संपादकीय

सफलता सबको नहीं मिलती है, क्यों?

 

फलता तक पहुंचने का रास्ता बुद्धि- कौशल और उद्यम से होकर जाता है। वैसे, सफलता का अर्थ हर एक के लिये अलग-अलग होता है। जैसे, एक विद्यार्थी के लिये सफलता का अर्थ होता है कि वह अच्छे अंकों में अपनी परीक्षा उत्तीर्ण कर ले। एक रोगी के लिये सफलता का अर्थ होता है कि वह शीघ्र रोगमुक्त हो जाये। एक सन्यासी के लिये सफलता का अर्थ होता है कि उसे जल्द ईश्वर मिल जाये। एक गरीब के लिये सफलता का अर्थ होता है कि उसकी भूख मिट जाये और वह दूसरों के बराबर हो जाये। यानि, अनुकूल परिणाम पा लेना ही सफलता होती है। हर कोई सफलता पाने के लिये अपनी बुद्धि का उपयोग करता है, संभव मेहनत करता है, फिर भी उसे उसके अनुकूल परिणाम नहीं मिलते हैं।

 

इसलिये प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? अथवा, सफल होने के लिये क्या चीज जरूरी है और क्या जरूरी नहीं है? अथवा, सफलता मात्र एक आलंकारिक प्रश्न भर है!

 

आज हमारे विचार का केंद्र-बिंदु यही है कि जब दुनिया में सफलता पाने का तरीका सबके पास है, तब फिर इतने कम लोग ही क्यों सफलता की सीढ़ी चढ़ पाते हैं? यह प्रश्न प्रबंधकों, शिक्षकों और अभिभावकों के विशाल समूह के लिए भी सबसे अधिक उलझाने वाले प्रश्नों में से एक है।

यह देखा गया है कि सफलता समाज के पुरुषों और महिलाओं के एक बहुत छोटे से समूह को ही मिलती है। यानि, सफलता बहुत सामान्य चीज नहीं है। इसे किसी की सामान्य पसंद और नापसंद का पालन करके प्राप्त नहीं किया जा सकता है। सच्चाई यह है कि सफलता चीजों को एक निश्चित तरीके से करने से आती है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि स्वाभाविक रूप से जो होता है, उसे करते रहने से सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है, बल्कि सफलता प्राप्त करने के लिये जरूरी है कि हम उन सामान्य चीजों को करने की आदत बनायें जो असफलता लाना पसंद नहीं करती हैं।

 

अब प्रश्न यह उठता है कि सफल लोग किन चीजों को करना पसंद करते हैं? इसका साधारण-सा उत्तर है कि सफल लोग उन चीजों को करना पसंद करते हैं जो उन्हें सफल बनाती हैं? इसके लिये सफल लोग उन चीजों को करने की आदत बना लेते हैं जो असफलताएं नहीं देती हैं क्योंकि आदत ऐसी चीज होती है जिसे हम बिना किसी सचेत विचार के करते जाते हैं यानि हम इसे स्वचालित (Automatic) रूप से करते रहते हैं।

 

एक बात और सफल लोगों के बारे में पायी गयी है कि वे लोग सुखद परिणामों की इच्छा से प्रभावित रहते हैं। सफल व्यक्ति जो कुछ भी चाहता है, उसे प्रकट करने के लिए वह रोजाना उसके लिये जरूरी नयी प्रक्रिया की खोज करता रहता है। सफल व्यक्ति सबसे पहले यह सोचता है कि वह जो भी करता है, वह क्यों करता है? इसके लिये वह अपने अवचेतन मन के अंदर अपनी सफल होने की इच्छा को गहराई से जमाये रहता है, जिससे उसकी सफलता ऑटो-पायलट मोड पर बनी रहती है।

 

हम इन बातों से एक सुखद परिणाम पर पहुंचते हैं कि सफलता एक आलंकारिक शब्द नहीं है। यह वास्तविक भौतिक पदार्थ तुल्य है। हां, इसे पाना थोड़ा दुर्लभ अवश्य है।

 

विश्वास रखिये, ख़ुशी, स्वास्थ्य अथवा संपदा जैसी वस्तुयें प्राप्त करने के लिये सफल होना, हम सबकी पहुंच के अंदर है। इन्हें अपना बनाने के लिये जरूरी तकनीक यह है कि हम पहली पायदान पर केवल अपनी एक या दो इच्छाओं को चुनें, इसे अपने अवचेतन मन में बिठायें, इसके लिये काम करें और फिर इन्हें पाने के बाद अपनी अन्य इच्छाओं के लिये इसी प्रकार रास्ता बनायें। 

 

प्रकाश पर्व दीपावली के शुभ अवसर पर ज्ञान विज्ञान सरिता परिवार अपने पाठकों, विद्यार्थियों, लेखकों और सहृदयों के लिये प्रार्थना करता है कि सभी अपने-अपने कर्मक्षेत्रों में सफल हों और सभी का जीवन उनकी ख्याति एवं प्रशंसा से प्रकाशमान रहे।

 

चलिये, कवि शिवमंगलसिंह ‘सुमन’की पंक्तियों का मर्म समझते अपने काम को आगे बढ़ायें:

 

जबतक न मंजिल पा सकूं, तबतक न मुझे विराम है,

राही हमारा नाम है, चलना हमारा काम है।

 

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