सम्पादकीय

भारत का 75वां स्वतंत्रता दिवस

 

 

स्वतंत्रता

 बेशकीमती होती है। इसका पता तब चलता है, जब यह हमारे पास नहीं होती है। जब यह हमारे पास होती है, तब हम इसे महत्व नहीं देते हैं और जब यह हमारे पास नहीं होती है, तब हम इसे पाने की पुरजोर कोशिश करने लगते हैं।

हम गुलामी की जंजीरों में जकड़े-जकड़े कई सौ साल गुजार दिये। हम जान ही नहीं पाये कि हम गुलाम कैसे हो गये? हम जान ही नहीं पाये कि सोने की चिड़िया कहा जाने वाला हमारा समृद्ध और ताकतवर देश कैसे इतना कमजोर हो गया कि वह गुलाम तक हो गया? हम जान ही नहीं पाये कि हम पर शासन करने वाले इने-गिने होने के बावजूद भी हमसे ताकतवर कैसे हो गये? हम जान ही नहीं पाये कि हम पर शासन करने वालों ने हममें से ही कुछ को अपनी मुटिठयों में कैसे जकड़ लिया और हम पर उनसे ही शासन करवाने लगे?

गुलामी हमें कमजोर बना देती है। गुलामी हमारे अंतरमन को कमजोर कर देती है। गुलामी हमारे आत्मविश्वास को खत्म कर देती है। गुलामी हमें मजबूर होकर जीना सिखाने लगती है और गुलामी हमें कभी मजबूत नहीं होने देती है, जबकि स्वतंत्रता हमें स्वच्छंद बनाती है, और अधिकार दिलाती है। कभी-कभी स्वतंत्रता हमें गैर जिम्मेदार भी बना देती है। ध्यान रहे, स्वतंत्रता से परतंत्रता की डगर आसान होती है, परंतु परतंत्रता से स्वतंत्रता का रास्ता बड़ा कठिन होता है।

आइये, हम आज के दिन आत्ममंथन करें कि कैसे हम गुलाम होने से बच सकते हैं? कैसे हम हमारे बीच रह रहे उन लोगों को पहचान सकते हैं जो हमारी स्वतंत्रता को खतरे में डालने के लिये हमेशा तैयार बैठै हैं?

यह बिडंबना ही है कि जिस आजादी को पाने के लिये करोड़ों देशभक्त अपने प्राणों की बलि चढ़ा देते हैं, वह जब मिलती है तब आम जनता को कुछ नहीं मिलता है। हर देश स्वतंत्रता के नाम पर केवल राजनीतिक स्वतंत्रता पाता है। गुलाम बनाने वाले देश का राजनेता स्वतंत्र हो रहे देश के राजनेता को सत्ता की चाभी सौंपता है, जिससे रातों रात देश का झंडा बदल जाता है, राष्ट्रगान बदल जाता है और वह देश परतंत्र से स्वतंत्र कहलाने लगता है, परंतु आम जनता की रोजमर्रा की जिंदगी में कोई परिवर्तन नहीं आता है। उसका जीवन-स्तर पहले जैसा ही बना रहता है।

वास्तव में आजादी पर अधिकार उन लोगों का होना चाहिये जिन्हें संघर्ष करना आता है, पर सच्चाई यह है कि हर आजाद होने वाले देश का नेता आजादी पाते ही ऐशोआराम की जिंदगी जीने लगता है। जनता जब यह देखती है तब  वह फिर से संघर्ष के बारे में मन बनाने लगती है क्योंकि जनता जैसे पहले गरीबी में जी रही होती थी, रह-रह कर पिस रही होती थी, वैसे ही अब भी उसी हाल में पड़ी रहती है। पहले गुलाम बनाने वाला उसे चूसता था, अब गुलामी के बाद से सत्ता पाने वाला उसे चूसता है।

हमें नहीं भूलना चाहिये कि हमारी आजादी की सुरक्षा करना सिर्फ हमारे सैनिकों का काम नहीं होता है। जबतक हर देशवासी अपनी स्वतंत्रता के लिये सजग नहीं रहेगा, तबतक आजादी नहीं बचेगी। हमने अनेकों बलिदान और बड़ी मेहनत से यह स्वतंत्रता पायी है। अब हमें अपने पूरे सामर्थ्य से इसे बनाये रखने की कोशिश करनी है।

ज्ञान विज्ञान सरिता परिवार अपने सभी लेखकों, छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और पाठकों को स्वाधीनता दिवस की हार्दिक बधाई देता है और उनसे अपेक्षा करता है कि वे भारत मां की स्वतंत्रता को अक्षुण्य रखने के लिये सदैव सजग रहेंगे।

देश हमारा  धरती  अपनी  गगन  हमारा है

प्राणों से भी प्यारा   हमको  सदा तिरंगा है

देश ने हमको इज्जत दी है  मान बढ़ाया है

हम को प्राणों की बलि देकर इसे बचाना है

जयहिंद !

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