लग
जाती है। इसके
अलावा दिल्ली और
इसके आसपास जाड़ों
में सड़क के किनारे
ठंड में ठिठुरते
लोगों को प्रतिवर्ष
दिसंबर माह में
संस्था कंबल वितरण
का काम करती है।
संस्था
अपने स्थापना दिवस
पर एक स्मारिका
का भी प्रतिवर्ष
प्रकाशन करती है।
‘दृष्टि’ नाम से
प्रकाशित होने
वाली यह स्मारिका
हर वर्ष किसी विषय
पर केन्द्रित रहती
है। अभी तक ‘शिक्षा
के अधिकार’, ‘महिला
सशक्तीकरण’, ‘बच्चों
पर केन्द्रित’,
‘विज्ञान पर केन्द्रित’
और पर्यावरण को
आपदाओं पर अंक
प्रकाशित हो चुके
हैं। ‘सार्थक प्रयास’
अब एक नये अभियान
की ओर बढ़ रहा है।
वह है चैखुटिया
में सांस्कृतिक
केन्द्र की स्थापना
का। बहुत प्रयासों
और कई लोगों की
मदद से चैखुटिया
में ढाई नाली जमीन
की व्यवस्था हो
गई है। अब उसमें
एक भवन का निर्माण
किया जाना है।
इसमें फिलहाल पुस्तकालय,
संग्रहालय और एक
बहुद्देश्यीय
सभागार बनाने की
योजना है। बहुत
जल्दी इसका भी
शिलान्यास किया
जायेगा।
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