विद्वान
डॉ संगीता पाहुजा
इत्र की संगत से यथा, महक जाता बागान।
तथा विद्वानों की संगत में, बढ़ जाता ज्ञान।।
ज्ञान वर्षा हो रही, कर लो ज्ञान रस पान।
ज्ञान रस पीजिये, करके श्रेष्ठ अनुसंधान।
मन, बुद्धि निर्मल कीजिए, पाकर संगत विद्वान।
ज्ञानार्जन व ज्ञान वितरण का संतुलन बनाता हर गुणवान।
ज्ञान, भाव, प्रेम, विद्या, सबका करो आदान, प्रदान।
न कुछ भी कर्ज़ शेष रहे, रखिये सदा ध्यान।
मन, बुद्धि निर्मल रहे,ऐसा ही पाओ ज्ञान।
सर्वप्रथम जो बने श्रेष्ठ इंसान, सही मायने में वही कहलाये विद्वान।
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