अंदाज ए बयां

लाल शर्ट और ब्लैक फुल पैण्ट : टेक्सस यात्रा

 समीर लाल ‘समीर

http://lh3.ggpht.com/_N7sdMZXEIvI/SoyOoMaStII/AAAAAAAAESg/OdGUkFgLpAY/s800/samneeraj1.jpgदस दिवसीय चार पड़ावीय यात्रा का प्रथम पड़ाव ह्यूस्टन -रात साढ़े नौ बजे नीरज रोहिल्ला अपने घर से १ घंटा कार चला कर एयरपोर्ट से आकर शहर का चक्कर लगवाते हुए और अपनी यूनिवर्सिटी और अपने डिपार्टमेन्ट ऑफ केमिकल इन्जिन्यरिंग घूमवाते हुए अपने घर ले गये.

गप्पे हुईं. उनके फ्लैट मैट अंकुर से मुलाकात बात हुई. खाना खाया गया और रात १ बजे निद्रा को प्राप्त हुए. सुबह ११ बजे डेलस के लिए रवाना होना था बस़ द्वारा अतः ९ बजे नहा धोकर रास्ते में एक रेस्टॉरेन्ट में नाश्ता कराते हुए नीरज बाबू हमें बस अड्डे उतार कर यूनिवर्सिटी रवाना हो गये और हम सपत्नीक बस मे लाद दिये गये जिसके नीचे हमारे दोनों बैग चैक इन हो गये.

बस में यात्रा करनी थी. हालाँकि बस तो एयर कन्डीशन्ड थी मगर फिर भी बस में चढ़ना, उतरना और टेक्सस का गरम मौसम. यही सब विचार कर अपने खुद के रंग की परवाह किये बगैर लाल रंग की टीशर्ट और काली फुल पैण्ट पहन लिये थे कि पसीने में थोड़ा गन्दी भी हो जाये तो पता न लगे.

फिर डैलस पर मित्र लेने भी आ रहे थे. उनके घर जाकर स्नान आदि कर झकाझक सफेद शर्ट पहन, परफ्यूम लगा शाम घूमने निकलेंगे शहर में, ऐसा सोचा था.

पाँच घंटे की शानदार यात्रा में तीन चार जगह रुकते हुए बस ठीक चार बजे आ लगी डैलस. उतरे, मित्र लेने आये हुए थे. हाथ गले मिलाये गये और सामान उतरा. पत्नी का बैग उठाया और हमारा? यहाँ देखा, वहाँ देखा. ड्राईवर से पूछा. बाहर भागे कि शायद कोई भूले से तो नहीं ले गया. सब बेकार. बैग गायब. इस रुट के बारे में सुना जरुर था मगर सुनी बात आज तक मानी हो, तब न!! सामान चोरी-लगा बांदा मानिकपुर लाईन पर यात्रा की हो.

कई बार पाठक पूछने लगते हैं कि सारे कांड आपके साथ ही क्यूँ होते हैं आखिर. अब ये बात तो खुदा ही जाने मगर मुझे लगने लगा कि मेरे प्रति कांडो का कुछ सहज आकर्षण हैं. सलमान खान को कभी किसी ने लड़कियों को आकर्षित करने वाल ’ए चिक मैगनेट’ कहा था. मुझे अब लगता है कि मेरे लिए भी एक खिताब तय कर दिया जाना चाहिये -’ए काण्ड मैगनेट’ बैग चला गया और हम खड़े खड़े, हाथ सर पर धरे.....लूट में लुटे हुए..गुबार देखते रहे. बैग में ७ फुल पैण्ट, १० शर्ट, ९ मौजे, अनेक रुमाल, चप्पल, अन्डर गार्मेन्टस (ब्रेन्डेड :)), १२ प्रिन्टेड कविताऐं (वहाँ पढ़कर सुनाने के लिए रखे थे कि मौका सुनाने का तो निकाल ही लेंगे) , परफ्यूम अज़ारो की बोतल और एक स्कॉच की बेहतरीन नई बोतल. सब चली गई. स्कॉच वाली बोतल ही बच गई होती तो वहीं बैठ कुछ गम गलत कर लेते मगर वो भी जाती रही तो गम गलत न हो पाया.

चोर चोर होता है. उसे इस बात से कुछ मतलब नहीं कि क्या चुराया. वो इसी में खुश हो रहा होगा कि चुरा लिया. क्या करोगे भला हमारी फुल पेन्टों का? सात जन्म लगेंगे हेल्थ बनाने में तुमको और कविता?? पढ़ भी लोगे तो तुमसे सुनेगा कौन? कविता तो ठीक है, उसे सुनाना एक कला है, वो भी चुरा लोगे क्या?

