लॉकडाउन  में  यंत्रों की गुलामी

गीतांजलि लहरे 

 

साल भर से  ज्यादा हो गया है एक मोबाइल ने मुझे 8,000 रुपये में खरीद रखा है।  भुझे ही नहीं बल्कि दुनिया के हर एक इंसान को, हर छात्र को अलग-अलग दामों में इसने खरीद रखा  है।  हम छात्र, हमारे शिक्षक, कर्मचारी सब बड़ी शिद्दत से इसकी सेवा में लगे है ताकि हमारे आने वाले जीवन में कठिनाई ना हो । इस मोबाइल - लेपटॉप ने हमसे वादा जो कर रखा है कि वे  हमें  जीवन में यह सफल बनाएँगे। 

अब देखिये  हमारी ऑनलाइन क्लास चालू हो गयी है । कहाँ हुआ पहले जैसा दोस्तों से मिलाना, शिक्षकों से स्कूल में  पढ़ना।  पाठशाला में जब हम बाहर  खेलते थे और थोड़ी ज्यादा देर हो जाती थी तब हमारे शिक्षक हम पर  चिल्लाते थे। यह सब कोविद की कारण बंद हो गया है । न हम घर  से बाहर  निकल  पाते हैं और न ही खेलने जा सकते हैं।  साथ ही  ऑनलाइन क्लास  में  न ही शिक्षक चिल्लाते हैं और न हम उन्हें देख पाते हैं।  ऑनलाइन क्लास के चलते हम आलस भी कर लेते हैं।  पर जब हमारे शिक्षक आलस लेने लगे तो...?

हमें नहीं पता यह परिस्थिति कब तक रहेगी और हम इन यंत्रों की गुलामी की लत में पड़े  रहेंगे।  पहले हम अंग्रेजों की गुलामी में थे अब इन यंत्रो की गुलामी में हैं।  जल्द-से-जल्द समय बदलना चाहिए और हम सब घर बैठे रहना बंद कर  इन यंत्रों की गुलामी से मुक्त होना चाहिए।  

हमें इन यंत्रों का इस्तेमाल करना है ना कि इनका गुलाम बनना है।  हमें याद रखना है कि हमारे समबन्ध परिवार के हर व्यक्ति के साथ ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं, मोबाइल और कंप्यूटर हमारी सिर्फ सुविधा और कठिनाई से उबरने के साधन हैं, हमारे मालिक नहीं… 

 


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