सुकूनअब मिलने लगा है
डॉ संगीता पाहुजा
सींचा था जिन पौधों को
छांव वो अब देने लगे हैं।
रोपे थे जो बीज बीते वक्त में
अंकुरित अब होने लगे हैं।
किया जो संघर्ष, परवरिश देने में
सुकून बीते संघर्ष का अब मिलने लगा है।
शुक्र है मेरे मालिक, मेरा विश्वास बनने लगा है।
परिश्रम,सच्चाई, ईमानदारी पर
फख्र होने लगा है।
ये तेरी भक्ति ,शक्ति है मेरे कान्हा
जो हर हाल में सुकून मिलने लगा है।
थोड़ा भी बहुत लगने लगा है।
न शिकवा न शिकायत
हर कोई अपना लगने लगा है।
सब में रब दिखने लगा है।
ये तेरी भक्ति ,शक्ति है मेरे कान्हा
जो हर हाल में सुकून मिलने लगा है।
—00—