क्लेम वगैरह लिखवा घर लौट आये मित्र संग. पत्नी, मित्र और सभी नहा कर फ्रेश तैयार और हम वही लाल टीशर्ट और काली फुल पेन्ट. दो दिन की दाढ़ी भी उग आई और दाढ़ी बनाने वाला रेज़र भी बैग के साथ ही निकल लिया. बस वालों ने कहा था कि अगली बस ८ बजे आयेगी, शायद उसमें चढ़ गया होगा. आकर देख लेना. तो ८ बजे फिर गये. ८.३० बजे तक उस नई बस का सामान भी खाली और हम भी. कोई सामान नहीं आया. सारी आशायें खत्म.

अब ९ बजे बाजार भी बन्द कि कुछ नये कपड़े खरीद लें. बाहर ही लाल टीशर्ट और काली फुलपेन्ट में खाना खा कर चले आये. रेस्टारेन्ट वाले को क्या मालूम कि सुबह से ही http://lh6.ggpht.com/_N7sdMZXEIvI/SoyNmKBtOMI/AAAAAAAAESc/OoFxm6ovcec/s800/sssl.jpgयही पहने घूम रहे हैं. दाढ़ी भी रफ लुक वाले फैशन में मान ली होगी-धन्यवाद अनिल कपूर एण्ड रित्विक रोशन!!घर आये. सब नाईट सूट पहन सोने चले और हम लाल टीशर्ट और काली फुलपेन्ट. क्या पहनें? सब तो चला गया. अच्छा हुआ बेडरुम में दरवाजा था तो जो चादर औढने को दी गई, उसे लूँगी समझ लपेट कर सो गये. सुबह सबके उठने के पहले ही जागे और लाल टीशर्ट और काली फुलपेन्ट में आ गये.

  मित्र का घर शहर से बाहर और जरा एकांत में है. जब तक हम बाथरुम वगैरह से फुरसत होकर आये, मित्र हमारी पत्नी से यह कह कर कि शाम को तैयार रहें. ५ बजे दफ्तर से आते ही बाजार चलेंगे और फिर वहीं से घूमने चले चलेंगे. मित्र की माता जी ने नाश्ता वगैरह बड़ा शानदार कराया और हम लाल टीशर्ट और काली फुलपेन्ट में बैठे खिड़की से बाहर झांकते समय काट रहे हैं कि कब ५ बजे और मित्र लौटें तो बाजार जायें. लंच भी हो गया. दोपहर की हल्की नींद भी काट ली मगर ५ हैं कि बज ही नहीं रहे.

जब यह आलेख लिख रहा हूँ, ४ बजा है. घर में हलचल मची है. सब तैयार हो रहे हैं कि ५ बजे बाजार जाना है और फिर वहीं से घूमने. हमें भी भूले से कोई कह गया है कि तैयार हो जाईये, ५ बजे निकलना है. अरे महाराज, जो तैयार ही हो सकते तो बाजार काहे जाते. :) तैयार ही समझो. लाल टीशर्ट और काली फुलपेन्ट- कोई खराब लग रही है क्या?

मुश्किल ये है कि हमारे साईज की फुल पेन्ट तो मिलती भी नहीं. भारत से सिलवा कर लाते हैं हर बार. जैसा पहले भी बता चुके हैं कि यहाँ के लोगों के साईज़ अजब है. इनकी कमर हमें अट जाये, तो लेन्थ डबल होती है और अगर लेन्थ फिट तो कमर आधी से भी कम. पत्नी से कहा तो कहती है, सबको तो अट जाती है. आप ही की साइज़ डिफेक्टिव होगी मगर अपनी कमीज का छेद कब किसे नजर आया है. दोष तो दूसरे का ही होता है.

लगता है वो इलास्टिक वाली पेन्ट खरीदना पड़ेगी. वन साइज फिट ऑल वाली जो गर्भवति महिलाओं की दुकान पर मिलती है कि महिने के महिने साईज बदलता भी रहे तो भी पेन्ट एडजस्ट होती जाये. वहीं जाता हूँ और क्या रास्ता है?

मित्र के घर से उनकी पत्नी का डिस्पोजेबल रेज़र लेकर दाढ़ी तो किसी तरह बना ली. लेड़ीज़ रेजर था. क्या सोच रहा होगा हमारे गाल पर घूमते. शरम भी आई, लाल हुए..मगर करते क्या?

कमीज तो मिल जायेगी नाप की. चप्पल की जरुरत नहीं. जूते से काम चल जायेगा. स्कॉच उनकी मेहमान नवाज़ी के लिए छोड़ देते है. अभी तो सात दिन काटने हैं टोरंटो पहुँचने के पहले.

वैसे पहुँच कर भी क्या कर लेंगे. सारी अच्छी वाली ड्रेस तो रुआब झाड़ने के लिए साथ लेते आये थे. वहाँ तो अब वो ही हैं जो नित में पहन काम चलता रहे.

हे प्रभु, इस काण्ड मैगनेट के साथ इतना बड़ा कण्ड-क्या चाहते हो!!! आगे अभी यात्रा बची ही है, जाने क्या क्या देखना बाकी है!!!

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