निर्बल का कोई मित्र न होता
(महाभारत ग्रंथ शिक्षा और उसकी अनदेखी के परिणामों को सिखाने वाला काव्यग्रंथ है। इसके कुछ परिणामों के कारणों पर ध्यान आकर्षित करती कुछ पंक्तियां)
उर्मिला द्विवेदी
कौरव-पांडव-ईर्ष्या ने
दिया जगत को महायु़द्ध
भस्म कर दिया सब जिसने
रह गये देखते ही सद्बुद्ध।
अबला मांगती न्याय रही जब
कोई आया संग नहीं
महायुद्ध ने न्याय किया तब
कोई कुल में बचा नहीं।
चीर-हरण था केंद्र बिन्दु में
सभा बन गई मूक बधिर
ज्ञान शून्य जब हों अपने
तब बहता है उनका ही रूधिर।
द्रोण, भीष्म और कृपाचार्य ने
मौन बना क्यों रखा था
इतिहास ढूंढ़ता है पन्ने
क्या सत्ता-लोभ उन्हें भी था?
संभव है पांडवों को सबने
मान लिया था अति दुर्बल
छोड़ साथ उनका जब सबने
पकड़ लिया था पक्ष प्रबल।
नियम यही है जीव-जगत का
निर्बल का कोई मित्र न होता
शक्तिवान के साथ खड़े का
कुछ भी है नुकसान न होता।
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