सच्चा सुख
सुरेश तलरेजा
मनुष्य के मूल मे सुख की कामना रहती है ,परन्तु उसे ज्ञान नहीं होता की शाश्वत सुख कहाँ से मिलेगा | भौतिक सुविधाओ के संगृह को ही सुख का आधार मान लिया गया है | ऐसी मान्यता है कि जिस मनुष्य के पास अपार धन सम्पदा है वह सुखी है | क्या जिस मनुष्य के पास अपार धन है, वह सुखी है? ऊपरी तौर पर दिखता है की वाह् क्या ऐशो आराम की जिंदगी जी रहा है | मनचाही वस्तुओं का उपयोग कर रहा है , अच्छे पकवान एवं सुंदर कपड़े पहन रहा है बस जिंदगी तो इसी की है | मुझे एक वाक्या नौकरी के समय का याद आ रहा है, मेरे उच्च अधिकारी का मकान निर्माणाधीन था ,मै निरीक्षण हेतु जाया करता था, उनके पड़ौसी बोर्ड मेंबर थे |एक बार मुझे बुलाया और पूँछा कि “क्या चल रहा है?” मैंने उन्हे मकान की रुप रेखा के बारें में बताया, तो उन्होने प्रतिक्रिया दी कि मेरा मकान तो झोपड़ी जैसा लगेगा |
मनुष्य का सुखी और दुखी होना उसके विचारों पर निर्भर करता है | यदि कोई सुखी है, तो है | सुखी होने के लिए कारण का होना अनिवार्य नहीं है, जिनका सुख मांग पर आधारित है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता है | राजा सिकंदर अन्य देशों पर विजय पताका फहराते हुए भारत मे ब्यास के किनारे एक साधू से मिले और बोले “मुझे पहचानते हो, मै हूँ राजा सिकंदर तुम बैठे बैठे समय बरबाद कर रहे हो?” साधू ने पूछा राजन तुम क्या कर रहे उसने कहा मै विश्व विजेता बनुगा और बहुत आनंद को प्राप्त करूँगा, वह तो मुझे वैसे ही प्राप्त है| सिकंदर साधू की बात सुनकर शर्मिंदा हुआ |
मनुष्य को जो मिला है, उसकी खुशी नही मनाता है | सदैव शिकायत से भरा रहता है कि उसका जीवन अभाव से भरा है | उस पर दिन भर सोचता रहता है और एक दिन अवसाद में चला जाता है | इस प्रकार स्वास्थ्य बिगड़ता चला जाता है | मनुष्य के दुख का मूल कारण उसका अहंकार है कि ‘वह ही श्रेष्ठ है’ | यही धारणा उसके पतन का कारण बनती हैं | अपनी श्रेष्ठता को सिध्द करने के लिए के लिए मनुष्य किसी भी हद तक गिर सकता है, चाहे उसका विनाश ही क्यों ना हो जाए |
वर्तमान मे रूस एवं यूक्रेन का युध्द जवलंत उदाहरण हैं | वर्तमान में यूक्रेन खंडहर मे बदल चुका हैं , कितने निर्दोष लोग मारे गये हैं | ईश्वर का आदेश है कि धरती पर सब वसुधैव कुटंम्बन की भावना के साथ रहे | यदि मानव जाति का ध्यान नही रखा गया, सब अपने स्वार्थ में डूबे रहे तो सुख की आशा करना दिवा स्वप्न होगा | मनुष्य ही मनुष्य की सहायता कर सकता हैं, पशु पंछी तो मनुष्य की सहायता करने से रहे | इसलिए हमें मनुष्य की सहायता अवश्य करनी चाहिए | सुकारात यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक हुए जिन्होंने कहा "अपने आपको पहचानो" | अपने को शरीर मानकर जिओगे तो तुम दुखी रहोगे क्योंकि शरीर मरण धर्म है और जीवन की अवधि सीमित है | अपने मूल स्वरुप आत्मा में स्थित हो जाओगे तो सच्चे सुख की प्राप्ति होगी |
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