शक्ति-प्रार्थना

ज्योति भाष्कर "ज्योतिर्गमय"

 

हे ईश्वर! मुझे दे इतनी शक्ति कि

गूँगे की बुलंद  आवाज बन सकूँ,

लंगड़ों की दौड़ती व नाचती पैर,

न डाल कोई,हमपे हेयभरी दृष्टि

प्रेम-पुजारी मैं,नहीं किसी से वैर!

हे ----------------------------

 

पथराई नैनों की सच्ची आस बनूँ,

तनहाई में जीते रूह के पास  रहूँ,

बिखरते जीवन में भर सकूँ  हँसी,

बँटाना जरा तुम भी हाथ ऐ साथी

कि बेबस जिंदगियों की मनाऊँ खैर!

हे -------------------------------

 

टूटते अरमानों को पुनःजोड़ सकूँ,

पौरूष को नेकी हेतु निचोड़ सकूँ,

सूखे होठों की सजल रवानी बनूँ,

उजड़ते लोगों की जिंदगानी बनूँ,

सबको मानूँ निज,नहीं किसी को गैर!

हे -------------------------------

 

चाहत में टूटती साँसों की साँस बनूँ,

नयन-सुखों की चमकती आँख बनूँ,

खामोशी में डूबे लबों की  राग बनूँ,

फीके पड़ते जज्बातों की फाग बनूँ,

हर मन-संसार की करूँ मैं हँसी सैर!

हे ------------------------------

 

दीन-लूलों की चाहत भरी हाथ बनूँ,

बेचैन दिलों की राहत भरी साथ बनूँ,

दिव्यांगों की यथोचित जरूरत बनूँ,

सारे जहाँ की हँसी शुभ मुहूरत बनूँ

जिऊँ संग-संग,मरूँ भले सबके बगैर!

हे --------------------------------














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