क्या तुम वही हो न ?
कृष्ण कुणाल झा
क्या तुम वही हो ना,
जिसको,इस जग ने धुतकारा था ?
और एक हारा हुआ इंसान,
जोरों से आलिंगन को पुकारा था ?
पर तुम अब यहाँ क्या कर रहे हो ,
इस विद्वत संसार में ?
यहाँ सब के सब त्रिकालदर्शी हैं,
बता देते हैं पहले ही ,
क्या हैं किसके कपाड़ में ?
हाँ,मैं सच कह रहा हूँ,
मुझे तजूर्बा हैं इन सब की ।
तभी तो मैं किसी को मुँह नहीं दिखाता,
खासकर लकीड़े हाथ और ललाट की।
भले हीं दंभ भरता रहता हूँ,
अकेले में उड़ने को ।
फिर भी खुले मैदान नहीं जाता,सिखने को ।
अगर देख लिया किसी ने,
सीख रहा हैं उड़ना,
पहले व्यंग से,
नहीं तो सीधा चला देगा,पंख पर ही छूरा ।
सही किया तूने, हर व्यूह सीखकर ही घर से निकला ।
वर्ना,चढ़ा कर झाड़ पर,
नीचे से काटने को धमकी मिलता ।
अब बोल सकता हैं तू,
मैं मोहताज नहीं हूँ किसी सहारे का ।
अब सीख चुका हूँ,उपर ही उपर उड़ जाने का ।
और तरक़ीब,
हर चक्रव्यूह मे घुसकर सफलतापूर्वक बाहर निकल जाने का ।
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