स्वदेशी आंदोलन
डॉ. संगीता पाहुजा
आज खो गया हर शख्स, विदेशो की चकाचौंध में।
युवा शक्ति हुई गुलाम, विदेशी नीतियों की।
जुट गयी, युवा सोच, विदेशी कंपनियों की तरक्की में,
हुआ तबादला युवाओं का स्वदेश से परदेश में।
संस्कारों का हुआ खात्मा, मिथ्या आडंबरों के बहकावे में।
भूल गए हम अरविंद घोष, रविंद्र ठाकुर,
बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, महात्मा गॉंधी जैसे, स्वदेशी आंदोलनों के उद्घोषकों को।
लगाया था जिन्होंने नारा, विदेशी माल के बहिष्कार का, स्वदेशी के सत्कार का।
माना गया, इस आंदोलन को स्वराज की आत्मा।
आजाद होकर भी गुलाम हुआ हर शख्स, विदेशों के परिधान का।
साख जमानी है अगर धरती पर, तो बढ़ाओ पग भारत के प्रगति पथ पर।
स्मरण हमें ये सदा रहे, संभव है भारत की उन्नति केवल भारतीयों से।
आओ मिलकर संकल्प करें, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का, स्वदेशी के सत्कार का।
जय भारत!!!
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