सदाचार का महत्व

सुरेश तलरेजा

व्यक्ति के जीवन में सदाचार का विशेष महत्व है। सदाचार से व्यक्ति का बहुमुखी विकास होता है। अच्छा इंसान बनने के साथ-साथ वह भगवद् प्राप्ति की तरफ बढ़ सकता है। इसके विपरीत मनुष्य  दुराचार से पापों की गठरी इतनी भारी कर लेता है कि एक दिन जब काल सामने होता है तो उसके पास पश्चाताप के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह जाता है। इसलिए समय रहते ही अपने आचरण को ठीक करने के लिए सद्गुणों को बढ़ाने का प्रयास करें ताकि इस संसार से विदा होने के बाद भी लोग आपको याद करें। बुद्ध, नानक और महावीर आज अपने सद्कर्र्मो की वजह से आज भी अमर हैं। इन सबने सबसे पहले अपने अंदर सदाचरण का बीज बोया। अपने आचार-विचार को ठीक किया और साबित कर दिया कि सदाचरण के सहारे व्यक्ति जीवन में ऊंचाई की तरफ सहज ही जा सकता है।  सदाचारी वह है जो ईमानदारी और मेहनत से कमाई करता है। ध्यान रहे, यह शरीर एक मंदिर है। इसलिए इसे बुरे व्यसनों से बचाते हुए इसकी देख-रेख बढ़िया ढंग से करें। यह शरीर ईश्वर पूजा, मानव सेवा और समाज सेवा में लगा रहे तो  जीवन सफल है। जो विवेकी लोग होते हैं, वे अपनी शक्ति और धन को भले कार्यो में लगाते हैं। माना कि इस संसार में व्यक्ति को अपना जीवन आनंदपूर्वक जीना चाहिए, प्रकृति प्रदत्त सुख-सुविधाओं का लाभ भी उठाना चाहिए। लेकिन भूलकर भी जीवन में कुत्सित विचारों और विषय-वासनाओं को पनपने नहीं देना चाहिए। जो जीवन को धैर्य और संयम के साथ जीते हैं और जिनके विचार और चिंतन शुभ होते हैं वे एक एक दिन परमात्मा की शरण में पहुंच जाते हैं।

 यदि जीवन मे कुछ रह जाता है तो आपके किए हुए शुभ कर्म और आपका सदाचरण। जिसका जीवन सदाचारी होगा , वह परमात्मा के उतना ही करीब है। " कर्मो आपो आपणे के  नेणे के दूर" सदाचारी  मनुष्य  ही भजन  सुमिरन  कर सकता है। हजूर  फरमाया करते  थे कि बुरे कर्मों  से बचो, उसका भुगतान  बहुत  भारी रहता है। सदाचारी  जीवन  का अर्थ है कि हक हलाल की  कमाई, शाकाहारी भोजन, पवित्र  द्रष्टी, ढाई घंटा ध्यान,  भजन  सुमरिन इसलिए सदाचार  ही जीवन है।

 

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