सम्पादकीय

विश्व योग दिवस

करो योग और रहो निरोग

योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। इसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता है। योग, वास्तव में, सही तरीके से जीवन जीने का विज्ञान है। योग के अभ्यास में सकारात्मक सोच एक सच्चे साथी की भूमिका निभाती है। योग में आसन, प्राणायाम, और ध्यान के माध्यम से हम अपने मन, श्वांस और शरीर के विभिन्न अंगों में सामंजस्य बनाना सीखते हैं। किसी ने सच कहा हैः

योग स्वास्थ्य के लिये होता है वरदान

सब  रोगों का यह करता  सही निदान

संपूर्ण विश्व 21 जून को विश्व योग दिवस मनाता है। इस दिन सूर्य पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध पर होता है। इस दिन वर्ष भर की अपेक्षा सबसे अधिक समय लगभग 15 से 16 घंटे तक सूरज की किरणें पृथ्वी के इस भू-भाग पर रहती हैं, इसलिये इस भू-भाग के लिये यह वर्ष का सबसे बड़ा दिन होता है।

योग का शाब्दिक अर्थ होता है: जोड़ना। योग का नियमित अभ्यास मनुष्य के जीवन को स्वस्थ रखता है Double Brace: योग का अभ्यास भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है। योग वह क्रिया है जो मनुष्य और प्रकृति के बीच भी सामंजस्य बैठाता है।जिससे उसकी आयु लंबी होती है। योग का अभ्यास भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है। योग वह क्रिया है जो मनुष्य और प्रकृति के बीच भी सामंजस्य बैठाता है।

महर्षि पतंजलि ने योग के आठ अंग बताये हैं जिन्हें अष्टांग योग कहा जाता है। ये हैं-यम यानि मर्यादित आचरण, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि। इनमें से आजकल लोग केवल आसन, प्राणायाम और ध्यान का ज्यादा उपयोग कर रहे हैं।

महर्षि व्यास ने महाभारत के शांतिपर्व में योग की महत्ता को दर्शाने के लिये लिखा है: ज्ञान की रक्षा योग से होती है। सामान्य जीवन में योग के मुख्यतया तीन प्रकार बताये गये हैं : ज्ञानयोग, कर्मयोग, और भक्तियोग। ज्ञानयोग सिखाता है कि समस्त जगत् परमात्मा से उत्पन्न होता है और अंत में  परमात्मा में ही विलीन हो जाता है। कर्मयोग सिखाता है कि मनुष्य के अंदर कर्म करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। वह एक क्षण भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता है। भक्तियोग बताता है कि बिना इसके निष्काम कर्म नहीं हो सकता है। यह सिखाता है कि जब हम अपने को ईश्वर को समर्पित कर देते हैं, तब वह हमारी चिंता करने लगता है।

अपने कार्यों को अच्छी तरह से करना भी योग ही होता है। योगः कर्मसु कौशलम्।  योग को समझने के लिए गीता एक शाश्वत ग्रन्थ है। गीता में कृष्ण अर्जुन को समझाते हुये कहते हैं कि हे धनंजय, तू आसक्ति को त्याग दो तथा सफलता और असफलता के बारे में विचार छोड़कर अपने कर्मों को कुशलता पूर्वक संपन्न करो।

आइये, सब मिलकर विश्व योग दिवस के अवसर पर संकल्प लें कि योग को हम अपने जीवन का आवश्यक अंग बनायेंगे और सदा स्वस्थ रहेंगे :

योग को जीवन में अपनायेंगे

स्वस्थ रहेंगे, शत वर्ष जियेंगे

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