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सत्य और ज्ञान की जिज्ञासा

(यह आलेख जे कृष्णमूर्ति के दिए गए विचारों पर आधारित है)

मुकेश आनंद

यहां इतने सारे गुरु हैं पूर्व में भी और पश्चिम में भी।  आखिर यह कैसे पता चलेगा कि कौन सा गुरु सही दिशा दिखा रहा है। सब इनलाइटनमेंट के अलग-अलग रास्ते बताते हैं।

जब कोई गुरु यह कहता है कि उसे पता है कि एनलाइटनमेंट कैसे होगा, इसका मतलब है कि उसे कुछ नहीं पता। जब कोई यह कहता है उसको इनलाइटनमेंट हो गया तो वह गलत कहता है। इनलाइटनमेंट कोई लक्ष्य नहीं है, जिसे थोड़ा-थोड़ा करके स्टेप बाय स्टेप पाया जा सकता है। सबसे पहले यही बात समझनी है कि इनलाइटनमेंट समय के हाथ में नहीं है।

मतलब मतलब कि आज मैं एनलाइटेड नहीं हूं पर अगर मैं यह सब करूंगा तो मैं एनलाइटेड हो जाऊंगा, यह कोई ऐसी चीज नहीं है। आखिर समय क्या है? यह तब जरूरी होता है जब हमें एक जगह से दूसरी जगह जाना हो। साइकोलॉजिकली हमें कहीं जाने में समय नहीं लगता। जो आप होना चाहते हैं वह आप कभी नहीं होंगे अगर आप क्या हैं, आपको यह पता ही नहीं है। हम क्या हैं उसकी समझ तुरंत होती है, इमीडीएटली होती है। इसके लिए किसी प्रोसेस की किसी एनालिसिस की, किसी तरीके की जरूरत नहीं होती। यह सब सारी चीजें एकदम बचकाना है।

जब आप किसी भी चीज को कदम दर कदम बार-बार करते हैं तो आपका माइंड डल, तकनीकी और स्टुपिड हो जाता है।

सबसे पहले तो आपको यह करना है कि, जो भी गुरु चाहे पूरब का हो चाहे पश्चिम का हो, चाहे मैं हूं, चाहे कोई और हो उसको पूरी तरह से डंप कर दें, फेंक दें। माइंड पूरी तरह किसी भी पैटर्न किसी भी अथॉरिटी, किसी भी प्रोसेस या पूर्वाग्रह से पूरी तरह मुक्त होना चाहिए तभी इनलाइटनमेंट हो सकता है।

अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि हमें कैसे पता चलेगा कि जो हमारे गुरु हैं वह सही बात बता रहे हैं। आपको प्रश्न पूछना होगा कि आखिर जो वो कह यहे हैं तो वो ऐसा क्यों कह रहे हैं। यह सभी प्रोसेस, स्टेप बाय स्टेप, अपनी अथॉरिटी जारी रखने, अपना नाम या पैसा या कुछ और मोटिवेशन के लिए होता है।  जब आप उनसे यह पूछेंगे तो वह आप पर नाराज हो जाएंगे, हो सकता है वह अपने सेक्ट से आपको बाहर निकाल दें।

और इस तरह से अथॉरिटी इस्टैबलिश्ड हो जाती है।

और जब कहीं भी अथॉरिटी होती है वहां प्यार नहीं होता, वह प्यार प्रदूषित हो जाता है उस प्यार में वह  केयर नहीं होता, जो होना चाहिए।

सत्य कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे हम कहीं और से पा सकते हैं। यह हमें तभी मिलता है जब हम सभी प्रकार की पूर्वाग्रह अथॉरिटी कंडीशनिंग से पूरी तरह मुक्त होते हैं। फिर उस प्रेम का जन्म होता है जो बिना किसी मोटिव या लक्ष्य के लिए होता है‌ किसी व्यक्ति परिवार गुरु व शिष्य के लिए नहीं बल्कि सबके लिए। सत्य किसी से खरीदा नहीं जा सकता। सब यही कहते हैं कि आप अपना प्रकाश अपना दीपक स्वयं बनो। लेकिन यह प्रकाश कोई गुरु नहीं दे सकता। अगर कोई आपको यह बात कहता है कि आपको ज्ञान दे देगा तो वह आप को बेवकूफ बना रहा है।  युवाओं और मासूमों के लिए यह दुनिया बहुत ही क्रूर है। और इस कारण लोग गुरु के पास और ऐसे लोगों के पास जाते हैं। वो उनको कहते हैं कि आप मेरे पास आओ मैं आपको शांति ज्ञान और सत्य से मुलाकात कर आऊंगा। लोगों को बेवकूफ बनाते हैं कि वो उनका ध्यान रखें रहे हैं। जो उन्हें अपने परिवार अपने माता-पिता अपने समाज से नहीं मिलता, वह चाहते हैं कि अपने गुरु से मिल जाए सो कॉल्ड गुरु। और वो उनके चक्कर में फस जाते हैं।

सत्य और ज्ञान आपको कोई दे नहीं सकता। इसके लिए आपको स्वयं प्रयास करना होगा और अत्यंत सतर्क रहना होगा। यह काम हमें स्वयं भी करना है। इसीलिए यह लोगों को बहुत ही कठिन लगता है। कोई बता दे, कोई गाइड कर दे, कोई दिशा दिखा दे।  हम सब हजारों वर्षों की कंडीशनिंग से यही समझते हैं कि कोई हमें बताएगा।  कोई हमें बना देगा- ऐसे ही स्टेप-बाय-स्टेप अपने गाइडेंस में। यह कभी संभव नहीं है सबसे पहले यही बात समझनी है। आंखों में आंसू भर कर भी अगर यह बात आपकी समझ में आ गई तो फिर कोई गुरु नहीं कोई शिष्य नहीं। यह सिस्टम हम लोगों ने हमारे समाज ने बनाई है और अगर हम इसमें कुछ नहीं करेंगे तो कोई हमारी मदद नहीं कर सकता यह हमें खुद ही अपनी मदद करनी है।

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