समृद्ध वर्ग की शिक्षा के क्षेत्र में जिम्मेदारी

कुसुम लता गुप्ता  

जैसा कि हमारे राष्ट्रपिता गांधी ने कहा था ‘‘ईच वन टीच वन’’यदि हम सभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अभी भी अनुसरण करें तो हम समस्त भारत को शिक्षित कर सकते हैं। किसी भी देश का बौद्धिक स्तर ऊंचा है तो वह प्रगतिशील है। देश के बौद्धिक एवं चहुमुखी विकास के लिए समृद्ध वर्ग को आगे आना ही होगा। जिस प्रकार परिवार महिला की बराबरी से बनाता है उसी प्रकार देश भी हर क्षेत्र में महिलाओं के योगदान से प्रगति कर सकता है। महिलाएं शिक्षा को जन-जन में प्रसार करने के लिए निम्न प्रकार अपना योगदान कर सकती हैं -

1.     यदि उनके पास धन है तो वे गरीब होनहार बच्चों को पाठ्य सामग्री दे सकते हैं, उनकी कोचिंग का खर्च उठा सकती हैं माने धन से सहायता कर सकती हैं।

2.    यदि वे खुद उच्च शिक्षा प्राप्त है तो स्वयं जरूरतमंदो को शिक्षा दे सकती हैं इसमें दो लाभ होंगे एक उनके रोज रोज ज्ञान के सदउपयोग और उसमें वृद्धि होगी दूसरा जरूरतमंद को शिक्षित करेंगीं।

3.       यदि वे उच्च शिक्षित है, धन भी है एवं उनके पास समय भी है तो वे तन-मन-धन तीनों प्रकार से शिक्षा के प्रसार में भागीदार बन सकती हैं। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए तीनों आयोमों की आवश्यकता है-समय, धन एवं खुद का शिक्षित होना। धन एक ऐसा विषय है जो हर कोई नहीं दे सकता, हम धर्म के नाम पर पार्टी, दिखावे आदि में बहुत खर्च कर देते हैं। यदि यही प्रश्न जब किसी को शिक्षा के लिए सामग्री या उनकी फीस आदि देने की बात आती है तो हम पीछे हट जाते हैं उसका मैंने खुद एक तरीका निकाला है। मैंने एक नियम बनाया है कि मैं जब नित्य पूजा करती हूं उस समय में कुछ निश्चित धनराशि ईश्वर के सामने यही कह कर रखती हूं कि हे प्रभु विश्व कल्याण करो और यह पैसा किसी ऐसे काम आये जिससे किसी जरूरतमंद की मदद हो। मान लो आप हर रोज 10 रूपये भी रखती हैं तो साल में 3650 रूपये हो जाते हैं इससे हम किसी बच्चे को पुस्तकें या फीस या उसकी स्कूल यूनिफार्म बनवा सकते हैं। यदि यही काम समूह में किया जाए तो बहुत बड़ी धनराशि एकत्रित हो सकती है और हम बहुत लोगों को सहायता कर सकते हैं।

यह जरूरी नहीं है कि आप किसी बड़े समूह को ही शिक्षा दें । वरन आप अपने घर में काम करने वालों को भी तथा उनके बच्चों को भी शिक्षा दे सकते हैं एवं शिक्षा के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

यदि आपने कुछ इस तरह का कार्य किया है तो उसे अपने तक ही ना रखें बल्कि उसका थोड़ा सा प्रचार भी करें इससे और लोगों को भी प्रेरणा मिलती है और लोगों के मन में समाज के लिए कुछ अच्छा करने की प्रेरणा जागृत होती है।

