अपना घर, एक सपना
विशाल सरीन
इंसान अपनी जिंदगी में बहुत से सपने संजोता है और हर सपने को पूरा करने के लिए अथक मेहनत करता है। मेहनत के साथ-साथ परमात्मा से प्रार्थना भी करता है कि उन सपनों के लिए मेहनत रंग लाए। किस्मत के धनी कुछ लोगों के सपने साकार होते हैं।
यह सपने निर्भर करते हैं इंसान की ज़िन्दगी के पड़ाव पर। बात करें एक छोटे बच्चे की तो, वह नादान होता है। उसको तो रोने पर दूध मिल जाए, इतना काफी होता है। थोड़ा बड़ा होने पर उसको खिलौने चाहिए होते हैं। फिर थोड़ा और बड़ा होने पर अच्छी पढ़ाई, खेलकूद इत्यादि।
इनमें से एक सपना, जो हर इंसान अपनी जिंदगी में कम से कम एक बार तो जरूर लेता है, वह होता है अपना घर होने का। वह लोग जिनको घर बना बनाया मिल जाए, नियामत समझे खुदा की। सोचे कि, कितने ही अच्छे कर्म किये होंगे जो ऐसा हुआ। नहीं तो बैठें कभी उनके पास जिनके पास स्वयं के घर की छत नहीं। अथवा अपने माता पिता के पास बैठकर सुनो उनके संघर्ष की कहानी, जिसके बाद उनको अपना घर नसीब हुआ। यह परमात्मा का आशीर्वाद ही समझें।
बहुत से लोग अपनी जिंदगी का बहुत सारा हिस्सा किराये के घरों में रहने में बिता देते हैं। पाई-पाई जोड़ते है कि कभी अपना घर बना पाएंगे। कभी-कभार बहुत दुखता भी है जब किराया देना पड़ता है। परंतु उसका कोई विकल्प नहीं। शादी हुई, बच्चे भी बड़े हुए और ऐसा भी हो जाता है कि बच्चों की शादी भी किराए के घर में ही करनी पड़ती है। सोचता है कि बच्चे बड़े हो गए हैं अब अपने आप घर बना लेंगे।
घर बनाना किसी भी इंसान की जिंदगी का सबसे बड़ा सपना होता है। लेकिन अपने घर में रहना भी परमात्मा की कृपा से ही हो सकता है। राजू छोटे गांव से अपना घर छोड़कर किसी बड़े शहर में नौकरी करने गया। किराए पर रहने लगा। उस घर के मालिक खुद किसी और शहर में नौकरी करते और किराए के घर में रहते थे। फिर राजू ने एक और नौकरी किसी दूसरे शहर में की, वहां भी किराए के मकान में रहा। वहां के मकान मालिक के बच्चे किसी और देश में नौकरी करते और किराए के घर में रहते थे।
चाहे कितना कुछ भी हो, कभी कभार अपना घर होने पर भी उसका सुख नहीं मिलता। जिन्होंने संघर्ष करने के बाद घर पाया है, उनको उसका हर पल सुहाना लगता है। किंतु सुनहरे पल तभी संभव है जब उसके लिए मेहनत करने वाले, सपनों को पूरा करने वाले साथ हो अथवा ऐसे सपने पूरे होने के बाद भी अधूरे ही लगते हैं। रुखा सुखा हो, कितनी भी धूप है, मिलकर चलते रहो तो कैसा भी समय निकल जाता है। कितने भी आराम हो, इंसान अकेला हो, निभाना मुश्किल हो जाता है।
घर को बनाने के लिए बहुत-सी प्लानिंग की जाती है। कितनी रातें जागता है इंसान, पति-पत्नी में कभी कभार लड़ाई भी होती है। बच्चे भी पिता को बोल देते हैं कि हम अपने घर में कब जाएंगे। मेरे सारे मित्रों का अपना घर है। ऐसा बच्चे इसलिए कहते हैं क्योंकि किराये के घर में बहुत सी बंदिशें रहती है। ऐसा मत करो, वह ठीक से करो, वैसे नहीं खेलो, शोर नहीं करो इत्यादि बोला जाता है।
अंततः जब इंसान अपनी उम्र के एक पड़ाव पर पहुंच कर घर बना लेता है, तो उसको लगता है कि जिंदगी का मैच उसने जीत लिया। परंतु यहां पहुंचने तक उसने बहुत कुछ खो दिया होता है। इसलिए प्रार्थना है कि अथक परिश्रम करना चाहिए, सपने देखने चाहिए, परंतु साथ में हर छोटी- बड़ी ख़ुशी का आनंद माने। जैसे छोटी-छोटी पैसे की बचत बहुत मददगार होती है, वैसे ही छोटी-छोटी खुशियां जिंदगी का बड़ा आधार होती है।
आप सब को नववर्ष की बहुत-बहुत बधाई और परमात्मा की कृपा से आप सब अपने घर में कुशल मंगल से जिंदगी का आनंद माने।
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