लक्ष्य प्राप्ति

पुरुषोत्तम विधानी

आखिर हम चाहते क्या हैं?अपनी गरीबी दूर करना चाहते हैं?अपने आप को सुखी करना चाहते हैं?यह संभव है, पर इसके लिए सारे प्रयास हमारे अपने होंगे।हो सकता है कोई और मदद कर भी दे।पर यदि हमारा लक्ष्य महान होगा, यदि हम दूसरों की गरीबी दूर करने का लक्ष्य लेकर चलें, दूसरों को सुखी करने का लक्ष्य लेकर चलें तो हमारे प्रयास भी उसी स्तर के होंगे, हमारा सहयोग करने वाले अनेकानेक लोग होंगे।

रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद के बारे में आपने पढ़ा होगा।रामकृष्ण ने विवेकानंद से जब कहा कि जा मांग ले मां से(काली मां)जो मांगना चाहता है।उस वक्त विवेकानंद के घर में उनकी माँ के भोजन की पर्याप्त व्यवस्था भी नहीं थी, विवेकानंद उसी की गारंटी चाहते थे पर जब काली मां के पास जाते और वापस लौटकर रामकृष्ण के पास आते और वे पूछते कि मांग लिया तो उनका उत्तर होता ना।ऐसा एक बार नहीं तीन बार हुआ।अंत में रामकृष्ण को ही कहना पड़ा जा, तू जगत का काम कर, तेरी मां के रहने खाने की व्यवस्था हो जाएगी, तू निश्चिंत होकर जा।और आप विवेकानंद की उपलब्धिया जानते हैं,ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने कभी अपने लिए नहीं मांगा।

मोहनदास करमचंद गांधी जब इंग्लैंड से वकालत की डिग्री लेकर आए और पहली बार कोर्ट में खड़े हुए तो वो अपनी बात जज के सामने रखने में असमर्थ थे।उसके बाद वे दक्षिण अफ्रीका गए।वहाँ रहने वाले गैर अंग्रेज लोगों के हक के लिए लड़े।फिर भारत वापस आकर देशवासियों की दुर्दशा को दूर करने के लिए स्वतंत्रता के लिए आंदोलन खड़ा किया।अब वे इतने शक्तिशाली हो गए थे कि अंग्रेज उन पर कोई भी कार्यवाही करने से डरते थे।

यह तो मात्र दो उदाहरण हैं, संसार में ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे जब मामूली लोग दूसरों की भलाई का लक्ष्य लेकर महान बन गए।और ऐसा जब होता है तो जो सुख मिलता है, उसकी कल्पना आप कर सकते हैं।हम यह नहीं कहते कि हर कोई विवेकानंद, महात्मा गांधी बन जाएगा।पर उस दिशा में हम जितना भी चल सकें वह भी हमारे लिए उस सुख से कम नहीं होगा।

लक्ष्य जितना महान होगा, संघर्ष भी उतना ही कठिन होगा।यह लक्ष्य एक छलांग में पाया भी नहीं जा सकता।कहा जाता है कि संसार की सभी लंबी यात्राएं एक कदम से ही प्रारंभ हुईं।कदम दर कदम चलते हुए हम अपने लक्ष्य तक पहुंचते हैं।आवश्यकता है प्रबल इच्छा की जो हमें उसके लिए अपेक्षित ऊर्जा प्रदान करती है।महान लक्ष्य की प्राप्ति में सहयोगी जुड़ते चले जाते हैं, साधन जुटते चले जाते हैं और छोटी छोटी सफलताएं हमारे उत्साह को बढ़ाती चली जाती हैं।हमारे प्रयास देखकर ईश्वर भी सहायता को ततपर हो जाते हैं।

हमारे पास खोने को कुछ नहीं है।आज हम जिस हाल में हैं उससे नीचे कभी नहीं जाएंगे।आज अपने ऐतिहासिक लक्ष्य निर्धारण को कहीं लिखकर सुरक्षित रख लें, और उसे प्राप्त करने के लिए आज से ही जुट जाएं…



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