शिक्षा
सुरेश तलरेजा
शिक्षा मनुष्य के भीतर अच्छे विचारों का निर्माण करती है,जिससे मनुष्य सुखमय जीवन व्यतीत कर सकता है । शिक्षा एक व्यक्ति को अपनी क्षमता का पता लगाने और बढ़ाने में मदद करती है। बेहतर समाज के निर्माण में सुशिक्षित नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
महात्मा गांधी – “शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी को केवल ज्ञान देना नहीं बल्कि उसमे ऐसी क्षमताओं को विकसित करना है जिनके द्वारा वह आज के युग में होने वाले पूर्वानुमानित या अप्रत्याशित परिवर्तनों से उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर सके।
विद्यार्थी के शिक्षा ग्रहण करने के अलग अलग कारण हो सकते हैं, परंतु शिक्षा माध्यम से अनेको लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। शिक्षा के द्वारा अनेक प्रकार के रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं। आज के युग में कोई अनपढ़ कहलाना नहीं चाहता है। अनपढ़ व्यक्ति को दैनिक जीवन में अनेक प्रकार की समस्या से गुज़रना पढ़ता है। राज्य शासन द्वारा भी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया गया है, अनेक विधालय खोले गए है जहां पर विधायार्थी निशुल्क शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। विद्यार्थियों को इस अवसर का लाभ उठाकर अपना भविष्य संवारना चाहिए। मन में विचार आता है कि शिक्षा क्यो ग्रहण करे?. पहले तो समाज में अनपढ़ होने की शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी और दूसरा अच्छे स्तर का काम नहीं मिलेगा जिससे जीवन भर आर्थिक कठिनाइयों से सामना करना पड़ेगा। बिना शिक्षा के कार्य के अच्छे अवसर नहीं मिलेंगे, जीवन भर का समय मजदूरी में व्यतीत होगा। विधालय वह स्थान है जहां पर सब बच्चे समान है और सबको सीखने के बराबर अवसर हैं। विधालय जाने से अच्छे संस्कार मिलते हैं, जिससे सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। शिक्षा जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में मददगार होती है। शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी आकाश की उड़ान भर सकता है और सबके सम्मान का पात्र बनता है। वर्तमान समय में विद्यार्थी के पढाई मे आर्थिक कारण कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, बस आवश्यकता है धैर्य एंव कठोर परिश्रम करने की है। मेरे देखे बहुत से विधायार्थी सरकारी योजनाओं एंव सामाजिक संगठनों की मदद से लक्ष्य को प्राप्त कर चुके हैं।
सुश्री सुधा मूर्ति का उल्लेख करना समीचीन हैं कि कैसे वे ऊँचाई तक पहुंची और आज शिक्षा के क्षेत्र में अनेकों कार्य कर रही हैं। सुधाजी निर्धन परिवार से थी और परिवार के अन्य कारणों से छोटी उम्र मे घर छोड़ दिया। बालिका को कहा जाना पता नहीं है।वह ट्रेन में सीट के नीचे बैठ गयी, टिकट चैक करने वाले ने बालिका को देखकर पूछा टिकट दिखाओ वह घबरा गयी। उसी सीट के ऊपर प्रोफेसर श्रीमती भट्टाचार्य सफर कर रही थी, उसने बालिका के टिकट के पैसे दिए और अपने साथ ले गयी। बैंगलोर पहुंच कर उन्होंने बालिका के शिक्षा की व्यवस्था सामाजिक संस्था के माध्यम से कर दी, समय- समय पर हाल पूछती और पढ़ने हेतु प्रेरणा देती रही। वह बालिका पढ़ लिखकर अमेरिका पहुंच गई, और उनका विवाह इन्फोसिस कंपनी के डायरेक्टर श्री नारायण मूर्ति के साथ हुआ। एक बार प्रोफेसर भट्टाचार्य का अमेरिका जाना हुआ होटल में ठहरी , सुधा मूर्ति को मालूम हुआ आप अमेरिका आई है तो होटल मिलने गयीं और वहां पहुंचकर होटल में ठहरने का पूरा बिल चुकाने लगी, तो प्रोफेसर साहिब ने पूछा मैंने पहचाना नहीं, वे बोलीं मैं वहीँ लड़की हूं जिसे आपने पढ़ाया था। उपरोक्त से निष्कर्ष यही है कि धैर्य और लगन के साथ पढ़ना चाहिए।
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