सिमट गया जन-जीवन चार दिवारी में
डॉ. संगीता पाहूजा
सिमट गया जन जीवन चार दिवारी में
मिलना जुलना, बिक्री, खरीदारी, शिक्षा, दीक्षा ,सब कुछ हुआ ऑन लाइन।
संचय और व्यय सब कुछ , वैज्ञानिक तकनीक का हुआ मोहताज!
भावनाओ का हुआ खात्मा, इस तकनीकी जीवन में।
खुले चेहरे पर न छुपते थे जो भाव, आसान हुआ, सब कुछ ढके चेहरों में।
बहुरूपिया बनना हुआ आसान
इस ऑन लाइन सृष्टि में।
देश विदेश से जुड़ा है नाता
छूट गया साथ अपनो का।
दिलो-दिमाग कैद हुए, इन तकनीकी पूर्जो में।
हर कोई हुआ अकेला करोड़ों की आबादी में।
सिमट गया जन जीवन चार दिवारी में।
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