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वक्ता का कहना है.... पूर्ण स्वतंत्र होने का मतलब

(यह आलेख जे कृष्णमूर्ति के दिए गए विचारों पर आधारित है)

मुकेश आनंद

सदियों से प्रत्येक व्यक्ति की आंतरिक और प्रबल इच्छा रही है कि वह पूर्णतया स्वतंत्र हो। पूर्ण स्वतंत्रता बहुत ही सुखद है, यह हम सब जानते हैं। अगर हम किसी मानव के जीवन सूक्ष्मता से देखते हैं तो हमें पता चलता है कि उसका पूरा जीवन स्वतंत्र होने का एक कठिन प्रयास है, जिसमें वह प्रति क्षण लगा रहता है।

आध्यात्मिक आधार पर अगर हम देखें तो यह बात बड़ी स्पष्टता से कही गई है कि एक स्वतंत्र मस्तिष्क और स्वतंत्र व्यक्तित्व में असाधारण ऊर्जा होती है और वह व्यक्ति सदा आनंद के क्षण में जीता है। तात्पर्य यह कि उसको कोई भी दुख सता नहीं सकता और इसलिए वह किसी बंधन में नहीं है। इसी अवस्था का नाम पूर्ण स्वतंत्रता है।

यहां यह समझना जरूरी है कि हमारी स्वतंत्रता दो प्रकार से ली जा सकती है। पहले शारीरिक स्वतंत्रता और दूसरे मानसिक स्वतंत्रता। ज्यादातर लोग अपने शारीरिक आर्थिक और प्रतिदिन के जीवन जीने की स्वतंत्रता को ही पूर्ण स्वतंत्रता मानते है। हालांकि शारीरिक स्वतंत्रता परम आवश्यक है परंतु यह अपने आप में पूर्ण नहीं है। जैसे जैसे व्यक्ति को जीवन में अनुभव होता है उसे पता चल जाता है कि इन सब स्वतंत्रताओं का असल में कोई मतलब नहीं है। यह उसे वह असीमित ऊर्जा प्रदान नहीं करते हैं, जिसकी बात ऊपर कही गई है। अपने रोज-रोज के जीवन से आदमी बुरी तरह थक जाता है, बोर हो जाता है और उसके लिए जीवन एक रूटीन एक जिम्मेदारी से ज्यादा कुछ भी नहीं रहता। जिंदगी एक बोझ मालूम होती है।

इसका परिणाम यह होता है कि वह धीरे-धीरे इन सब से बाहर निकलने का प्रयास करता है। स्वतंत्र होने का प्रयास करता है, कभी कहीं घूमने जाता है त्यौहार मनाता है या आध्यात्मिक चीजों को पढता है मन करता है और सबसे ज्यादा वह किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में जाना चाहते हैं जो उसे इन सब चीजों से दूर ले जाए और पूर्ण स्वतंत्रता का एहसास कराए। ऐसा नहीं है कि यह प्रयास हर बार जानबूझकर ही हो, जाने अनजाने हम इन बंधनों से छूटने का प्रयास करते रहते हैं। यह मानव की मूल प्रकृति है।

इसका परिणाम कई बार यह होता है कि हम गलत संपर्क में पड़ जाते हैं आर्थिक या पारिवारिक कहानी उठाते हैं और जिन बंधनों को काटने के लिए हमने नए बंधन स्वीकार किया वह हमारे लिए और भी दुखदाई हो जाते हैं। इसलिए लोग एक प्रोफेशन छोड़कर दूसरा प्रोफेशन करना चाहते हैं एक मित्र को छोड़कर तरह-तरह के विभिन्न मित्र बनाना चाहते हैं, एक प्रेम संबंध को छोड़कर लोग कई प्रेम संबंध बनाते हैं, ताकि आनंद के क्षण मिलते रहे। लेकिन जीवन का अनुभव यह सिखाता है यह सभी चीजें क्षणिक हैं। इनसे पूर्ण आनंद या पूर्ण स्वतंत्रता - जो भी कहें वह कभी नहीं मिल सकती।

अगर हम सच में स्वतंत्रता चाहते हैं तो हमें अपने मस्तिष्क अपनी जिंदगी को बहुत नजदीक से समझना होगा। उसकी परवाह करनी होगी, उस पर नजर रखनी होगी और एक बात बिल्कुल रूप से स्पष्ट होनी चाहिए कि यह काम हम स्वयं ही कर सकते हैं और कोई नहीं कर सकता। ना कोई गुरु, ना कोई राजनीतिक व्यक्ति, ना हमारे कोई परिवार का सदस्य न कोई सीनियर न कोई जूनियर न कोई अच्छा आदमी ने बुरा आदमी। कोई नहीं, मतलब कोई नहीं।

