क्या करें?

पुरुषोत्तम विधानी

एक कहावत है-दुख में सुमिरन सब करें,सुख में करे कोय। जो सुख में सुमिरन करें तो दुख काहे को होय।।

अर्थात जब हम दुखी होते हैं तो सुमिरन करते हैं, चिंतन करते हैं।दुख दूर करने का उपाय ढूंढते हैं।किसी ऐसे मार्गदर्शक, गुरु की तलाश करते हैं जो हमें हमारे दुखों से छुटकारा दिला दे।गुरु कैसा होना चाहिए, यह तलाश करने से हो सकता है आप कई गुरुओं के पास जाएं।जैसे आप बीमारी का इलाज़ कराते कराते उस डॉक्टर के पास स्थिर हो जाते हैं जो आपको आपकी बीमारी से छुटकारा दिला दे अर्थात दुखों को दूर कर दे।अब आपकी तलाश सद्गुरु पर आकर स्थिर हो जाती है।सद्गुरु सबसे पहले आपको अच्छा इंसान बनने के लिए कहते हैं।अच्छा इंसान कैसा होता है, उसके क्या गुण होते हैं, यह समझाते हैं।पहले वो विचार देते हैं, वे विचार हमारे अंदर अच्छा इंसान बनने की इच्छा जगाते हैं, फिर इस इच्छा की पूर्ति के लिए हम कर्म करते हैं।सद्गुरु समझाते हैं कि अच्छा इंसान बनने के लिए सत्कर्म करना ज़रूरी है।पर हम अनुभव करते हैं कि लाख कोशिश करने के बाद भी हमसे गलत कर्म हो ही जाते हैं।ऐसा क्यों होता है?ऐसा इसलिए होता है कि कई वर्षों, कई जन्मों के अभ्यास के कारण हमारी वैसी प्रव्रत्ति हो गई है, वैसा स्वभाव बन गया है।अब उस स्वभाव को बदलने के लिए समय भी लगता है, अभ्यास भी लगता है।

दूसरी कहावत है-करत करत अभ्यास जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान।।

सद्गुरु हमें निरंतर अच्छा इंसान बनने के लिए, सत्कर्म करने के लिए, अभ्यास करने के लिए कहते हैं।ध्यान में बैठना इस अभ्यास का अंग है।ध्यान में बैठने पर हम अनुभव करते हैं कि अनेकानेक विचार आने शुरू हो जाते हैं।

इसमें कोई बुराई नहीं है।इन विचारों से लड़ना नहीं है, इनमें उलझना नहीं है, इन्हें दूर करने की कोशिश नहीं करना है।सोचना यह है कि क्या हम ये विचार पहली बार कर रहे हैं, इनका महत्व क्या है, कितना है?इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण विचार कौन से हैं?अब आप विचारों की छंटनी शुरू कर देते हैं।महत्व वाले विचारों में स्वास्थ्य संबंधी हो सकते हैं, रोज़गार संबंधी हो सकते हैं, रिश्तों संबंधी हो सकते हैं समय प्रबंधन संबंधी हो सकते हैं या ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण विचार हो सकते हैं।रोज़ ध्यान में बैठते वक़्त आप डायरी और पेन साथ में रखें।ध्यान के बीच में या बाद में आप इन महत्वपूर्ण विचारों को डायरी में लिख लीजिए।इसमें कुछ समस्याएं होंगी उनके संभावित समाधान होंगे।हो सकता है कुछ समाधान आप आजमा चुके हों पर सफल नहीं हुए।असफल होने के मुख्य रूप से दो कारण हो सकते हैं।एक-रास्ता गलत हो।दूसरा-आपने प्रयास पूरे मन से न किए हों।यदि रास्ता भी सही है और प्रयास भी पूरे मन से किए हैं तो उसे समय पर छोड़ देना चाहिए।अंग्रेज़ी में कहावत है-Time is the best heeler or time is the best teacher. अर्थात समय सबसे बड़ा डॉक्टर है या समय सबसे उत्तम शिक्षक है, सब सिखा देता है।अब यदि रास्ता सही है तो चलते रहिए, प्रयास पूरे मन से कर रहे हैं तो करते रहिए, फिर भी समाधान न मिले तो समय पर छोड़ दीजिए।अब सोचने को बचा क्या है?धीरे धीरे आपके विचार कम होते जाएंगे।आपको लगेगा कि यह सब तो हम सोच चुके हैं, अब करने की बारी है।अब आप अपने कर्मों का प्रबंधन शुरू कर देंगे।इसमें डायरी बड़ी सहायक है।

दिनचर्या बना लेना बड़ा सहायक है।कोई नया विचार आए तो उसे लिख लेना अच्छा है।अब विचार आपके दिमाग में नहीं डायरी में कैद हैं।अब आप ध्यान में बैठेंगे तो न विचार आएंगे , न तंग करेंगे।ऐसा नहीं है।कुछ नए विचार आएंगे।ये विचार गहरे होंगे।मसलन महत्वपूर्ण होंगे।हो सकता है आप सोचने लगें-मै कौन हूं, कहाँ से आया हूँ, क्यों आया हूँ, क्या करना है, कहाँ जाना है।यह संसार क्या है, इसे किसने बनाया।इसी प्रकार के कुछ विचार आपके ध्यान में बैठने से आएंगे।हो सकता है हर सवाल का जवाब आपके पास न हो तब आप क्या करेंगे?गुरु ढूंढेगे, उनके सत्संग सुनेंगे, उनकी किताब पढ़ेंगे, वे जैसा कहेंगे वैसा करने का अभ्यास करेंगे।तरक्की आपकी लगन और मेहनत पर निर्भर करेगी।यह सतत चलने वाली प्रक्रिया है, इसमें धैर्य की ज़रूरत है।हो सकता है आपको लगने लगे कि इसकी कोई मंज़िल ही नहीं है।यह तो एक सिस्टम है, प्रणाली है, स्वनियंत्रित प्रणाली है, इसमें आपका कोई रोल नहीं है।रोल है तो शायद इतना कि आप इस सिस्टम को, प्रणाली को समझने का प्रयास करें, इसके नियमों के अनुकूल चलने का प्रयास करें।जितना ही सटीक विश्लेषण होगा और जितने सटीक प्रयास होंगे उतना ही आप वर्तमान में जीने लगेंगे।आज, अभी, इस वक़्त जो विचार हम कर रहे हैं, जो कर्म कर रहे हैं वही हमें सुख, शांति, प्रेम और आनंद देता है।ॐ शांति।

 

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