आइये शुक्रिया अदा करें

विशाल सरीन

भगवान् ने मानवीय शरीर की सरंचना के लिए कितना गहन विचार और मेहनत की होगी इसके विषय में कहना मुश्किल है। लेकिन जो भी बनाया है, वो अतुलनीय है। अगर आज हम लोग सोचे तो शरीर का हर अंग अनिवार्य लगता है और किसी भी एक अंग के बिना शरीर अधूरा लगता है। इसके लिए उस परम-शक्ति परमात्मा का जितना धन्यवाद किया जाये, कम ही होगा। 

ज़रा ध्यान कीजिये कि जब किसी को शरीर सम्बंधित कोई भी समस्या होती है तो उसको वही सबसे बड़ा कष्ट लगता है। किसी को ज़ुकाम हो जाए तो लगता है जीवन की सबसे बड़ी रुकावट है। वहीँ अगर किसी के पाँव पर चोट लग गयी है और चला नहीं जा रहा तो सोच आती है कि कुछ भी हो जाए पर पाँव पर चोट नहीं लगनी चाहिए।  

इंसान अपनी तकलीफ को ज़िन्दगी की सबसे बड़ी समस्या समझता है और सबसे बड़ा दुःख भी वही लगता है जो उसके सामने होता है। सब कुछ भूल कर इंसान अपने दुःख पर केंद्रित हो जाता है। अपने जीवन में आये दुःख के लिए प्रार्थना करता है कि भगवान् कृपा करके इसे जल्दी से दूर कर दें क्यूंकि दुःख के साथ निर्वाह बेरंग सा लगने लगता है।

छोटी या बड़ी कैसी भी तकलीफ होने पर इंसान खुद को समाज से कटा हुआ समझने लगता है, सोचता है कि उसकी अहमियत दुनिया के दूसरे लोगों से कम हो गई है | अपनी ही नज़रो से खुद का आंकलन करने लगता है और उसका निष्कर्ष भी स्वयं ही निकालता है | यह एक ऐसा कश्मकश का माहौल होता है जब इंसान या तो बहुत पिछड जाता है नहीं तो ऐसा कर गुजरता है कि रहती दुनिया में मिसाल बन जाता है |

दुनिया में ऐसे बहुत से लोग जो सम्पूर्ण शरीर न होने पर भी अपना मनोबल उच्च रखते है, बीमार होते हुए भी जीवन के अंतिम क्षण तक अपनों की खुशियों का ध्यान रखते है | Will power, Self-motivation से भरपूर लोग उसके बारे में नहीं सोचते जो उनके पास नहीं है | बल्कि कल्पना करते है कि अगर भगवान् ने उनको कुछ कम दिया है तो यह सोचकर कि इनमे दुसरो से हटकर कुछ करने की हिम्मत पैदा हो और वो दुनिया के लिए एक मिसाल बन जाएँ | ऐसी सोच किसी भी इंसान के लिए दुनिया जीतने का आधार बनती है|

एक साहब उम्रदराज होने पर अस्पताल में दाखिल हुए | जब ठीक होने पर उनकी वहां से छुट्टी मिली तो कुछ लाखों रुपयों का बिल बताया गया | पूछने पर पता चला कि उनको कुछ दिन कृत्रिम ऑक्सीजन पर रखा गया था जिससे वो ठीक हो गए है | उन बुज़ुर्ग ने तब अपनी बीती ज़िन्दगी के बारे में सोचा कि कुछ दिनों की कृत्रिम ऑक्सीजन के अस्पताल को इतने लाखो देने है तो पूरी ज़िन्दगी जो उस परमात्मा ने श्वास दिए है मैं उसका कितना कर्ज़दार हूँ |

ऐसी कितनी ही उदाहरण हमारे सामने है पर हम सब कुछ जानते हुए भी ऐसी उलझनों में फंस जाते है जिसका कोई मतलब नहीं होता | परमात्मा को उसके दिए हुए इस शरीर रूपी नायाब तोहफे का शुक्रिया करने की बजाय बेतुकी बातों के लिए कसूरवार ठहराते है | ऐसे हिम्मती लोग भी है जिन्होंने एक पैर ना होते हुए भी दुनिया की सबसे ऊँची चोटी को फतह किया है |

छुटपन में जब सांप सीढ़ी का खेल खेलते थे तब भी कई बार सांप डस लेता था | लेकिन बचपन मानता नहीं था मंज़िल से पहले और सांप सीढ़ी पर लिखा भी होता था - रुकना तेरा काम नहीं चलना तेरी शान | भगवान् के दिए इस बहुमूल्य जीवन का जितना शुक्रिया अदा किया जाये उतना ही कम है | आइये अच्छे कर्म करते हुए परमात्मा को धन्यवाद करे और इस जीवन का आनंद उठायें |


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