अब भी मौका संभलो प्यारे, सब कुछ यहीं रह जाना है!

उर्मिला द्विवेदी

 

(जब भी कोई त्रासदी आये तो हममें से हर किसी को अपने चारों ओर के लोगों की सहायता में तन-मन-धन से लग जाना चाहिये, न कि विपरीत परिस्थितियों में स्वार्थी बनकर उसमें आर्थिक लाभ के बारे में सोचना चाहिये। कोरोना की त्रासदी में हममें से कइयों ने ऐसा नहीं किया। इसी तकलीफ को व्यक्त करती कुछ पंक्तियां)

 

सुख   की  चाह  सभी  को  है

पर  मेहनत  कोई  करे  नहीं

मोती   चाहे    हर    कोई   है

पर  सागर  पैठे   कोई  नहीं

 

भाषण की है  चाह सभी को

पर  सुनना  चाहे  कोई नहीं

शिक्षा  की है  चाह सभी को

पर लगन लगाता कोई नहीं

 

देशभक्त होना हर कोई चाहे

पर त्याग है  करता कोई नहीं

तिरंगे सा  लहरना  सब चाहे

पर प्यार  देश से   कोई  नहीं

 

कोरोना ने सबको सिखलाया

कम से कम में जियो जिंदगी

शौक दिखावा  काम  न आया

मौत से जूझी जब भी जिंदगी

 

खुद ही  जीना  ख़ुद ही मरना

कोरोना   का  जोर  से कहना

मौका  मिला  है  सेवा करना

वरना  हाथ  न  कुछ है रहना

 

ऊपर  बैठा भगवान अचंभित

हम  इतने  लालची  हुए क्यों

सोच सोच कर वह है चिंतित

लाज शरम हम भूल गए क्यों

 

हम   एंबुलेंस  के  दाम बढ़ाए

कब्रिस्तान  से  कफन  चुराए

मर्घट  पर हम  लूट  मचाए

दाम  बढ़ाकर   दवा  छिपाए

 

मौत से  भी  न आंख  लजाए

ऑक्सिजन   के  टैंक  चुराए

क्या हम अजर अमर हो आए

सेवा  करते   नज़र  न   आए

 

अब भी  मौका संभलो  प्यारे

सब  कुछ यहीं  रह जाना  है

सेवा  कर लो जीव का न्यारे

साथ   यही   बस   जाना  है

 

सेवा  ही   वह  भाव  एक है

जो हमको  भगवान  बनाता

इससे   कष्ट   हरा  जाता  है

खुशियां  भी  है यह बरसाता

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