सम्पादकीय
सहयोग से आगे बढ़ते कदम
ज्ञान |
विज्ञान सरिता बेव-पत्रिका का यह 70वां (प्लेटिनम जुबली) मासिक अंक है। हम बड़ी खुशी और उत्साह के साथ इस अंक को अपने पाठकोँ को सौंप रहे हैं। हमारे इन बढ़ते कदमों की ताकत हमारे पाठकों का सहयोग है, जिन्होंने अपनी रुचिकर कृतियां हमें भेजी। पूरी सम्पादकीय टीम की तरफ से हम अपने सभी पाठकों, और अपनी कृतियां भेजने वालों का आभार व्यक्त करते हैं।
ज्ञान विज्ञान सरिता परिवार का आधार है, सेवा की भावना से शिक्षा देना। वह सेवा जो उत्तम हो, निःस्वार्थ हो और निरंतर हो। ज्ञानविज्ञानसरिता परिवार की सेवा, अनुभव के धनी उन लोगों के हाथों में है जिन्होंने अपने जीवन का बहुमूल्य समय सरकारी, अर्ध-सरकारी अथवा सामाजिक संस्थाओं में कार्य करते हुये बिताया है।
हाल में ज्ञान विज्ञान सरिता परिवार से कुछ नये शिक्षक व विद्यार्थी जुड़े हैं। हम सभी नये शिक्षकों का अभिनंदन करते हैं और उनके सेवाभाव को नमन करते हैं। नये जुड़े विद्यार्थियों का हम स्वागत करते हैं और विश्वास करते हैं कि वे शिक्षकों की मेहनत का भरपूर लाभ उठायेंगे और अपने को श्रेष्ठ बनायेंगे।
ज्ञान विज्ञान सरिता के माध्यम से शिक्षा देने वाले सभी सहयोगी शिक्षक-शिक्षिकायें बिना कोई धन लिये अपनी श्रेष्ठ सेवा देते हैं। हम सभी जानते हैं कि दुनिया में हर चीज का कोई न कोई मूल्य होता है, बस ज्ञान ही एक ऐसी वस्तु है जो अनमोल होती है। ज्ञानविज्ञानसरिता परिवार के सभी सदस्य मिलकर यह अनमोल चीज जरूरतमंदों तक पहुंचाने में दिन-रात लगे हैं।
प्रकृति का हर जीव अथवा पदार्थ सेवा व सहयोगभावी होता है। कुत्ता अपने मालिक द्वारा गुस्से में दुत्कार दिए जाने के बाद भी उसके पास आकर उसे चूमना-चाटना और उसका ख्याल रखना नहीं छोड़ता है। पेड़ पत्थर खाने के बाद भी अपने फल पत्थर मारने वाले को देने से मना नहीं करता है। नदी हमारे लाख गंदगी करने के बाद भी हमारे पास से बहना बंद नहीं करती है। इत्र की शीशी हमारे द्वारा दूर फेंक दिये जाने के बाद भी अपनी खूशबू हम तक पहुंचाने से रूकती नहीं है। फिर हम तो बुद्धिमान, ज्ञानवान मनुष्य ठहरे, हम क्यों अपनी सेवा जरूरतमंदों को देने से अपने को रोकें?
समाज वही बलवान होता है जो सेवा के भाव से एक दूसरे से जुड़ा होता है। सेवा आपस में स्नेह उत्पन्न करती है, आपसी समझ बढ़ाती है, एक दूसरे को सम्मान देने का साहस करना सिखाती है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि कठिन समय में यह एक दूसरे के साथ खड़ा रहने का भाव जगाती है।
सेवा का ही दूसरा स्वरूप सहयोग होता है। सहयोग सकारात्मक सोच के साथ सामाजिक उत्थान के लिये किया गया कार्य होता है। सहयोग एक अक्षय भाव होता है। यह अक्षुण्य संपत्ति होती है। सहयोग कई प्रकार से किया जाता है-विद्या देकर, यश देकर, स्नेह देकर, गुणवान बनाकर, विचारवान बनाकर, अर्थ देकर, और श्रम देकर।
सभी सहयोग प्रतिफल देते हैं। विद्या देने से हमारी खुद की विद्या बढ़ती है। यश देने से हमारा खुद का यश बढ़ता है। प्यार देने से हमारे प्रति दूसरों का प्यार बढ़ता है। दूसरों को अर्थ देने से हमारा खुद का सम्मान बढ़ता है। सहनशीलता सिखाने से हममें सहजता बढ़ती है। दूसरों के लिये अपना पसीना बहाकर श्रम करने से हममें आत्मशक्ति बढ़ती है और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी की भावना बढ़ती है।
जिस प्रकार आकाश धरती से जल लेकर फिर उसे ही वापिस कर देता है। ठीक उसी प्रकार सहयोग भी घूम-फिर कर सहयोग करने वाले के पास किसी न किसी रूप में वापिस अवश्य आता है। ईश्वर कृपा से अगर हम समर्थ हैं तो हमें दूसरों की सेवा अवश्य करनी चाहियेः
जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम
दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम
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