कोरोना
भावना मिश्रा
कोराना काल बहुत ही मुश्किल दौर रहा है, अभी जब लगभग सब ठीक हो गया था बहुत सारे स्कूल, कॉलेज कुछ बच्चे के पसंदीदा गतिविधि भी खुल चुके थे । बच्चे खुश हो गये थे, फिर कोरोना के बढते केस के कारण सब बंद …
सारे कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं बंद, सारी तैयारी बेकार सी लग रही है। बच्चे निराश हुए है। मेबौद्धिक और मानसिक दोनो रूप से बहुत ही बुरा असर पड़ा। पर हम पालक-गण ने उन्हें बड़े प्यार से समझा लिए कि -- " जान है तो जहान है।"
कुछ दिन और सावधानी ले लेते है; ये कह -कह कर एक साल से ज्यादा समय बिता दिया । विभिन्न प्रकार के कार्य में हम उन्हें व्यस्त कर दिया। उनके साथ ज्यादा समय देने लगे, साथ खेलने लगे । भागदौड़ की जिन्दगी में जो हम खुद से खाना या नए और व्यञ्जन नहीं बना पाते थे, अब बच्चो के साथ मिलकर बनाने लगे, बच्चे को भी मजा आने लगा।
सब क्लास ऑनलाइन होने लगी, जो हम कभी सोच भी नही सकते थे। बच्चे धीर-धीरे नयी व्यवस्था में समरस होने लगे है । खुले मैदान में दौड़-भाग और अपने सह-पत्तियों और अन्य बच्चों के साथ मौज-मस्ती की याद उन्हें बहुत सताती है , पर बस एक बात याद कर चुप हो जाते- "जान है तो बाद में भी खुल के जीयेगे।"
गरीब बच्चो पर ज्यादा बुरा असर पड़ा है, उनके पास पैसे नहीं होने के कारण किताब कॉपी और बहुत चीजों के अभाव के कारण उनकी जिन्दगी दर्दनाक हो गयी है। खाने की कमी और मनोरंजन का अभाव के कारण वे मानसिक रूप और शारीरिक रूप से कमजोर हो गये है। हम सब का कर्तव्य है कि - हम से जो भी हो सके उनके लिए अवश्य करे।
हे भगवान! जल्दी सब कुछ ठीक कर दीजिए!!!
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