कभी मायूस न होना
उर्मिला द्विवेदी
इक मंजिल न मिलने से
कभी मायूस न होना
मिलेगी आकर वो खुद से
बस रोकना नहीं चलना
ऊँचे आकाश को छूना
गर चाहते हो रोजाना
निगाहें जमीं से मत हटाना
बस इतना याद तुम रखना
राहें मंजिल की होती हैं
जानी पहचानी नहीं हरबार
ऊँची कहीं तिरछी भी होती हैं
सीधी तो कहीं चक्करदार
मेहनत हमेशा रंग लाती है
तोड़ पत्थर दरिया निकलती है
धरती में दबा जो बीज होता है
उससे ही कोपल निकलती है
गहरे समंदर में हैं जो पैठते
मोती उनके हाथ आते हैं
किनारे पर जो रह जाते
सीप ही साथ लाते हैं
सूरज चमकता है खुद से
हवा भी बहती है खुद से
दरिया मचलती है खुद से
मत चलना तुम सहारे से
जिंदगी बादल सी होती है
जमीं तो कभी आकाश छूती है
वक्त का बस फेर होता है
मेघ तो कभी अमृत बनाती है
जो देखते हैं सूरज हमेशा
दीखती परछाईं नहीं उनको
जो देखते परछाईं हमेशा
दौड़ना आता नहीं उनको
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