Description: d.jpg सम्पादकीय

युगद्रष्टाः रामकृष्ण परमहंस

 

रामकृष्ण का मूल नाम था - गदाधर चट्टोपाध्याय। वह एक महान विचारक थे। उनका स्वभाव बहुत सरल था। उनके विचारों में बहुत अधिक गहराई थी। उनके पास असीम सिद्धियां थीं। उनके लिये कुछ भी असंभव नहीं था। वह ईश्वर को किसी भी रूप में कहीं भी देखने में सक्षम थे। रामकृष्ण परमहंस मां काली के भक्त थे।

 

भारतीय परंपरा में परमहंस उसे कहा जाता है जिसने अपने इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया हो और जिसमें असीम ज्ञान हो। रामकृष्ण ने सिद्ध कर दिखाया था कि अगर हमारे अंदर सच्ची श्रद्धा और भक्ति हो तो हम खुद ईश्वर के दर्शन कर सकते हैं। यही वह गुण था जिसने उन्हें परमहंस बनाया। इनका जन्म बंगाल के कामारपुकुर गांव में हुआ था। इनका जन्म 18 फरवरी 1836 को हुआ था। उस दिन विक्रम संवत 1892 की फाल्गुन मास की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि थी। रामकृष्ण की जयंती हर वर्ष विक्रमी संवत् की फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ही मनायी जाती है। इस वर्ष यह तिथि अंग्रेजी कैलेंडर से 15 मार्च 2021 को है।

 

रामकृष्ण के विचार अनमोल हैं। वह आज भी प्रासंगिक हैं। उनके विचारों में दिव्यता है। उनके विचार मानव-कल्याण के लिये हैं। रामकृष्ण परमहंस का मानना था कि हमें अपनी प्रशंसा के लिये परेशान नहीं होना चाहिये। जब फूल खिलता है तब मधुमक्खी बिना बुलाये आ जाती है, ठीक उसी प्रकार जब हमारे अच्छे कर्म हमारी प्रसिद्धि करेंगे तब लोग बिना बताये हमारा गुणगान करने लगेंगे।

 

जब हम विचारों से ईमानदार और समझदार बनकर उनके अनुसार कार्य करते हैं तब हम निश्चित रूप से सफल होते हैं। जब हमें पूर्व की ओर जाना होता है तब हम पश्चिम की ओर नहीं जाते हैं। दुनिया की हर सफलता वास्तव में सत्य और विश्वास का एक मिश्रण होती है।

 

रामकृष्ण परमहंस ने एक बार अपने शिष्यों को उनका अहंकार दूर करने के लिये एक बहुत ही मनोहारी दृष्टांत सुनाया। दो शिष्य इस बात पर झगड़ते-झगड़ते कि उन दोनों में से कौन अधिक श्रेष्ठ है, अपने गुरुदेव तक जा पहुँचे। उन्होंने गुरूदेव से पूछा, गुरुदेव! आप ही बतायें, हम दोनों में से कौन अधिक श्रेष्ठ है? गुरूदेव बोले, जो दूसरे को अपने से बड़ा और श्रेष्ठ समझे, वही अधिक श्रेष्ठ है। यह सुनकर दोनों शिष्य एक दूसरे से बोलने लगे, तू श्रेष्ठ, नहीं तू श्रेष्ठ।

 

व्यक्ति वह महान होता है जो अपने से बड़े व्यक्तित्व का निर्माण अपने समय में करता है। रामकृष्ण परमहंस इसी प्रकार के अनोखे व्यक्तित्व थे। उन्होंने नरेंद्र नामक एक जिज्ञासु बालक को जो केवल बुद्धि और तर्क में जीवन जीता था, उसे स्वामी विवेकानंद बना दिया। रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद के हर प्रश्न का समाधान कर उनकी बुद्धि को भक्ति में बदल दिया।

 

विवेकानंदः मैं समय नहीं निकाल पाता। जीवन आपाधापी से भर गया है।

रामकृष्ण परमहंसः ध्यान रखो, गतिविधियां घेरे रखती हैं, लेकिन उत्पादकता आजाद करती है।

 

विवेकानंदः आज जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है?

रामकृष्ण परमहंसः जीवन का विश्लेषण करना बंद करो। यह इसे जटिल बनाता है। जीवन को सिर्फ जियो।

 

विवेकानंदः फिर हम हमेशा दुःखी क्यों रहते हैं?

रामकृष्ण परमहंसः परेशान होना तुम्हारी आदत बन गई है, इसी वजह से तुम खुश नहीं रहते हो।

 

विवेकानंदः अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं?

रामकृष्ण परमहंसः हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है। सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है। अच्छे लोग दुःख नहीं पाते हैं, वे परीक्षाओं से गुजरते हैं। इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता है।

 

विवेकानंदः आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है?

रामकृष्ण परमहंसः हां, हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह होता है। पहले वह परीक्षा लेता है, फिर सीख देता है।

 

विवेकानंदः समस्याओं से घिरे रहने के कारण हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं?

रामकृष्ण परमहंसः अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो। अपने भीतर झांको, आखें दृष्टि देंगी, हृदय राह दिखायेगा।

 

विवेकानंदः क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?

रामकृष्ण परमहंसः सफलता वह पैमाना है, जो दूसरे तय करते हैं। संतुष्टि वह पैमाना है जो तुम खुद तय करते हो।

 

विवेकानंदः कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?

रामकृष्ण परमहंसः हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, न कि इस पर कि अभी और कितना चलना बाकी है। जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो, जो हासिल न हो सका उसे नहीं।

 

विवेकानंदः लोगों की कौन-सी बात आपको हैरान करती है?

रामकृष्ण परमहंसः जब वे कष्ट में होते हैं तब पूछते हैं, मैं ही क्यों? जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तब कभी नहीं सोचते, मैं ही क्यों?

 

विवेकानंदः मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूं?

रामकृष्ण परमहंसः बिना किसी अफसोस के अपने अतीत का सामना करो। पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो। निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो।

 

विवेकानंदः कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं?

रामकृष्ण परमहंसः कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती। अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो। जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है। यह कोई समस्या नहीं है जिसे सुलझाना है। विश्वास करो-अगर तुम यह जान पाये कि जीवन को जीना कैसे है तो जीवन सचमुच खूबसूरत लगेगा।

 

ज्ञान विज्ञान सरिता परिवार  रामकृष्ण परमहंस की जयंती पर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये यह प्रार्थना करता है कि महान विभूति के जीवन से जुड़े प्रेरक तत्व हमारे सभी लेखकों, पाठकों, विद्यार्थियों और समाज के उत्थान के कार्यों में लगे लोगों में समाहित होकर सबको अपने-अपने दायित्यों को निभाने की शक्ति दे।


महान पुण्यात्मा को कोटि-कोटि नमन!!

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