अनुकरण करती नारी

कब होगी अनुकरणीय

डॉसंगीता पाहुजा 

हर कार्य मे सुघड़ होकर भी

एक कदम पीछे रहती नारी

सदा अनुकरण करने का पाठ पढकर

एक कदम पीछे रहती नारी

 

बड़ो का आदर करना,यह पाठ पढ़कर, सदा अनुकरण करती नारी।

 

पति परमेश्वर है,सदा आदर करना, सुनकर अनुकरण करती नारी।

 

बच्चो को सदा माफ करना, इस भाव से स्वत: ही ओत-प्रोत रहती नारी।

 

समाज में अपनी स्वच्छ छवि बनाने में, अपनी स्वछन्दता को स्वयम कुचलती नारी।

स्वछन्दता का अरमान मन में लेकर, सिर्फ अहसास से ही मन को प्रसन्न करती नारी।

 

निर्भया जैसे लाखों क़िस्से सुनकर अपना आत्म विश्वास  गंवाती नारी

अपने अस्तित्व को कुचल कर सदा अनुकरण  करती नारी।

 

अध्यापिका, पायलेट ,इंजिनियर, डॉक्टर, काउन्सलर बनकर भी हर फैसले पर सहमति का इंतजार करती नारी

सदा ही अनुकरण करती नारी।

 

पंख होते तो उड़ जाती, ये सोचकर, अगले ही क्षण यह ख्याल छोड़कर अपने कर्तव्यों से बंध जाती नारी।

 

इतना ही नहीं, पूरा जीवन अनुकरण करती , अंत में सती होने को भी कभी अपना सौभाग्य समझती थी नारी।

 

समानता का पाठ पढ़ाने वालों, जब तक नारी के आदर में समानता नहीं होगी पूरी

तब तक अनुकरणीय बन सकेगी नारी।

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