करें जब पांव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है!
विज्ञान सरिता ई-पत्रिका के मार्च का अंक पाठकों के सामने रखते हुये हमें बड़ी खुशी है। यह होली का महीना है। होली भारतवर्ष में वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक खूबसूरत सामाजिक त्यौहार है।
होली हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। होली को बाल-वृद्ध, नर-नारी, सभी बड़े उत्साह से मनाते हैं। इसमें जाति-भेद अथवा वर्ण-भेद का कोई स्थान नहीं होता है।
पारंपरिक होली माघ पूर्णिमा को शुरू होती है। इस दिन एरंड अथवा गूलर वृक्ष की टहनी को गांव के बाहर किसी सार्वजनिक स्थान पर गाड़ दिया जाता है और उस पर लकड़ियां, सूखे उपले, खर-पतवार आदि रख दिया जाता है। एक माह बाद फाल्गुन पूर्णिमा को सांयकाल या रात में होलिका पूजन किया जाता है, फिर उसमें आग लगायी जाती है।
होली के दिन पूर्ण चंद्र की पूजा का विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। होली वाले दिन अधपके अन्न को खेत से लाकर होली की आग में भूनकर प्रसाद रूप में बांटकर खाने का भी प्रचलन है। इसे नवान्नवेष्टि यज्ञ भी कहा जाता है।
सामाजिक रूप में होली अपने बड़ों का आशीर्वाद लेने का पर्व है। विभिन्न प्रकार के पकवानों गुझिया, दही-बड़े, मठरी, पूरनपोली आदि के बनाने, खाने और अपने घर आने वाले आगंतुकों को खिलाने का पर्व है।
होली मौज-मस्ती और हर्षोल्लास का पर्व है क्योंकि इस समय प्रकृति रंग-बिरंगी होकर अपने अंदर बदलाव ला रही होती है। ठंड जा रही होती है और गर्मी आ रही होती है। चारों ओर नयी हरियाली और फूलों की भरमार होती है।
होली हेमंत या पतझड़ के अंत की सूचक है। होली के दिन ढ़ोल-मजीरे के साथ फाग गाया जाता है। होली हर व्यक्ति में प्राकृतिक हर्ष और उल्लास भर देती है। इस मास में हर कोई मस्ती का अनुभव करता है। लोकभाषा में तो यहां तक कहा जाता है कि बूढ़े भी जब जवान महसूस करने लगें तो समझो, होली का मौसम आ गया है।
नीरज गोस्वामी अपनी कविता में कहते हैं:
करें जब पांव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है
हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि होली है !
संस्कृत और हिंदी साहित्य की रचनाओं में होली ने बहुत स्थान पाया है। श्रीमद्भागवत महापुराण में रास का वर्णन आता है। कालिदास की रचना ऋतुसंहार में बसंतोत्सव का विवरण मिलता है। सूरदास ने भी होली के वर्णन में कई पदों की रचना की है।
वास्तव में, होली भारतीय जनमानस का त्यौहार है। होली उस मौसम में आती है जब फसलें तैयार हो रही होती हैं, किसान अपनी मेहनत को अपने खेतों में अपनी फसलों के रूप में लहलहाते देख कर आनंदित हो रहा होता है और अपनी खुशी व्यक्त करने के लिये नाचता है, गाता है और विभिन्न प्रकार से खुशियां मनाता है।
होली के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। सबसे पुरानी कहानी प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की है। प्रहलाद विष्णु का भक्त था और उसका पिता हिरण्यकश्यप विष्णु को पसंद नहीं करता था। पिता-पुत्र के बैर ने असहज स्थिति पैदा कर दी। हिरण्यकश्यप ने कई तरीके अपनाये कि उसका पुत्र प्रहलाद विष्णु की भक्ति छोड़ दे पर वह सफल नहीं हो सका। अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रहलाद को आग में जलाकर मार डाले।
पुराणों में वर्णन आता है कि होलिका वरदान के प्रभाव से नित्य अग्नि-स्नान करती थी और जलती नहीं थी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि-स्नान करने को कहा। उसने सोचा कि ऐसा करने से प्रहलाद अग्नि में जलकर मर जायेगा। होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गयी, पर हुआ उल्टा, होलिका जल मरी और प्रहलाद बच गया। मान्यता है कि तभी से होली जलाने और उत्सव मनाने की प्रथा चल पड़ी। लोगों का मानना है कि होलिका वरदान के बाद भी इसलिये जल मरी थी क्योंकि उसने वरदान को गलत उद्देश्य के लिये उपयोग किया था।
एक अन्य कथा के अनुसार इस त्यौहार को राधाकृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जोड़ा जाता है। कुछ का मानना है कि पूतना का बध श्रीकृष्ण ने होली के दिन ही किया था। कुछ लोग इसी दिन पृथ्वी के प्रथम पुरूष मनु का जन्म भी मानते हैं और इसे मन्वादितिथि के नाम से पुकारते हैं।
भारतवर्ष में मथुरा के नंदगांव और बरसाने की लट्ठ मार होली प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र में रंग-पंचमी मशहूर हैं जहां सूखे गुलाल से होली खेलने की प्रथा है। बंगाल और उड़ीसा में होली को डोलयात्रा अथवा डोल पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। पंजाब में होला मोहल्ला के नाम से इसे मनाया जाता है। हरियाणा में इसे दुल्हंडी कहते हैं। कर्नाटक में कामना हब्बा के नाम से होली मनायी जाती है। बिहार में फगुआ, गोवा में शिमगो, गुजरात में गोविंदा होली होती है।
कुल मिलाकर होली अपने विभिन्न नामों और रूपों में हास-परिहास, और प्रेम-प्रणव का पर्व है।
होली कटुता, क्रोध और निरादर को भुलाकर एक-दूसरे को रंग से सराबोर कर खुशी जाहिर करने का त्यौहार है।
कालिदास ने अपने ग्रंथ अभिज्ञान शाकुंतलम् में मानव को उत्सव-प्रेमी बताया है- उत्सवप्रिया खलु मनुष्याः।
उनका मानना है कि उत्सव मानव-जीवन में उल्लास एवं आनंद की सृष्टि करता है जिससे मानव-जीवन में मंगल एवं सौभाग्य का आगमन होता है।
ज्ञान विज्ञान सरिता परिवार की तरफ से हम अपने सभी पाठकों को होली की हार्दिक शुभकामनायें देते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह सबके जीवन को हर्ष और उल्लास से भरा रखें ताकि सब लोग नयी ऊर्जा से समाज के लिये हितकारी बने रहें।
चलते-चलते, हरिवंशराय बच्चन की कविता की कुछ पंक्तियां पाठकों को गुनगुनाने के लिये छोड़े जाते हैं:
जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो
होली है आज शत्रु को बाँहों में भर लो
होली है आज अपरिचित से परिचय कर लो
होली है आज तो मित्र को पलकों में भर लो !
—00—