दिल के रिश्ते  

विशाल सरीन 

घर में छोटा बच्चा है, जिसने अभी चलना भी नहीं सीखा। पिता सुबह से गया शाम को घर आया है, थका हारा सारे दिन के काम से। बच्चा अपने पिता को देखते ही गिरते-गिरते उठता है, भागता है किसी तरह पिता की गोद पाने के लिए। पिता बच्चे को देखकर सारे दिन की थकावट भूल जाता है। चेहरे पर मुस्कान लिए अपनी बाहें फैलाता है बच्चे को थामने के लिए। मिलाप होने पर दोनों को जैसे जन्मो की संतुष्टि मिल गई होती है, पा लिया होता है जैसे सारे जहां को।

बच्चा बड़ा होता है, पढ़ने-लिखने लगता है। पिता के साथ खेलना अच्छा लगता है। पिता सिखाता है, कैसे अच्छा खेलना है और कैसे उसका आनंद लेना है। रोज कुछ न कुछ नया सिखाने का प्रयत्न करता है।

बच्चा थोड़ा और बड़ा होता है, और फिर दोनों दोस्त बन जाते हैं। कभी कभार पिता के घर आने पर बच्चा अपने मित्रों के साथ व्यस्त होता है। पिता उसको देख कर खुश होता है। फिर समय गुज़रने पर बच्चे की बड़ी कक्षा की पढ़ाई होती है, पिता से ध्यान हटकर उसकी व्यस्तता दूसरी तरफ बढ़ने लगती है।

धीरे-धीरे बच्चा बड़ा होने पर नौकरी, फिर शादी के बाद जिम्मेदारियां बढ़ जाती है। पिता की नजरें आज भी उस छोटे बच्चे को देख रही है। जबकि बच्चे की नजर दुनिया की तरफ है, कैसे सफल होना है, पैसा कमाना इत्यादि।

फिर जैसा आमतः होता है कि बच्चा बेहतर संभावनाओं की तलाश में माता पिता को छोड़ कहीं दूर चला जाता है। जिंदगी में बड़ा बनने और नाम कमाने में व्यस्त हो जाता है। बहुत सारे मित्र और सोशल सर्कल में मशगूल हो जाता है। पिता उसी तरीके से घर में आता है, बच्चे को मिलने के लिए बाहें फैलाता है। पर पता चलता है, बच्चा बड़ा हो गया है और अपना जीवन संजोने में व्यस्त हो गया है । अतः पिता भी उसकी सफलता में ही अपनी खुशी समझता है। अपने दिल के अरमान कभी नहीं खोलता, बस अपने अपनों  की सफलता की प्रार्थना करता है।

जिंदगी ऐसे ही चलती जा रही है और हम लोग एक दूसरे को यही समझाते हैं कि ऐसे ही होता है। लेकिन जिंदगी जीने का जो मजा अपनों में रहकर है, उसका कोई विकल्प नहीं। पैसा कमाना, खाना तो दाल रोटी है। लेकिन जो सन्तुष्टि अपनों में रहकर मिलती है, उसका कोई सानी नहीं। अकेले में रहकर रोना, याद करना और फिर दिल को समझाना, ऐसे तो हम न थे। हर किसी की पारिवारिक स्थिति अलग होती है। ऐसे भी रिश्ते है जो दूर रहकर भी निभाए जा सकते है। आपस में प्यार बना रहना चाहिए और एक दूसरे की बेहतरी के लिए प्रार्थना करते रहना चाहिए।

काश! बच्चे व्यस्तताओं के बीच बुजुर्ग हो चले माता पिता का भी उतना ही ध्यान रखें जितना उन्होंने अपनी व्यस्तताओं के बीच बच्चे को बड़ा करने में किया था। माता पिता सारी उम्र बच्चों की इच्छाओं का ध्यान रखते है और अपने समर्थ के अनुसार उनको पूरा करने के लिए प्रयासरत रहते है। जब बच्चे माता पिता की भावनाओं का आदर करना सीख लेते है, उस दिन से माता पिता को अपना जीवन साकार लगने लगता है।

खुशियां ढूंढ़ने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं होती, बल्कि वो हमारे आस पास ही होती है। जरूरत है बस उनको पहचानने की और अपनों के साथ बांटने की।

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