नहीं-नहीं, गुस्सा नहीं करना
विशाल सरीन
आज की तारीख में दुनिया में बहुत सी बीमारियां हो गई है। इनमें से कुछ तो रोजाना के खान-पान के तरीके में बदलाव के कारण है, जैसे गैस्ट्रिक, स्टोन, हॉट बर्न, इत्यादि। ऐसा खाना जो हजम बहुत मुश्किल से होता है, मोटापा भी इसी के कारण होता है।
शारीरिक बीमारियों के साथ-साथ, हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में बदलाव का कारण बर्ताव है। जैसे कि गुस्सा, जल्दी के चक्कर में काम ठीक से न करना, एक दूसरे के आदर सम्मान में कमी इत्यादि। बर्ताव में यह बदलाव किसी बीमारी से कम नहीं। गुस्सा बहुत ही हानिकारक है जो कि किसी शारीरिक बीमारी से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। क्योंकि शारीरिक बीमारी तो किसी एक की जान के लिए खतरा हो सकती है। जबकि व्यवहारिक बीमारी कितनों की जान ले जाए, कहा नहीं जा सकता।
क्रोध के समय इंसान की सुध-बुध काम नहीं करती, बल्कि काम करती भी है तो नकारात्मक तरीके से और इस समय को संभालना बहुत मुश्किल होता है। छोटे बड़े का ध्यान नहीं रहता। अगर कोई इस समय ड्राइविंग कर रहा है तो पता नहीं कितनों की जान को खतरा हो जाता है। ड्राइविंग करना बड़ा ही कॉन्शियस का काम होता है, जबकि गुस्से के समय कॉन्शियस ही गायब हो जाता है।
कुछ लोग जैसे कि डॉक्टर, ड्राइवर चाहे वह जहाज उड़ा रहा हो या ट्रेन चला रहा हूं, चाहे एक मोटरबाइक ही क्यों ना चला रहा हो - गुस्से में वह अपने काम में ध्यान नहीं लगा पाते, एकाग्रता भंग हो जाती है। जिसका नतीजा किसी की जान भी ले सकता है। अगर कोई सहकर्मी प्यार से भी बात करें तो झगड़ा होने की संभावना रहती है। ऐसे ही व्यापारी लोग किसी ग्राहक से बात करते-करते, गलत तरीके के कारण लाखों का कारोबार खराब कर बैठते हैं।
ऐसे ही विद्यार्थी जीवन में भी गुस्सैल लोग सहपाठियों से साथ छुड़वा बैठते हैं। जल्दी ऐसे लोगों से कोई दोस्ती भी नहीं करता। क्योंकि वह कब किसके सामने बेइज्जत कर दें, उनको पता नहीं लगता। इज्जत तो हर किसी को प्यारी होती है।
अगर मां-बाप गुस्सैल हों तो उनके बच्चे सहमे-सहमे से रहते हैं, क्योंकि उनको पता नहीं होता कि कब किस बात में उनकी धुलाई हो जाए। अक्सर ऐसे माहौल में बच्चे मां बाप से अपने मन की बात भी नहीं कह पाते।
आजकल तो कुछ बच्चों में भी बहुत गुस्सा देखा गया है। अक्सर मां बाप अगर प्यार से भी बात करें तो बच्चे खुद को भी नुकसान पहुंचा देते हैं। अपने मुंह पर थप्पड़ मारना, अपने बाल नोचना, उनके लिए आम बात हो जाती है।
एक दिन गुस्सा आने पर पति पत्नी में तकरार हुई। पत्नी ने अपना फोन पटक कर नीचे फर्श पर दे मारा कि पति को गुस्सा दिखाऊं। पति ने अपना फोन भी पटक कर नीचे मारा। सम्भावना है कि गुस्से के इन क्षणों में 50 से 60 हज़ार रुपये का नुकसान हुआ हो और अगर यह सब बच्चे के सामने हुआ हो, तो उन पर जो मानसिक असर हुआ होगा उसका मूल्यांकन करना मुश्किल है। एक लिमिट का गुस्सा होना भी चाहिए क्योंकि हल्की-फुल्की तकरार प्यार को और भी बढ़ावा देती है।
जिंदगी बहुत महत्वपूर्ण है, और इसके सारे कार्य भी जरूरी है। लेकिन एक बार फेल हो जाने का मतलब नहीं कि वह काम नामुमकिन है। उबलते पानी में थोड़ी ठंडक आने दें, नहीं तो वह पीने से मुंह जल सकता है।
ऐसे में जिंदगी को थोड़ा सा ठहराव देकर सोचने की आवश्यकता है। जिन लोगों में भी गुस्से की आदत अथवा इसके लक्षण है, वह अपने अतीत के कुछ फैसलों के बारे में विश्लेषण करके देखें जो गुस्से में किए गए हैं। अवश्य ही आपको उनमें कुछ गलती नजर आएगी। ठंडे मन से सोचें तो एक्चुअल में आप वैसा नहीं करना चाहोगे। अगर आपको अपने बच्चे में ऐसा कुछ भी नजर आता है, तो उसको काउंसलिंग की जरूरत है। किसी बड़े खतरे का इंतजार ना करते हुए उनको सही दिशा दिखाएं।
बहुत सारे रिश्तों को ज़बान की मिठास से निभाया जा सकता है। रुके हुए काम को प्यार से कराया जा सकता है। झुकता वही है जिसको फल लगे होते हैं। प्यार, मुहब्बत, मिठास बहुत बड़ी चीज है, और हम यह दूसरों से उम्मीद करते हैं। जैसा व्यवहार आप दूसरों से अपने लिए चाहते हैं, वैसा ही आप दूसरों से करें। चेहरे पर हरदम मुस्कान रखें, मुस्कान और गुस्सा एक दूसरे के बैरी हैं, कभी साथ-साथ नहीं रह सकते। आइए मिलकर इसकी शुरुआत करें और जिस से भी बात करें उसके कानों में अपनी वाणी से शहद घोल दें।
—00—