सम्पादकीय
हिन्दू नववर्ष की शुरुआत
हर देश का एक कैलेंडर होता है। हर कैलेंडर ब्रहमांड में चंद्रमा, सूर्य, नक्षत्रों आदि की साल भर की भिन्न-भिन्न स्थितियों की गणना के आधार पर बना होता है। कैलेंडर बताता है कि ब्रहमांड में कौन सी खगोलीय घटना कब घटेगी, कौन-सा त्यौहार कब मनाया जायेगा, और कौन-सी ऋतु कब आयेगी आदि। हर कैलेंडर सालों साल के पल-पल का हिसाब रखता है। सच कहा जाये तो कैलेंडर सभ्यताओं, संस्कृतियों और उसके अनुयायियों की जीवनशैली का हिसाब-किताब रखते हैं। हर देश अपने कैलेंडर के पहले दिन को नये साल की शुरूआत मानता है और इसे बहुत धूमधाम से मनाता है।
विश्व के कुछ प्रमुख कैलेंडर हैं : विक्रमी संवत्, शक संवत्, ग्रेगोरियन कैलेंडर, हिब्रू कैलेंडर, हिजरी कैलेंडर, थाई कैलेंडर, मेक्सिको का माया कैलेंडर, रोमन कैलेंडर, पारसी कैलेंडर आदि।
विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक बेबीलोन में पहले उनका नया वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता था। यह तिथि बसंत के आगमन की तिथि मानी जाती थी। रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसापूर्व 45 वें वर्ष में जूलियन कैंलेंडर की स्थापना किया और पहली बार 1 जनवरी को नये वर्ष की शुरूआत का उत्सव मनाने का निश्चय किया।
ईसवी संवत् की शुरूआत पोप ग्रेगोरी अष्टम द्वारा की गयी। इसमें लीप ईयर का प्रावधान है यानि हर चौथे वर्ष में फरवरी को 28 से बढाकर 29 दिन कर दिया जाता है। इसमें काल गणना मध्यरात्रि से मानी जाती है। ईसाई धर्मावलंबी 1 जनवरी को अपना नया वर्ष शुरू करते हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर 1582 ईसवी में शुरू हुआ था। यह जूलियन कैलेंडर को हटाकर अपनाया गया था।
विक्रमी संवत् भारतवर्ष का सबसे पुराना कैलेंडर है। इसे सम्राट विक्रमादित्य ने प्रारंभ किया था। आक्रांता शकों को देश से बाहर खदेड़ने के बाद भारत की सत्ता की बागडोर संभालने के उपरांत इसकी शुरूआत हुयी थी। इसके अनुसार वर्ष में बारह महीने होते हैं : चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, और फाल्गुन। हर मास में दो पक्ष होते हैं : कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। सामान्यतया हर पक्ष 15 दिन का होता है।
भारतवर्ष में विभिन्न मतावलंबी लोग अपने नये वर्ष अपने तरीके से भिन्न-भिन्न समय पर मनाते हैं पर सबका उद्देश्य एक ही होता है कि उनकी संस्कृति और उनके त्यौहार सुरक्षित रहें। भारत के विभिन्न हिस्सों में नये वर्ष के कई नाम हैं।
पंजाब में नया साल बैसाखी के नाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल के रूप में मनाया जाता है। आंध्रप्रदेश में यह युगादि या उगादि के नाम से प्रचलित है। सिंधु प्रात में इसे चेटी चंडो कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान झूलेलाल जो वरूण के अवतार थे, उनका जन्म इसी दिन हुआ था। कश्मीर में यह नवरेह के नाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में यह गुड़ी पड़वा के नाम से मशहूर है। कर्नाटक में नया साल उगाडी के रूप में मनाया जाता है। सिक्ख मतावलंबी अपना नववर्ष बैसाखी के रूप में मनाते हैं। जैन लोगों का नववर्ष दीपावली के अगले दिन से शुरू होता है। मारवाडी लोग अपना नया साल दीपावली के दिन मनाते हैं। गुजराती लोग दीपावली के दूसरे दिन मनाते हैं। बंगाली नया साल पोहेला के नाम से मनाया जाता है जो बैसाख महीने का पहला दिन होता है।
हिंदुओं का नया वर्ष विक्रमी संवत् के चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को शुरू होता है। यह दिन होली के पंद्रह दिनों बाद आता है। होली भारत में फाल्गुन मास की शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनायी जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा 13 अप्रैल 2021 मंगलवार को है। संवत् 2077 समाप्त होकर इसी दिन से संवत् 2078 की शुरूआत हो रही है।
चैत्र मास बहुत-सी शुभ घटनाओं से भरा पड़ा है। सतयुग की शुरूआत इसी माह से मानी जाती है। श्रीराम का जन्म चैत्रशुक्ल नवमी को हुआ था। भगवान विष्णु के दशावतारों में से पहला अवतार मत्स्यावतार इसी माह में हुआ और जल-प्रलय में घिरे मनु को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया गया जिससे बाद में सृष्टि का पुनः सृजन संभव हुआ।
भारत में सरकार के कामों के लिये प्रमुख रूप से दो संवत् प्रयोग किये जाते हैं। पहला-अंग्रेजी कैलेंडर और दूसरा-शक संवत्। अंग्रेजी कैलेंडर पहली जनवरी को शुरू होता है। इसमें 365 दिन अथवा 366 दिन होते हैं। 366 दिन वाले वर्ष को लीप वर्ष कहा जाता है। इसमें फरवरी 29 दिनों की होती है। बाकी के सालों में फरवरी 28 दिनों की होती है। अभी अंग्रेजी वर्ष 2021 चल रहा है।
शक सवंत् ईसवी संवत् के 78 वर्ष बाद शुरू हुआ था। चैत्र इसका पहला महीना होता है। यह अंग्रेजी कैलेंडर या ग्रेगोरियन कैलेंडर की मार्च महीने की 22 तारीख से शुरू होता है। यह हमारे देश में 1957 में लागू हुआ था। लीप वर्ष में यह 21 मार्च को शुरू होता है। 22 मार्च से इस साल 1943 वां शक संवत् चलेगा।
हम भारतीय सबके कल्याण और सुख में विश्वास करते हैं। नववर्ष की शुरूआत पर हमारी प्रार्थना है कि सभी सुखी हों, सभी निरोग रहें, सभी का कल्याण हो और किसी को किसी प्रकार का दुःख न हो।
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।
—00—