फर्ज कर्म संग होने से, उत्कर्ष स्वयं हो जाता है

उर्मिला द्विवेदी

 


घर से बाहर होने पर ही,

वह अमूल्य पल आता है

लक्ष्य बड़ा एक बनता है,

और पूरा भी हो पाता है।

 

राम अयोध्या छोड़े जब,

निष्कंटक जंगल कर पाये

राक्षस मारे जीती लंका,

बन भगवान लौट घर आये।

 

कृष्ण गये गोकुल से जब,

वीर धीर मतिवान हुये

संरक्षक बन युद्ध जिताये,

गीता का उपदेश दिये।

 

महल छोड़ सिद्धार्थ गये जब,

गौतम से वह बुद्ध बने

दिया विश्व को बौद्ध धर्म,

ख्याति मिली सिरमौर बने।

 

खुद के खुश होने पर ही,

सौभाग्य सामने आता है

करूणामय जीवन शैली से,

सार्थक वह बन पाता है।

 

मिलता है जब लक्ष्य कोई,

मन प्रसन्न हो जाता है

फर्ज कर्म के मिलने पर,

उत्कर्ष स्वतः हो जाता है।

 

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