कोहरे में कैद ज़िन्दगी

                                     किसमत्ती चौरसिया 'स्नेहा' ' 


अभी- अभी ही संदेश आया - ' गुंजन विधवा हो गई''

इस खबर ने सुनहरे ख़्वाबों को कोहरे- सा ढक लिया।

अभी - अभी मेरे सामने ही तो उसका किसलय फूटा था

उसने गुलाबी लालिमा के साथ

इस दुनियावी आब को स्पर्श किया था

एक अनजान पुरुष को ताउम्र के लिए।

अभी तो उसकी अरुणाई निखरी भी नहीं थी

अभी तो दुधिया दाने सुगंध बिखेर ही रहे थे

अभी तो उसने जीवन महसूस भी नहीं किया

और अभी ही उसके प्रासाद में दीमक का प्रवेश।

अपने सपनों को आंचल की कोर में बांधे

वह भले ही मां की देहली पार की, ससुराल की चौखट ने

उसे खुलने से पहले ही बिखेर दिया।

दारू का नशा व कुत्सित- वृत्ति का उबाल

उसका हर लम्हा नारकीय कर गया

अभी तो वह आयी थी यहां

अपनी देह पर उस हैवान की क्रूर- छाप लेकर

मां का विदा- उपदेश

वह अपनी आत्मा के मृत्योपरान्त भी निभा रही थी

परंतु अमानुषी जीवन- जंग में वह ख़ुद ही हार गया।

अभी पता चला उसकी कराह का हक भी छीन

कुछ आनुवंशिक क्रूर उसकी सांसें भी खींच लिए।

अभी तो उसके बचपन का प्रभात

यौवन की चढ़ाई भी नहीं चढ़ा

कि उसका जीवन, बिन संध्या ही तमिस्राधीन हो गया।

मेरी आंखों में वह पल अब भी जिंदा है

जब पूरे स्कूल में उसकी दौड़ का कोई सानी नहीं था

वह समय, जब पूरा गांव उसकी प्रतिभा पर मुस्कुरा उठा था

विधायक ने ख़ुद पुरस्कार सौंप

यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया था

कितना सुखद था वह क्षण जब उसके गले की मिठास

और पांवों की थिरकन ने सभी को मोह लिया था।

अभी - अभी खंडित संसार व सूनी मांग

देखकर पूरा गांव कातर हो उठा।

अब बाईस साल की गुंजन दो बच्चों का भविष्य-भार थामे

दो साल से विधवा- जीवन ढोने को अभिशप्त है।


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