क्या यही यश है ?

डॉ. संगीता पाहुजा

हो जाना विख्यात जहाँ में

प्रशंसा के बोल गूँजे

पीछे हों हज़ारों जन

क्या यही यश है |

 

फूल, मालाओं से स्वागत हो

दीप प्रज्ज्वलित करके शुभारंभ हो

तालियों की गड़गड़ाहट हो

क्या यही यश है |

 

दान करके, गुणगान करके

सेवा का व्याखान करके

छोटे से छोटे पुण्य का बखान करके

नहीं मिलता सुयश कभी जहाँ में |

 

दिलों में स्थान बना कर,

जन जन में संधान करा कर

जात पात का भेद हटा कर

प्रत्येक जीव में,हरि दर्शन करके

होता स्थापित, अखंडित सुकीर्तिमान |

 

जहां हैं, जहां नही हैं, वहाँ भी आपका वजूद है !

यही सुयश है, यही सुकृत है |

 

बस जाओ इस कदर,

इस जहाँ के प्रत्येक उर में

चाहे तो भी, भुला सकें |

सदकर्मों का पलड़ा,

रहे सदा भारी, छोटी छोटी खामियों पे |

 

सदकर्मों का वजन हो इतना

दिखे, छोटी छोटी सी भूल

हो जाए, इंसान होने के कारण,भूल भी कबूल |

 

है वही यश, जिसे हर दिल गाए, अनकहे ही, विदित हो जाए

यही यश है, यही यश है |

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