शिक्षा का महत्व

पुरुषोत्तम विधानी

शिक्षाकाल अर्थात बचपन से लेकर किशोरावस्था तक लगभग 20 साल स्कूल और कॉलेज में पढ़ने का समय।यह एक ओर जहाँ स्वर्णिम काल होता है वहीं जीवनरूपी इमारत के लिए एक मजबूत आधार बनाने का समय होता है।यही बच्चा आगे जाकर परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्वनिर्माण में अपनी भूमिका निभाता है।इस संसार को स्वस्थ, सुंदर, समृद्ध और आनंदमय बनाने में विश्व के अनेक मूर्धन्य मनीषियों ने अपना योगदान दिया है।इसके बावजूद आज भ्रष्टाचार, आतंकवाद, ग्लोबलवार्मिंग जैसी अनेक समस्याएं प्रश्नचिन्ह बनकर खड़ी हैं।मनुष्य को द्विज कहा गया है।द्विज मतलब जिसका जन्म दो बार होता है।एक जब बच्चा, मां के गर्भनाल से अलग होकर स्वतंत्र इकाई के रूप में जन्म लेता है दूसरा जब वह परिपक्व होकर सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करता है।परिवेश का प्रभाव बच्चे पर पड़ता है और बच्चा जब सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करता है तो उसका प्रभाव परिवेश पर पड़ता है।आज की समस्याओं का समाधान केवल नियम और कानून बनाने से नहीं होगा क्योंकि इसके केंद्र में मनुष्य है और मनुष्य मशीन नहीं है।मनुष्य को सही दिशा देने के लिए प्रारंभिक बीस साल बहुत महत्वपूर्ण हैं।बच्चों का निर्माण करने में मातापिता अहम भूमिका निभाते हैं।सभी मातापिता के सामर्थ्य और दृष्टिकोण में विशाल अंतर होता है।मनुष्य एक स्वतंत्र इकाई होने के साथ साथ विश्वसमुदाय का एक हिस्सा होता है।अतः विश्वसमुदाय में सकारात्मक रोल निभाने के लिए उसके अंदर कुछ मूल्यों का होना अतिआवश्यक है।इन मूल्यों को स्थापित करने की ज़िम्मेदारी स्कूल और कॉलेज ही वहन कर सकते हैं।

एक आदर्श विद्यालय वही है जहाँ से पढ़कर आदर्श मनुष्य निकलें।आदर्श मनुष्य को हम इसप्रकार परिभाषित कर सकते हैं जिसमें आत्मविश्वास हो, जीवन स्वस्थ हो, समृद्ध हो, पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में सामंजस्य हो और जो विश्वव्यवस्था में अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से निभा सके।यह तभी हो सकता है जब उसका विज़न(दृष्टिकोण)दोषरहित हो।आइए इस संसार को समझने के लिए हम इसे अलग अलग दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करते हैं।पहला है अर्थशास्त्र के सूत्र-एडम स्मिथ कायह कथन कि 'साधन सीमित हैं और आवश्यकताएं असीमित हैं ' बड़ा गलत और घातक सिद्ध हुआ है।इस कथन का परीक्षण किए बिना लोग ऐसी दौड़ में शामिल हो गए हैं जिसका कोई लक्ष्य है ही कोई अंत।हमारी सारी सोच दूसरों पर आधारित है।हम अपना आंकलन दूसरों की नज़र से करते हैं।दूसरा कहे हम सफल हैं तो अपने आप को सफल मानते हैं।दूसरा कहे हम खुश हैं तो अपने आप को खुश मानते हैं।और कुछ दिन बाद ही ये धारणाएं गलत साबित होने लगती हैं क्योंकि वास्तव में तो हम खुश नहीं हैं।आइए अब हम एक ऐसे आदर्श स्कूल का ज़िक्र करते हैं जिसमें अर्थशास्त्र के इस कथन का परीक्षण करने के लिए अपने बच्चों से एक सूची बनाने के लिए कहा जिसमें अपनी सारी भौतिक आवश्यकताओं का ज़िक्र हो जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, मोबाइल, गाड़ी आदि।फिर इसकी पूर्ति कैसे हो इस पर विचार करने के लिए कहा गया।चिंतन, मनन, मंथन करने के बाद यह निर्णय निकला कि हमारी भौतिक आवश्यकताएं सीमित हैं और कार्य करने से, मेहनत करने से इनकी पूर्ति होती है।इसीप्रकार मानसिक यानि भावनात्मक आवश्यकताओं की सूची बनाने के लिए कहा गया।

जैसे प्यार ,सम्मान, सुरक्षा, खुशी आदि।इसकी पूर्ति कैसे हो इस पर भी विचार करने के लिए कहा गया।निष्कर्ष  निकला कि मानसिक या भावनात्मक आवश्यकताएं भी निश्चित हैं और इनकी पूर्ति आपसी व्यवहार से संभव है।लेकिन जब हम भौतिक सामान से भावनात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं तो उलझ जाते हैं और ऐसा लगने लगता है कि असीमित सामान होने के बावजूद भी हमारी आवश्यकताएं पूरी नहीं होती।इसके बाद बच्चों को विश्लेषण करने के लिए कहा गया कि वे कोई चीज़ क्यों खरीद रहे हैं?उन्हें इसकी आवश्यकता है या इसलिए कि वे उससे दिखावा करना चाहते हैं।ऐसी गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को अपनी सोच सही और सकारात्मक रखने की शिक्षा दी जाती है।

इसी प्रकार समाजशास्त्र के जनक कहे जाने वाले डार्विन ने एक सिद्धान्त दिया 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट 'अर्थात योग्यतम ही जीता है।इसका मतलब तो यह हुआ कि कमजोर को जीने का कोई अधिकार नहीं है।ऐसे में तो जो बलशाली हैं वे भी आपस में लड़कर मरखप जाएंगे।मानव सभ्यता का इतिहास गवाह है कि हम एकदूसरे का सहयोग करके ही सुरक्षित रह सकते हैं।

इसी प्रकार मनोविज्ञान के जनक फ्रायड का कहना है कि मनुष्य का हर काम, कामवासना से प्रेरित है।यदि ऐसा होता तो सारे रिश्तों की पवित्रता धूलधूसरित हो जाती और समाज का तानाबाना अस्त व्यस्त होकर बिखर गया होता।

ऐसे ही अनेक प्रयोग अभिभावक स्कूल में किए जाते हैं जिसके प्रेरणास्त्रोत श्री ए. नागराज हैं।इनके द्वारा सहअस्तित्व मूलक शिक्षा का प्रारंभ किया गया।

यह स्कूल रायपुर और रायपुर से 24 किलोमीटर दूर भिलाई मार्ग पर अछोटी गांव में अभ्युदय संस्थान द्वारा चलाए जा रहे हैं।दिल्ली में 2015 में श्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली सरकार में शिक्षा मंत्री के रूप में कार्यरत श्री मनीष सिसोदिया ने भी दिल्ली के सरकारी स्कूलों में इसी प्रकार की गतिविधियां प्रारम्भ की हैं।

 

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