आत्मीयता
राम
अभिषेक तिवारी
मुझ में और प्रत्येक प्राणी में वही परमात्मा समाया है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में स्वर्ग कहा है कि ‘
‘मया ततमिदं सर्वं जगद्व्यक्त मूर्तिना‘‘ अर्थात मैंने ही अव्यक्त रूप से इस सारे संसार को व्याप्त कर रखा है। गीता में ज्ञानी और पण्डित उसे ही कहा गया है, जो ब्राम्हण, हाथी, कुत्ते और चाण्डाल में एक ही परम तत्व आत्मा को देखता है। इसलिए कोई जीवन छोटा-बड़ा नहीं है, सभी समान है। उसकी और मेरी आत्मा एक ही होने के कारण हममें परस्पर आत्मीयता का भाव होना चाहिए। यही भारतीय संस्कृति की मान्यता है। यही कारण है कि गरीब, दीन-हीन, पशु-पक्षी आदि सभी जीवों के प्रति भारतीय संस्कृति से अभिभूत हर मन में करूणा और आत्मीयता का भाव रहता है। चींटियों को आटा खिलाना, मछलियों का आटा व खाने की वस्तु डालना, पक्षियों को दाना देना, पशुओं के लिए चारागाह, गौशाला बनाना, भूखे-प्यासों को अन्न और जल की व्यवस्था करना, कुत्ते को रोटी डालना, भोजन करने से पहले गो ग्रास निकालना, तुलसी पीपल को जल देना व पूजना तथा नदियों और पर्वतों के प्रति भी पूजा भाव रखना यह सब भारतीय संस्कृति में निहित है । उन्हें प्रणाम करना और पवित्र बनाये रखने के कार्य करना हर भारतीय में व्याप्त आत्मीयता का परिचायक है। ‘‘आत्मावत् सर्वभूतेषु‘‘ सभी प्राणियों के प्रति अपनापन ही भारतीय संस्कृति की विशेषता है। संसार में ऐसी जीवन-दृष्टि हर किसी को प्राप्त हो यही हमारी इच्छा और प्रार्थना है….—00—