निर्बाध चला चल

डॉ. संगीता पाहुजा 

इधर भटक, उधर भटक

तू अपनी राह, चला चल |

मन तू, निर्बाध चला चल |

 

इसकी सुन, उसकी सुन

अपनी धुन में तू, चला चल

डोर प्रभु के हाथ छोड़, निः संदेह तू चला चल |

जब नहीं शंका कोई मन में,

सन्मार्ग पर तू निर्बाध चला चल |

 

इधर भटक, उधर भटक

तू अपनी राह, चला चल |

 

कर्म पथ का छोर पकड़ कर

अविरल तू बढ़ता चल |

हर चुनौती को स्वीकार कर

राहें अपनी चुनता चल |

 

विचलित होना, कर्म पथ से अपने

मंजिल के उस छोर तक चला चल, चला चल |

 

इधर भटक, उधर भटक

तू अपनी राह, चला चल |

 

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