Description: d.jpg सम्पादकीय

समस्याओं से निबटने में कारगर होती है: सकारात्मक सोच

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रोना आपदा को भारत में दस्तक दिये करीब-करीब एक साल हो गये हैं। यह आपदा रोजाना, हमारी हिम्मत, उससे लड़ने की हमारी क्षमता, और उससे उपजे कष्ट को सहने की हमारी सहनशीलता की परीक्षा ले रही है। इस आपदा को कम करने के लिये जैसे ही हम एक कदम आगे बढ़ाते हैं, वैसे ही यह बीमारी हमारे चारों ओर अपने कई कदम पसार देती है। किसी भी आपदा से निबटने के लिये जरूरी होता है कि हम हिम्मत रखें और यह सोच अपने अंदर बनाये रखें कि बीमारियां आती हैं, कुछ दिन ठहरती हैं, और एक समय के बाद चली जाती हैं। जो लोग हिम्मती होते हैं वे इन बीमारियों से निबटने के तरीके अपनी मेहनत और सकारात्मक सोच से खोज लेते हैं। बीमारियों से छुटकारा वे पाते हैं जो इस बात में विश्वास रखते हैं कि इस खूबसूरत धरती पर अच्छी चीजों को रहने की जरुरत है न कि ख़राब बीमारी जैसी चीजों को।

Double Bracket: आइये, हम आत्मचिंतन करें कि क्या हम अपने जीवन में किसी ऐसे दिन को जानते हैं जिस दिन हमने किसी की बिना मांगे मदद की हो और उसने हमें उसके बदले में कुछ दिया न हो?बीमारी के बेइंतहा फैलने में गलती बीमारी की नहीं होती है, गलती हमारी होती है कि हम लापरवाह हो जाते हैं, हम अपनी सावधानियों को नजरंदाज कर देते हैं, हम भीड़भाड़ से बचकर रहना छोड़ देते हैं, मुंह-हाथ को समय-समय पर धोना भूल जाते हैं और अपने चेहरे को ठीक से ढंककर रखने में लापरवाह हो जाते हैं। जब से हम संभल जायेंगे, तभी से हम ठीक होने लगेंगे। बीमारी को भगाने में हम हमेशा सफल रहे हैं। चाहें वह प्लेग जैसी महामारी रही हो, चेचक जैसी विनाशकारी महामारी रही हो अथवा पोलियों जैसी अपंगता लाने वाली महामारी रही हो, सबसे हमने निजात पायी है।

आज जरूरत है कि हम समाज में उन मुट्ठीभर लोगों को समझायें जो इस आपदा की घड़ी में दूसरों की सहायता की जगह अपने फायदे की सोच पाल बैठे हैं, जीवनरक्षक दवाओं को ज्यादा दामों पर बेंच रहे हैं, प्राणरक्षक आक्सीजन के सिलिंडर और उसकी मशीनों को अपने गोदामों में चंद फायदे के लिये छिपा रहे हैं, और यह भूल रहे हैं कि कहीं इन सब चीजों की  जरूरत उनके अपनों को भी पड़ रही होगी। हमें बसुधैव  कुटुम्बकम्  को नहीं भूलना चाहिये।

हमें देश के बड़े बड़े उद्योग घरानों टाटा, अंबानी, अडानी और ऐसे अनेक लोगों से सीख लेनी चाहिये और उनके जज्बों को सलाम करना चाहिये जिन्होंने विदेशों से देश तक आक्सीजन आदि जीवन बचाने वाली जरूरी चीजों की कतार सी लगा दी है ताकि देश के हर एक नागरिक की जान बचायी जा सके।

हमारे यहां ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपना सर्वस्व लुटाकर दूसरों की मदद में आ खड़े हो जाते हैं, और अपना सबकुछ दूसरों की सेवा व उनकी जान बचाने में लगा देते हैं। इतिहास गवाह रहा है कि सेवा करने, सहायता करने और मदद में खड़े रहने की सकारात्मक सोच दीर्घकाल तक जीवित रहती है और नकारात्मक सोच क्षणभर में ही बिसार दी जाती है। सकारात्मक सोच बहुत ताकतवर होती है। ठीक वैसे ही जैसे अंधकार चाहें जितनी कोशिश कर ले, वह सूरज को उगने से नहीं रोक पाता है। सकारात्मक सोच वाले इतिहास बनाते हैं और नकारात्मक सोच वाले इतिहास में खो जाते हैं। भारत से मुगलों को दूर भगाने के लिये उनसे लड़ने वाले महाराणा प्रताप को दो करोड़ सोने के सिक्कों और पच्चीस करोड़ चांदी के सिक्कों से सहायता करने वाले चित्तौड़ के नगर सेठ भामाशाह और उनके भाई ताराचंद आज भी युगों युगों से जीवित हैं।

मजबूत आत्मशक्ति किसी भी महामारी को जीतने की एक रामबाण दवा होती है। जबतक हम अंदर से मजबूत बने रहेंगे, कोई भी बीमारी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी। आइये, हम आत्मचिंतन करें कि क्या हम अपने जीवन में किसी ऐसे दिन को जानते हैं जिस दिन हमने किसी की बिना मांगे मदद की हो और उसने हमें उसके बदले में कुछ दिया न हो?

ज्ञान विज्ञान सरिता परिवार का मानना है कि दुनिया में महान कहानी उसी की बनती है जिसने हर परिस्थिति में हार न मानते हुये, लोगों की नकारात्मक बातों को अनसुना कर आगे बढ़ने का फैसला किया होता है।

हर नजर में मुमकिन नहीं होता बेगुनाह रहना

बस वादा करो खुद की नजर में बेदाग रहना

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