आओ   मिलकर   सोचें  :

खूबसूरत पेन बेचने वाली लड़की

मुकेश आनंद

मैं बाहर नौकरी करता था, कुछ दिन पहले आया था और अपने शहर में ये मेरा आखिरी दिन था। इसलिए आज मेरा उससे मिलना बहुत जरूरी था। शनिवार की रात थी और कोई सवारी नहीं मिल रही थी शनिवार की शाम स्टेशन के बाहर। यही वादा था, मेरा उसके साथ।

मैंने उस लड़की से पेन खरीदा था। उस लड़की इसलिए कह रहा क्यूंकि मुझे उसका नाम नहीं पता, क्योंकि मैंने पूछा ही नहीं था।

मुझे पेन खरीदने का शौक था, या यूं कहें की मजबूरी थी। मेरा पेन अक्सर खो जाया करता था, तो खरीदते रहना पड़ता था। पर मैं बहुत मंहगा पेन नहीं खरीदता था।  सस्ते पेन, जो खो भी जाएं तो ग़म नहीं। उस दिन शाम को अपना रिजर्वेशन टिकट लेने मैं स्टेशन पर गया था। बाहर की तरफ सवारियों की आवाजाही बहुत थी। इसलिए वहां पर सामान बेचने वालों की भीड़ लगी रहती थी और बहुत शोर होता रहता था। टिकट मिलने के मुझे मानसिक रूप से राहत मिली और अब बाहर का शोर उतना चुभ नहीं रहा था।

 सभी बेचने वाले अपना सामान बेचने के लिए पूरा जोर लगा रहे थे। कोई पेपर सोप बेच रहा था, कोई साबुन तेल, कोई बैग और कोई खाने का सामान। सब आने वाली सवारियों पर झपट रहे थे। उसी भीड़ में मुझे एक लड़की दिखी जो पेन बेच रही थी। उन परेशान बेचने वाली लड़कियों में बस वही थी जो हँस रही थी। ऐसा लगता था वह पेन बेचने नही बल्कि खेलने आई है। लोगों को मुस्कराकर पेन दिखाती, ले तो ठीक और ना ले उसका भी जवाब वो मुस्कुरा कर ही देती थी।

मुझे लगा पेन इसी से लेना चाहिए। मैं उसके पास पहुंचा और पूछा पेन कितने का है?

तीन रुपए का, उसने बोला।

कीमत बहुत कम थी, फिर भी मैं अपनी आदत के अनुसार बोला, कुछ कम नहीं होगा

हां होगा, 10 का पैकेट कर लेंगे तो सिर्फ ₹25 का पड़ेगा।

वाह, बहुत सस्ता है ये तो।

मुझे मुस्कुराते देख उसे लगा कि मैं पेन ले लुंगा। उसकी आंखों में चमक गई। कोई और बेचने वाला होता तो जोर देने लगता पर वो बस चमकती आँखों से मेरे निर्णय का इंतजार करती रही। पर 11 साल की उम्र में धंधे के गुर नहीं आते हैं।

 मैं मन ही मन आंक रहा था कि कितने पैकेट लूं। उसके चेहरे से लग रहा था जैसे वह उद्विग्न हो रही हो।

मैंने उसको पूछा तुम्हारे पास कितने पैकेट हैं पेन के?

पूरे छः हैं, वो बोली।

ठीक है, सब दे दो।

सारे?? उसने मुझे अविश्वास की नजर से देखा।

हाँ, सारे।

उसने फटाफट : पैकेट निकाले और मुझे दे दिया। और बोली, पर एक पैसे कम नहीं होगा।

ठीक है, ये लो दो सौ रुपए।

मेरे पास खुदरा पैसा था पर मैंने जानबूझ कर दो सौ दिए।

मेरे पास खुले नहीं हैं, वो बोली।

तुम रख लो, कोई बात नहीं, मैंने कहा, सोचा इससे वो खुश हो जाएगी।

पर वो ये सुनकर परेशान सी हो गई, बोली अगर मम्मी को पता चलेगा तो वो बहुत नाराज़ हो जाएगी और रोने लगेंगी। मैं उतने ही पैसे लुंगी जो कीमत है।

फिर ठीक है, मुझे दो पैकेट पेन और दे देना।

वाह, ये ठीक रहेगा। आप कब आओगे फिर?

शनिवार, शाम छः बजे, मैंने कहा।

ठीक है, मैं यहीं मिलुंगी।

और वो फुर्र से वहां से उड़ते हुए भागी।शायद आज उसकी जल्दी छुट्टी हो गई थी, अब वो अपने दोस्तों के साथ खेल सकती थी।

आज शनिवार का दिन था। आखिर एक रिक्शा मिला, वो भी बूढ़ा सा। पहुंचते पहुंचते देर हो ही गई। साढ़े छः बज गए। रिक्शा स्टेशन के बाहर रुकते ही पसीने से लथपथ वो पेन वाली लड़की दौड़ते हुए आई।

 नाराज़ होते हुए बोली, कितनी देर कर दी आपने। मैं साढ़े पांच से यहां भटक रही हूं। ये लीजिए दो पैकेट।

ओह, थैंक्स, पर तुम नाराज़ क्यूं हो?

मुझे लगा मैं नहीं पहुचुंगी तो आप क्या सोचेंगे। यही ना कि मैं कैसी लड़की हूं।

पर मेरे सोचने से क्या फर्क पड़ता है? मैं बुरा ही सोचूं तो क्या होगा?

नहीं, कोई बुरा सोचे मेरे बारे में तो मुझे अच्छा नहीं लगता।

ये तो अच्छी बात है। तुम बहुत खूबसूरत हो, मुझे लगा यह सोच कर शर्माएगी या क्या पता नाराज ही हो गए।

आपको कैसे पता, वो हर्ष मिश्रित आश्चर्य से देखते हुए बोली।

बस ऐसे ही, मैंने कहा।

पर वो बोली, आप कैसे जान गए?वैसे ये बात तो मेरी मम्मी रोज बोलती है, वो हँसते हुए बोली। ये सूट जब पहनती हूं, सब बोलते हैं।

मैंने ध्यान नहीं दिया था, वो एक नई सी धुली पर बिना आयरन किया सलवार पहनी थी, उस दिन की तरह मटमैला कपड़ा नहीं।

पर तुम्हारी ईमानदारी तुम्हें खूबसूरत बनाती है, मैंने कहा।

वह ठठाकर हंस पड़ी, ईमानदारी से भला कोई सुंदर होता है, सुंदर दिखने के लिए बहुत सारा मेकअप चाहिए होते हैं। जब मेरे बहुत पेन बिकेंगे तो मैं वह किट खरूदुंगी, जो हीरोइनों के पास होती हैं, वह कुछ सोचते हुए बोली।

सोचके आया था जाते समय उसको कुछ पैसा उपहार में दूंगा। हिम्मत नहीं हुई, मन ही मन बोला- तेरी ईमानदारी खरीद लूं इतनी मेरी औकात नहीं है…

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