मैं यहां एक उदाहरण देना चाहूंगी - एक बहुत ही गरीब परिवार जिसमें 7-8 बच्चे मां बाप बहुत कम पढ़े, पर मां ने शिक्षा का मूल्य पहचाना पहले एक बच्चे को पढ़ने को प्रेरित किया उस बच्चे ने भी घर का सारा काम करते हुए यहां तक कि गुब्बारे बेचकर, व्यापार में सहायता करते हुए अपनी शिक्षा प्राप्त की। आगे की बागडोर सब को पढ़ाने की खुद थाम ली। आज उस परिवार में सभी उच्च शिक्षित है एवं उच्च पदों पर हैं और वह घर परिवार उस गांव के लिए एक उदाहरण है, तो कहने का तात्पर्य है कि यदि परिवार में एक जन भी किसी कार्य के लिए आगे आता है तो उसकी देखा देखी एक बहुत बड़ी संख्या खड़ी हो जाती है।

आज इस गांव की स्थिति यह है कि कई बच्चे विदेशों में रह रहे है। उस गांव का बौद्धिक स्तर निरंतर आगे बढ़ा रहा है। आपको जानकर खुशी होगी कि उसी गांव की एक बालिका का प्रधानमंत्री के साथ सैटेलाइट लॉन्चिंग के चंद्र मिशन श्रीहरिकोटा के लिए चयन हुआ और उसने प्रधानमंत्री के साथ बैठकर लॉन्चिंग देखी। आज उस गांव में बताना नहीं पड़ता कि आपको शिक्षा के लिए कहां जाना है।

आरक्षण प्राप्त करके जो लोग संपन्न वर्ग में आ चुके हैं अब उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वह भी समाज को शिक्षित करने में अपना योगदान दें। सर्वप्रथम तो उनको अपने बच्चों का नजदीकी रिश्तेदारों को आरक्षण से बाहर कर लेना चाहिए। वे उन बच्चों को पढ़ने-पढ़ाने के लिए प्रेरित करें एवं यथा-संभव समाज को सहयोग करें ताकि उनका भी उत्थान हो सके।

समृद्ध समाज का दायित्व है कि वह समय-समय पर सरकार की भी गलत नीतियों को उजागर करें और उसे बदलने के पर्याप्त उपाय सुझाये। उदाहरणार्थ आजादी के समय निम्न वर्ग कहे जाने वाले लोगों को केवल 10 वर्ष के लिए आरक्षण दिया गया था, वह समय की मांग थी। अब 73 वर्ष हो चुके हैं हम उस वर्ग को अभी तक शिक्षित नहीं कर पाएं है, जिन लोगों को बैठे-बिठाए रोटी कपड़ा और मकान के साथ अन्य सुविधाएं मिल रही हैं, वह क्यों काम करेगा इससे वह वर्ग कभी स्वावलंबी नहीं बन पाएगा। उनमें स्वाभिमान की ज्योति जगानी होगी।

सरकार को पाठ्यक्रम में भी बदलाव करने चाहिए, कुछ महत्वपूर्ण आदि ग्रंथों का समावेश करना चाहिए जैसे वेद, पुराण, गीता आज भी विज्ञान की उच्चतम कोटी पर खरे हैं। गीता हमें सुसंस्कार, स्वावलंबी बनाती है, वहीं वेद टैक्नोलाजी, चिकित्सा विज्ञान, गणित, संगीत आदि की शिक्षा देतें है। कहने का तात्पर्य यह है कि हर तरह का विज्ञान वेदों में निहित है। यदि वेदों का सही तरीके से विश्लेशण किया जाए तो हम शिक्षा एवं मानवीय सहिष्णुता का विकास कर सभी क्षेत्रों में अग्रणी हो सकते हैं एवं फिर से विश्व गुरू बन सकते हैं।

हम सभी को मिलकर शिक्षा का प्रसार करना चाहिए हमें कुछ ऐसे प्रेरणादायक कार्यक्रम बनाने चाहिए कि जो अभी तक शिक्षा से वंचित हैं, उनमें भी शिक्षा प्राप्त करने की ललक जागे, वे स्वयं आगे आएं। अन्त में यही कहूंगी कि जो देश शिक्षित होगा वही विश्व में अग्रणी होगा। जिस देश की बौद्धिक संपदा अधिक होगी वही हर तरह से सम्पन्न होगा।


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