आख़िर क्यो ?

भावना मिश्रा

आज तारा हास्पिटल के बिस्तर पर लेटे -लेटे सोच रही थी,आज तक जब कभी भी मैंने किसी का बुरा न ही सोची और ना ही किसी का बुरा किया ,फिर भी ये मेरी स्थित क्यों? भगवान ने मुझे ऐसी सजा क्यों दी,क्यों दी..?

यह सोचते ही उसके आँखो से आँसू बहने लगे,उसकी माँ ने उसे सीने से चिपका दोनो रोने लगे।

तारा को कैसर हो गया है, वह भी तब `पता चला तो जब वह कैसर के तीसरे स्टेज में बहुत चुकी थी।

बचपन से ही तारा शान्त और मिलनसार थी, हमेशा ही सबकी मदद के लिए तैयार रहती थी।

शादी साधारण परिवार में हुई,पति किसान थे। तिनका- तिनका जोड़कर घर आँगन बनवाया। दो बेटे हुए । दोनो बेटे नौकरी करने लगे, दोनों की शादी और बड़े बेटे के तीन बच्चे को बड़े प्यार से तारा ने पाला। तारा की सास पिछले सात साल से अंधी थी,और बूढ़ी हो गयी थी,इसलिए बिस्तर पर ही रहती थी; उसका सब कुछ तारा ही करती थी। तारा अपनी सास की पूरे लगन से सेवा करती थी।

तारा के पेट में हमेशा दर्द रहता था, पेन किलर खा-खाकर रह जाती, अपनी तबीयत खराब तबीयत को कभी अहमियत नही दी, हमेशा दूसरो के लिए ही सोचती रहती थी। वह गहरी सोच मैं डूबी थी कि - भगवान् ने उसके साथ ऐसे कैसे किये....?

इतने में नर्स बोली -- किमो देने का टाइम हो गया।

तारा - अतीत की याद से बाहर आकर बोली ----जी......


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