भूलना - एक कला

विशाल सरीन 

कुछ लोगों को भूलने की आदत होती है। रोजाना की ज़िन्दगी में ऐसी बहुत सी समस्याएं होती है जो भूलने से संबंधित है। जैसे किसी चीज़ की चाबी या रुपयों को रख कर भूलना आम बात है। हर कोई इन समस्याओं को हल करने के लिए अलग माध्यम का सहारा लेता है। कुछ लोग पर्ची पर अपने काम लिख लेते है, तो कोई किसी को काम याद करवाने के लिए कहता है। आज के तकनीकी युग में बहुत से उपकरण है जो समय रहते किसी काम को करने लिए याद कराते है। वहीं पहले समय में महिलाएं किसी काम को याद रखने के लिए अपने दुपट्टे पर गाँठ बाँध लेती थी, उस गाँठ को देखते ही उन्हें वह काम याद आ जाता था।

एक बार किसी रिश्तेदार ने राजू को कुछ रुपए दिए और बोला अपने पिताजी को दे देना। घर पहुँचते ही राजू खेलने में व्यस्त हो गया और भूल गया कि पिताजी को रुपए देने है। रुपये ज्यों के त्यों पतलून की जेब में पड़े रहे और पतलून धोने वाले कपड़ों में रख दी गई। अकसर कपड़े धोने से पहले देख लिया जाता है कि किसी कपड़े की जेब में कुछ रखा तो नहीं है। लेकिन किसी तरह कपड़े रुपयों समेत धुल गए और सूखने पर तह लगाकर कपाट में रख दिए गए।

कुछ दिन बाद, उसी रिश्तेदार का फ़ोन राजू के पिताजी को आया कि आप को रुपये मिल गए होंगे जो राजू के हाथों भिजवाये थे। राजू के पिता को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि राजू ऐसा बच्चा तो नहीं है जो रुपये नहीं देगा परन्तु उसने उन रुपयों का किया क्या होगा। राजू के साथ बात करने पर उसने बताया कि रुपयों तो मैंने कहीं खर्च नहीं किए, फिर रुपये कहां गए। याद करते हुए बात उन कपड़ों की हुई जो उस दिन राजू ने पहने थे। कपड़े देखने पर रुपये मिल गए। राजू को अपनी गलती का अहसास हुआ और भविष्य के लिए सीख भी मिली।

भूलना दो प्रकार से हो  सकता है - आदतन या जान-बूझकर। राजू का पिताजी को रुपयों देना भूलना आदतन था, जबकि कभी-कभी कुछ बातें जान-बूझकर भी भूल जानी चाहिए। जैसे किसी ने धोखा दिया हो या आपका दिल दुखाया हो। नहीं तो ऐसी बातें आपको जिंदगी में आगे नहीं बढ़ने देती और समय-समय पर दुख पहुंचाती है। इससे कई बार इंसान नकारात्मक सोच का शिकार होने लगता है।

एक बार दो भाई खेलने के लिए समुंदर किनारे गए। खेलते हुए छोटे भाई से कुछ गलती हुई, बड़े भाई ने छोटे को थप्पड़ लगा दिया। इस पर छोटे भाई ने वहां पड़ी रेत पर लिख दिया कि बड़े भाई ने थप्पड़ मारा। अगले दिन वह फिर से समुंदर किनारे खेल रहे थे। कुछ देर खेलने के बाद दोनों समुंदर में नहाने लगे। इस पर छोटा भाई समुंदर की तेज लहरों में हिचकोले खाने लगा और डूबने लगा। बड़े भाई ने अपनी जान जोखिम में डाल कर उसको बचाया। इस पर छोटे भाई ने पास पड़े पत्थरों पर लिखा कि बड़े भाई ने मौत के मुंह से बचाया।

बड़े भाई ने छोटे को इसका कारण पूछा कि कल तुमने मिट्टी पर लिखा था तो आज पत्थर पर क्यों लिखा। छोटे भाई ने बड़ी नम्रता से बताया कि जो बातें आपके दिल को दुखाए या संबंधों में दूरी का कारण बने उनको ज्यादा देर तक याद नहीं रखना चाहिए। इसलिए थप्पड़ वाली बात को मिट्टी पर लिखा। अगर किसी कारणवश दूरी बने तो ऐसी बातों को याद करना चाहिए जो आपसी प्यार को बनाये रखे। इसलिए मैंने जान बचाने वाली बात को ऐसी जगह लिखा जो कभी मिटे नहीं।

विद्यार्थी जीवन में भी कई बार कुछ चीजों को भुलाना पड़ता है। जैसे अगर किसी विषय पर कुछ गलत सीख लिया है। उसके उपरान्त, आप किसी परिपक्व शिक्षक से उसी विषय के बारे में सीखने जाते हैं, जिसके लिए पहले गलत सीखा हुआ भूलना पड़ता है। लेकिन अगर आपके लिए उसको भुला पाना मुश्किल है, तो सही सीखना एक चुनौती बन जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि इम्तिहान के समय पाठ्यक्रम से ही कुछ भूल जाए। उम्र के विभिन्न पड़ाव भी भूलने और याद रखने की क्षमता में अहम भूमिका निभाते है। एक छोटे बच्चे को आप किसी कारणवश अगर दो थप्पड़ लगाते हैं या डांटते हैं, तो थोड़े समय बाद वही बच्चा आपसे फिर ऐसे बात करता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं। उसी बच्चे को अगर आप थोड़ा बड़े होने पर ऐसा करें तो व्यवहार वैसा नहीं रहेगा।

कोरे कागज़ पर लिखना आसान होता है। जबकि एक कागज़ जिस पर पहले से कुछ लिखा है, उसको मिटा कर लिखना थोड़ा मुश्किल होता है। ऐसे ही गीली मिट्टी को आकार देना आसान होता है, एक बार आकार देकर उसको बदलना थोड़ा चुनौती पूर्ण होता है। भूलने पर बहुत रिसर्च भी की गयी है। परन्तु हमारा यहाँ पर भूलने की कला से तात्पर्य जान-बूझकर भूलने से है। इस कला का इस्तेमाल नया सीखने और आपसी प्यार को बढ़ावा देने के लिए करना चाहिए जिससे बहुत सी समस्याओं का समाधान हो सकता है।

 

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