सम्पादकीय

विनाश की ओर बढ़ते मानव-विकास के कदम

पृथ्वी

 पर अनेक धर्म हैं। हर धर्म में मनुष्य की उत्पत्ति का सिद्धांत अलग-अलग है, परंतु सभी की एक सर्वमान्य धारणा है कि हर जीव किसी दैवी शक्ति से उत्पन्न है। यह दैवी शक्ति अपने अंश के संरक्षण और  विकास के लिए हमेशा सजग रहती है।

मनुष्य ने अपने विकास की यात्रा से बहुत कुछ सीखा है। वह कई बार इस पृथ्वी से विलुप्त होते-होते बचा है। घटनायें यह बताती रही हैं कि मनुष्य को अपने विनाश के लिये किसी अन्य की जरूरत नहीं पड़ी है, सिवाय उसके अहंकार के।

प्राचीन भारत में हुये 18 दिनों के महाभारत युद्ध में तत्कालीन राजाओं ने अपना सर्वस्व नष्ट कर दिया था। कुरूवंश करीब-करीब खत्म हो गया था। उसके पूर्व रामायण काल में, रावण के युद्ध की आकांक्षा के कारण, उसकी स्वर्णमयी लंका जल गयी थी और उसके समस्त कुल का विनाश हो गया था। आधुनिक काल में दो महायुद्ध हुये। फलस्वरूप, कई नगर और देश नष्ट हो गये। आज भी उन युद्धों का प्रभाव मानव-जीवन पर दिखायी देता है। पर सच्चाई यही है कि मनुष्य ने उन युद्धों से कुछ सीखा नहीं है। रामधारीसिंह दिनकर की रश्मिरथी की पंक्तियां आज भी सच ही लगती हैं:

जब नाश मनुज पर छाता है,

पहले विवेक मर जाता है।

हर युद्ध में एक पक्ष की जीत होती है और दूसरे पक्ष की हार होती है। हार के बिना जीत संभव नहीं होती है। हार और जीत एक ही सिक्के के दो फलक होते हैं। जब युद्ध समाप्त होता है, तब युद्ध में हुये मानवीय नुकसान को देखकर, जीतने और हारने वाले, दोनों ही पक्ष, पश्चाताप अवश्य करते हैं क्योंकि हर एक का कोई न कोई अपना इसमें खो गया होता है।

मनुष्य ने अपनी जीवन-विकास-यात्रा में ऐसे भयानक हथियार बना लिये हैं कि वे पलक झपकते समस्त विश्व को खत्म कर सकते हैं। क्या बिडंबना है कि इतने विकास के बाद भी वह कोई ऐसा तरीका नहीं खोज पाया है जिससे मरे हुये को फिर से जिंदा किया जा सके।

वर्तमान समय के रूस-यूक्रेन-घमासान ने यह बता दिया है कि विश्व की बड़ी शक्तियों ने अपने अभिमान को आगे रखा और मानवीय त्रासदी की सोच को पीछे। गुटों में बंट कर शक्तिशाली राष्ट्र, एक अपरिपक्व राजनेता को मोहरा बनाकर, अपना आर्थिक हित साधते रहे और एक-दूसरे को नीचा दिखाते रहे।

अच्छा व्यक्ति कभी अपने पड़ोसी से वैरभाव नहीं रखता है। वह कुछ खोकर और कुछ रखकर संतोष कर लेता है। उसकी सोच यही होती है कि आज नहीं तो कल पड़ोसी से हमारा संबंध अच्छा हो ही जायेगा।

राजनीति में बड़बोलेपन की कोई जगह नहीं होती है। इसका जितना अभाव रहता है, उतना ही आपसी समरसता रहती है। प्रतिबंध दुधारी तलवार जैसे काम करते हैं। लगाने वाले पर भी यह बराबर का प्रभाव डालते हैं। प्रतिबंध लगाना भी एक प्रकार से युद्ध को भड़काने जैसा ही होता है। जहां यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की एक बड़बोले सिद्ध हुये, वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति गरूर वाले सिद्ध हुये, और रूस के राष्ट्रपति एक गंभीर राजनेता दीखे।

सफल राजनेता हमेशा शांत और सुलझा हुआ नजर आता है। समस्याओं की गंभीरता उसके चेहरे पर नहीं दिखायी देती है। उसके चेहरे पर समस्याओं के हल की चमक झलकती है। कठिन समय में जो शांत बना रहता है, वही साहसी और बुद्धिमान होता है। रूस पर विभिन्न प्रतिबंधों के जरिये यूरोप अथवा अमेरिका खुद को बड़ा साबित नहीं कर सकते हैं। किसी को नीचा दिखाकर हम खुद को बड़ा नहीं बना सकते हैं। बड़ा वह नहीं होता है जो दूसरों को छोटा समझे। बड़ा वह होता है जिससे मिलकर कोई खुद को छोटा महसूस न करे।

2 अप्रैल 2022 को हिंदू नववर्ष संवत्सर 2079 प्रारंभ हो रहा है। आइये, हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह नववर्ष में विश्व की सभी बड़ी शक्तियों को सद्बुद्धि दे कि सब मिलकर मानव-कल्याण की बात करें और अपने अभिमान को छोड़कर साथ-साथ रहने की आदत डालें। हम ज्ञान विज्ञान सरिता परिवार की तरफ से नववर्ष के शुभ अवसर पर अपने सभी लेखकों, पाठकों, अभिभावकों और विद्यार्थियों को हार्दिक बधाई देते हैं और प्रार्थना करते हैं कि सभी लोग अपने लक्ष्य में सफल हों।

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