मेरी स्पेस-यात्रा

अनुप्रा दुबे

 

मैं कल रात में स्पेस में चली गयी थी। मेरी छोटी बहन मेरे साथ थी, इसलिये मुझे डर नहीं लग रहा था।

हमलोगों ने स्पेस में देखा कि बड़े-बड़े गोल-गोल प्लेनेट्स चारों ओर घूम रहे हैं। थोड़े छोटे- छोटे प्लेनेट्स भी चक्कर लगा रहे थे। कुछ बड़ी तेजी से चल रहे थे और कुछ बहुत धीमे-धीमे चल रहे थे, जैसे वे टहलने निकलने हों। हम लोग भी उनके साथ चक्कर लगा रहे थे।

ठीक इसी समय हमारे पास एक रस्सी ऊपर से लटकी। यह रस्सी एक बहुत बड़े महल जैसे जहाज ने लटकायी थी। उसे पकड़कर हम लोग उस जहाज के अंदर चले गये। वहां हमारे जैसे लोग थे। उन्होंने बताया कि यह स्पेस स्टेशन है।

उन लोगों ने हम लोगों को अपने स्पेस स्टेशन से हमारा देश भारत दिखाया। पूरा देश बहुत खूबसूरत रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा रहा था। उन्होंने हम लोगों को लालकिला और ताजमहल भी दिखाया।

हमलोगों ने स्पेस स्टेशन वालों से कहा कि हमारा स्कूल डि इंडियन पब्लिक दिखाओ तो वे कहे कि हम कल दिखायेंगे।

हमने पूछा, आज क्यों नहीं दिखा रहे हैं तो उन्होंने कहा कि हम लोग अब हिंदुस्तान से दूर आ गये हैं।

उन्होंने बताया कि उनका स्पेस स्टेशन हर डेढ़ घंटे में पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता है। हम लोग कई बार सूरज को जल्दी-जल्दी डूबते-उगते देखे। उन लोगों ने बताया कि वे लोग एक दिन में 16 बार सूरज उगता और डूबता हुआ देखते हैं क्यांकि पूरी पृथ्वी का वे लोग एक दिन में 16 चक्कर लगा लेते हैं।

उन लोगों ने हम लोगों को अमेरिका का व्हाइट हाउस और चीन की लंबी दीवार भी दिखायी।

हमारी छोटी बहन जोर से डरकर चिल्लायी। मेरी नींद खुल गयी। मैंने देखा कि मैं और मेरी बहन अपने बिस्तर में लेटे हुये हैं।

ओहो, शायद मैं सपना देख रही थी।




—00—


< Contents