लेकिन इस रास्ते पर चलने के लिए आपने और सैनिक ताकत जोश और जीवंतता होनी चाहिए। फिर आप इसका स्वयं अनुभव करेंगे और यह आपके जीवन को बिल्कुल बदल कर रख देगा।

हमारा मस्तिष्क, सिर्फ हमारा मस्तिष्क नहीं है इसमें हजारों सालों के मानव के विकास की यादें संरक्षित है। और बचपन से जो चीजें हम देखते हैं जो चीज हमारे आसपास घटित हुई वह सारे अनुभव इसमें संचित रहते हैं। इस संचय का परिणाम यह होता है कि हम दूसरे को अपने से अलग समझ कर उसके बारे में अपने विचार बनाते हैं। जब ही हम कोई सोच का विचार करते हैं तो हमारे पुराने अनुभव हमारी पुरानी जो सोच है उसके आधार पर ही हम नहीं चीजों को समझने का प्रयास करते हैं। यहीं पर हम चूक जाते हैं और हमारा मस्तिष्क दबाव में आ जाता है। अगर आप सच को बिल्कुल स्पष्ट रूप से देखना चाहते हैं तो आपका मस्तिष्क इन पुरानी याद पुरानी सोच और पुरानी परिणामों से बिल्कुल मुक्त होना चाहिए। जब आप अपनी इन पुरानी सोच और यादों से मुक्त होते हैं तो आपके जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार होता है जिसे आप प्रतिपल स्वयं ही अनुभव कर सकते हैं और यह अनुभव हम स्वयं को स्वयं ही दे सकते हैं कोई दूसरा व्यक्ति नहीं दे सकता।

यह बात इतनी आसान है कि बिल्कुल अविश्वसनीय लगती है। परंतु अगर आप धार्मिक या आध्यात्मिक प्रामाणिक पुस्तकों को देखें तो वह किसी ओर इंगित करते हैं। इसके लिए आपको किसी तरह की बाहरी चीजों की या गतिविधियों की आवश्यकता नहीं होती। एक मानसिक स्थिति है और यह आपके जीवन को संपूर्ण रूप से परिवर्तित कर देगा।

जब हम पूर्ण स्वतंत्र होते हैं तो हम किसी भी चीज को उसके स्वाभाविक स्वरूप में देखते हैं अपनी यादें अपने अनुभव के आईने से नहीं और ऐसी अवस्था में हमारा मस्तिष्क सर्वश्रेष्ठ काम करता है अपने श्रेष्ठ ऊर्जावान स्वरूप में। यह बात किसी के कहने या किसी के द्वारा अभ्यास करने की नहीं यह स्वयं अनुभव प्राप्त करने की एक प्रक्रिया है। जब तक हम ऐसा करने में समर्थ नहीं होंगे हम पूर्ण स्वतंत्र नहीं हो सकते।

हमारे मस्तिष्क का यह स्वभाव है कि हम जिन चीजों को जानते हैं, उसको ही पहचान पाते हैं और अगर हम कोई नई चीज भी देखते हैं तो उसको जिन चीजों को हम पहले से जानते हैं या जो हमारा अनुभव है उसी चश्मे से देखते हैं। इसलिए जीवन के कुछ सालों बाद हमारा पूरा अस्तित्व हमारे बीते हुए अनुभव, याद और स्मृतियों पर पूर्णतया आधारित हो जाता है। और इस तरह हमारे मस्तिष्क के द्वार हर नई चीज हर नए अनुभव के लिए पूरी तरह बंद हो जाता है। और हम मानसिक रूप से मृत हो जाते हैं। हालांकि यह बात सब के लिए सत्य नहीं हो सकती है और इसके अपवाद जरूर होंगे लेकिन ज्यादातर लोगों के साथ ऐसा ही है और इसी का कारण है कि हमें जीवन बहुत ही जटिल दुख प्राप्त और कठिन लगने लगता है। जब हम अपनी यादों और स्मृतियों के साथ अपने अनुभव को अलग रखकर हर एक घटना व्यक्ति और चीजों को एक नई रोशनी में देखते हैं तो हम अपने मस्तिष्क को जागृत और नए अनुभवों के लिए समय और स्थान देते हैं हम अपने जीवन अपने शरीर और अपने मस्तिष्क के अनुभव के लिए सतर्क और जागरूक होते हैं। पूर्ण स्वतंत्रता के रास्ते में यह पहला कदम है। 

पूर्ण स्वतंत्रता की आंखिरी सीढ़ी है दूसरे व्यक्ति की कही गई हर बात से अपने आपको अलग कर अपने अनुभव स्वयं प्राप्त करना। इसलिए आपको लेखक के ऊपर कही गई बातों को भी पूर्णतया स्वीकार नहीं करना चाहिए और इन सभी चीजों को स्वयं अनुभव करने का प्रयास करना चाहिए। तभी आप प्रामाणिक रूप से अपने आप को अनुभव कर सकते हैं।

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