नारी की महिमा नारी ही जाने
डॉ संगीता पाहुजा
नारी की महिमा नारी ही जाने,समझ सके न कोई और|
सागर सी गहराई नारी की, नाप सके न कोई ओर |
जितना भी जानना चाहे कोई, रह जाएगा अछूता फिर भी, कोई न कोई कोर |
खुद को ही जो पूरा जान न पाए, समझेगा कैसे कोई और |
पूरा जीवन जो कर दे अपनों की खुशी पर निः सार |
अपना वयक्तित्व जो सबके लिए बदल डाले हर पल,
उस वयक्तित्व को कैसे समझे कोई और |
हर मुश्किल में शक्ति अर्जित करके, कब शक्ति स्वरूपा हो जाए,
स्वयं ही स्व रूप से भ्रमित हो जाए, तो कैसे समझे कोई और |
श्रेष्ठ होकर भी जो दो कदम पीछे चलने को हो तैयार |
क्रंदन की घड़ी में भी, जो मुस्कुरा चल दे,
नारी की इस महिमा को क्या समझेगा कोई और |
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