सम्पादकीय

विद्या अतुलनीय कीर्ति है

विद्या

 नाम नरस्य कीर्तिः अतुला भाग्यक्षये चाश्रयो अर्थात् विद्या एक अतुलनीय प्रसिद्धि है और यह भाग्य नष्ट होने पर आश्रय देती है। विद्या जीवन की वह उपलब्धि है जो हमेशा साथ बनी रहती है। न इसे चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, और न कोई बंधु-बांधव इसे बांट पाता है। विद्या, ज्ञान और विज्ञान की अधिष्ठाता है। सरस्वती समस्त विद्याओं की प्रदाता हैं।

मां सरस्वती की आराधना नियमित की जाती है। सरस्वती की पूजा का सबसे अच्छा तरीका है कि हम अर्जित ज्ञान-संपदा का नियमित अभ्यास करते रहें, फिर भी बसंत पंचमी के दिन सरस्वती की आराधना का विशेष महत्व है।

बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी भी कहा जाता है। बसंत पंचमी का त्यौहार उस मौसम में आता है, जब हमारे खेत, सरसों के पीले फूलों से भरे होते हैं, जौ और गेहूं की बालियां खिल रही होती हैं, आमों के पेड़ों पर बौर आ गयी होती है, चारों ओर रंग-बिरंगी तितलियां मंडरा रही होती हैं और फूलों पर भौंरे गुंजायमान होते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी मनायी जाती है। इस वर्ष बसंत पंचमी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 5 फरवरी 2022 को है।

सरस्वती के स्वरूप की कल्पना की गयी है कि वह एक दिव्य नारी हैं। उनके चार हाथ हैं। उनके दो हाथ वीणा पकड़े हुये हैं, तीसरे हाथ में पुस्तक है, और चौथा हाथ स्फटिक की माला के साथ वरमुद्रा में अभय प्रदान करता है। वह सफेद वस्त्र धारण करती हैं। मयूर उनका वाहन है। मां सरस्वती को वागीश्वरी यानि वाणी की देवी, शारदा, वीणावादिनी आदि से भी संबोधित किया जाता है। ऋग्वेद में एक मंत्र आता है: प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु  यानि देवी सरस्वती परम चेतना हैं, और हमारी बुद्धि की संरक्षिका हैं।

हर भारतीय किसी न किसी रूप में सरस्वती की पूजा अवश्य करता है। जो अज्ञानी है, ज्ञानी बनने के लिये इनकी पूजा करता है। जो ज्ञानी है, वह और अधिक ज्ञानार्जन के लिये इनकी स्तुति करता है। जो शस्त्रधारक है, वह बुद्धि के साथ अपने शस्त्र के उपयोग हेतु इनकी पूजा करता है। कलाकार अपनी प्रतिभा निखारने के लिये इनकी पूजा करता है। साहित्यकार अपनी रचनाओं को कालजयी बनाने के लिये इनकी आराधना करता है। वार्त्ताकार अपनी वाणी में सदैव सरस्वती के वास के लिये प्रार्थना करता है ताकि वह बिना अवरोध अपनी बात कहता रहे। कहा गया है कि कंठ में स्थित विद्या ही काम आती है, पुस्तक में स्थित नहीं।

सरस्वती की पूजा में पीले रंग का विशेष महत्व रहता है। सभी लोग पूजा में पीले वस्त्र पहनते हैं। प्रसाद के लिये पीले रंग के चावल बनाये जाते हैं। खाने के लिये पीले लड्डू और केसरयुक्त खीर बनायी जाती है। हल्दी और चंदन का तिलक लगाया जाता है। 

सरस्वती ज्ञान, विज्ञान, कला, और साहित्य के सृजन की देवी हैं। कवि, कथाकार, चित्रकार, गायक, संगीतकार, वैज्ञानिक, विचारक आदि के लिये बसंत पंचमी का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। सरस्वती का ध्यान और पूजन, ज्ञान और कला की शक्ति को बढ़ाता है। ज्ञानविज्ञानसरिता परिवार बसंत पंचमी के पावन पर्व पर कामना करता है कि उसके पाठक, शिक्षक और विद्यार्थी उत्तम ज्ञान प्राप्त कर कीर्तिमान हों।

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