आओ   मिलकर   सोचें  :

मैं बुद्ध हूँ, मैं बुद्ध हूँ…

मुकेश आनंद

 

छद्म ब्राह्मणों के खिलाफ तो हूँ ही,

और मैं छद्म बौद्धों के भी विरुद्ध हूँ।

मैं बुद्ध हूँ, मैं बुद्ध हूँ।

 

थूकते बंधु को भी  विस्मृत करता हूँ,

मैं किसी स्मृति के लिए अवरूद्ध हूँ।

मैं बुद्ध हूँ, मैं बुद्ध हूँ।

 

स्मृतियों का ढेर है मानव, जानता हूँ,

ऐसे में, किसपे हुआ मैं कभी क्रुद्ध हूँ।

मैं बुद्ध हूँ, मैं बुद्ध हूँ।

 

मना किया था मत पूजना मुझे कभी,

नाम ले कर खुद समझते कि शुद्ध हूँ।

मैं बुद्ध हूँ, मैं बुद्ध हूँ।

 

मानव की स्मृति है शत्रु उसकी, बताया,

लोग उस स्मृति पर ठहर गए, क्षुब्ध हूँ।

मैं बुद्ध हूँ, मैं बुद्ध हूँ।

 

नास्तिकों का देव घोषित किया मुझको,

पर आस्तिकों के लिए सहज उपलब्ध हूँ।

मैं बुद्ध हूँ, मैं बुद्ध हूँ।

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