नया अध्याय
विशाल सरीन
ज़माने ने अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच बहुत से दस्तूर बनाए हैं। यह ज़माना कोई और नहीं बल्कि हम लोग ही हैं जिनको ज़माने के नाम से संबोधित किया जाता है। इसी तरह, बड़ा-छोटा, धर्म के नाम पर भेदभाव इत्यादि भी इसी ज़माने की देन है। जहां बहुत से लोगों को इन भेदभाव से लाभ होता है, वही ऐसे लोग भी हैं जो इन की बलि चढ़ाई जाते हैं। असलियत में इंसान अमीर या गरीब दिल से होता है। ऊंचा इंसान वह है जो अच्छे कर्म करता है। कहते हैं, सुबह का भूला शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। कुछ ऐसे प्रख्यात चोर, डाकू भी हुए हैं जिन्होंने अपने जीवन की शाम ढलने से पहले सही मार्ग का चुनाव कर जीवन के लक्ष्यों को हासिल किया।
अंकुर ने पाँचवीं तक की पढ़ाई सरकारी स्कूल में पूरी की। पढ़ाई में बहुत अच्छा होने के कारण अध्यापकों से बहुत प्यार मिलता था। माता-पिता का भी बहुत आदर करता और साथ में घर बाहर के काम में भी हाथ बटाता। कभी-कभार तो मोहल्ले में अपने से छोटे बच्चों को इकट्ठा कर उनको पढ़ाता भी था, जिससे मोहल्ले के लोग भी अंकुर को बहुत प्यार करते।
छठी कक्षा में दाखिले का समय आने पर माता-पिता ने उसको किसी प्राइवेट स्कूल में भेजने का सोचा। बहुत पैसा ना होने पर भी, किसी तरह इंतजाम कर उसका दाखिला शहर के महंगे स्कूल में करवा दिया। हालांकि अंकुर का उस महंगे स्कूल में जाने का मन नहीं था। परंतु जैसे-तैसे सब हो गया और स्कूल जाने का पहला दिन आ गया। अब महंगे स्कूल में जाने के लिए नए कपड़े खरीदे गए, जूते, जुराबें इत्यादि भी। अंकुर का स्कूल बैग भी बहुत बढ़िया था। उसके लिए नया पेंसिल बॉक्स और खाने का डिब्बा भी खरीदा गया।
स्कूल पहुंचने पर जहां अंकुर को पुराने मित्रों से दूर होने का दुख था, वही नए मित्रों के मिलने की खुशी भी थी। चमचमाता स्कूल, बैठने को अच्छी कुर्सी, प्रार्थना के लिए कक्षा में ही स्पीकर लगे, कंप्यूटर पर पढ़ाते अध्यापक इत्यादि। उसको थोड़ा अलग लग रहा था, परंतु अच्छा भी लग रहा था। लेकिन नए स्कूल के विद्यार्थियों ने अंकुर का गर्मजोशी से स्वागत नहीं किया। क्योंकि वह एक गांव के गरीब परिवार से संबंध रखता था। किसी ना किसी बात पर उसको उसके गरीब होने का एहसास दिला दिया जाता था। अंकुर फिर भी सभी से मिल जुल कर रहने की कोशिश करता, परंतु उसकी कोशिश बहुत कामयाब होती नहीं लग रही थी।
इस परिस्थिति का अंकुर की सेहत पर बुरा असर पड़ने लगा। जिसका प्रभाव उसकी पढ़ाई पर भी होने लगा। धीरे-धीरे एक प्रथम श्रेणी वाला विद्यार्थी, अंतिम श्रेणी में पहुंच गया। उसके परिवार वाले और अध्यापक भी इससे बहुत हैरान और चिंतित थे। परमात्मा कभी अच्छे इंसान के साथ बुरा नहीं होने देता और जरूरतमंद को किसी ना किसी रूप में सहारा बनकर मिल जाता है। एक दिन अध्यापक ने कुछ विद्यार्थियों द्वारा अंकुर को तंग करने की घटना को अपनी आंखों से देख लिया। जिससे उनको अंकुर की वर्तमान स्थिति के बारे में ज्ञात होते ज्यादा देर नहीं लगी।
इसके हल के तौर पर, अध्यापकों ने मिलकर एक कैंप का आयोजन किया। उस कैंप में स्कूल के सभी विद्यार्थियों से समाज में विद्या के महत्व और जन साधारण तक उसकी उपलब्धता से संबंधित चर्चा की गई। उनको ग्रुप में बैठकर इससे संबंधित समस्याओं और उन को हल करने के लिए विचार विमर्श करने को कहा गया। इस गोष्ठी के बाद, सभी विद्यार्थियों को अगले कुछ दिनों के लिए उन सुझावों को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करने को बोला। उनको समझाया गया कि वह देश का भविष्य है। अगर उनको कुछ समस्या दिखती है तो हल भी उन्हीं को निकालना है।
इसके बाद बहुत सारे विद्यार्थियों का जीवन बदल चुका था। उनका जिंदगी के प्रति नजरिया बहुत सकारात्मक था। वह एक दूसरे के प्रति बहुत मददगार हो चुके थे। किसी को चोट पहुंचाना जैसे उनके लिए पाप था। इससे अंकुर को भी मदद मिली और उसकी जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर वापस आने लगे। पढ़ाई में अच्छा होने के कारण वह पढ़ाई में दूसरों की मदद करने लगा। जिससे उसके दोस्त बनने लगे, जो उसे बहुत प्यार भी करते थे। साल के अंत में अंकुर प्रथम नतीजे में रहा।
इस साल सभी ने पढ़ाई के साथ-साथ जिंदगी का एक ऐसा पाठ पढ़ा जो उनके लिए ही नहीं बल्कि समाज, देश और विश्व भर के लिए बहुमूल्य था।
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